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चाय श्रमिकों का धैर्य टूटा, महाराष्ट्र की तर्ज पर आंदोलन की तैयारी

ज्वाइंट फोरम की बैठक में हुई चर्चा सिलीगुड़ी. महाराष्ट्र के किसानों ने जिस तरह से नासिक से मुंबई तक पैदल मार्च निकाल कर सरकार को घेरा था उसी तरह से अब यहां के चाय श्रमिक राज्य सरकार को घरेंगे. श्रमिक संगठनों के ज्वाइंट फोरम ने यह निर्णय लिया है. अंतरिम मजदूरी व राशन के एवज […]

ज्वाइंट फोरम की बैठक में हुई चर्चा
सिलीगुड़ी. महाराष्ट्र के किसानों ने जिस तरह से नासिक से मुंबई तक पैदल मार्च निकाल कर सरकार को घेरा था उसी तरह से अब यहां के चाय श्रमिक राज्य सरकार को घरेंगे. श्रमिक संगठनों के ज्वाइंट फोरम ने यह निर्णय लिया है. अंतरिम मजदूरी व राशन के एवज में मिलने वाली रकम पर श्रमिक संगठनों ने सरकार के खिलाफ रोष प्रकट किया है. ज्वाइंट फोरम ने श्रमिकों का हक काटकर बागान मालिकों की जेब गरम करने का आरोप राज्य सरकार पर लगाया है.
न्यूनतम मजदूरी पर निर्णय लेने के लिए ज्वाइंट फोरम ने राज्य सरकार को 30 अप्रैल तक का वक्त दिया है. श्रमिकों के हित में फैसला नहीं लेने पर सिलीगुड़ी से कोलकाता तक लांग मार्च निकालने का इशारा किया है. इसको लेकर ज्वाइंट फोरम ने एक बैठक की. इस बैठक में पूरे उत्तर बंगाल के चाय श्रमिक संगठन के प्रतिनिधि उपस्थित थे. सोमवार की इस बैठक में न्यूनतम मजदूरी की मांग पर फैसला लेने के लिए राज्य सरकार को 30 अप्रैल तक का वक्त दिया गया है.
इसके बाद महाराष्ट्र लांग मार्च की तरह आंदोलन करने का इशारा ज्वाइंट फोरम ने किया है. बैठक के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए ज्वाइंट फोरम के संयोजक जियाउल आलम ने बताया कि राज्य सरकार न्यूनतम मजदूरी की मांग को टाल रही है. राज्य सरकार श्रमिकों का हक काटकर मालिकों की जेब गरम रही है. उन्होंने आगे बताया कि वर्ष 2015 में त्रिपक्षीय समझौता हुआ था.
इस समझौते की मियाद 2016 के 30 मार्च को खत्म हो गयी. इसके बाद से आज तक त्रिपक्षीय समझौता नहीं हुआ. करीब दो वर्ष बाद राज्य सरकार ने बीते 29 जनवरी को अंतरिम जारी कर 17.50 रुपये मजदूरी बढ़यी है.
17.50 रुपये के आंकड़े का हिसाब राज्य सरकार ने अब तक साफ नहीं किया है. बल्कि इस अंतरिम को वर्ष 2016 के अप्रैल के बजाय 2018 के जनवरी से लागू करने का निर्देश मालिक पक्ष को दिया. सरकार के इस फैसले ने बागान मालिकों को प्रति श्रमिक साढ़े सात हजार रुपये बचा दिया.
राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए जियाउल आलम ने कहा कि पंचायत चुनाव को देखकर बंद चाय बागानों को खोलने का ढोंग रचा जा रहा है. श्रमिकों के हित अनदेखी की जा रही है. श्रमिकों का बकाया रुपया, पीएफ, पेंशन आदि की कोई बात समझौते में नहीं है. वास्तविकता यह है कि अभी तक कुल 24 चाय बागान अचल है. जिसमें से डंकन के 16, एलकेमिस्ट ग्रुप के 6 बागान शामिल है. इसके अतिरिक्त रेड बैंक, सुरेंद्रपुर, धरणीपुर, बांदापानी, कुम्लाई, मधु, मानाबाड़ी, कोहिनूर व पानीघाटा चाय बागान बंद है.
क्या है समस्या
चाय बागानों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना लागू होने के बाद से बागान मालिकों ने श्रमिकों को राशन देना बंद कर दिया. वर्ष 2015 के दिसंबर महीने में राज्य सरकार ने राशन के बदले 22 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 660 रुपये मासिक देने की बात कही थी.
जबकि बीते 15 जनवरी को राज्य सरकार ने राशन के एवज में प्रति श्रमिक 9 रुपये दैनिक के हिसाब से देने के का निर्देश दिया है. सरकार के इस फैसले से वर्ष 2016 के फरवरी से लेकर अब तक प्रति श्रमिक को 15 हजार 7 सौ रुपये का नुकसान हो रहा है. कुल मिलाकर 23 हजार रुपये प्रति श्रमिक को घाटा हो रहा है. श्रमिकों की इतनी बड़ी हानि को किसी भी कीमत पर बरदाश्त नहीं करेंगे. महाराष्ट्र सरकार को श्रमिकों की वास्तविक मांग के सामने नतमस्तक होना पड़ा है.
श्री आलम ने कहा कि न्यूनतम मजदूरी पर निर्णय लेने के लिए राज्य सरकार को 30 अप्रैल तक का समय दिया गया. इसके बाद चाय बागान के श्रमिक किस तरह के आंदोलन की ओर रूख करेगें, यह कह पाना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि केरल सरकार ने 322 रुपये, तमिलनाडु की सरकार ने 340 रुपये, पड़ोसी राज्य असम की सरकार ने 351 रुपये न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की है. फिर बंगाल राज्य सरकार चाय श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी तय करने में देरी क्यों कर रही है.

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