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सिलीगुड़ी जिला अस्पताल की नहीं सुधरी स्थिति, बैठक में जतायी गयी चिंता, लेप्रोस्कोपिक मशीन कबाड़ में तब्दील

सिलीगुड़ी. सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में लेप्रोस्कोपिक मशीन का मसला अब तक हल नहीं हुआ है. करीब 10 वर्षों से लाखों रुपये की यह मशीन अस्पताल में पड़ी हुई है. जिसका कोई उपयोग नहीं है. इस मशीन से जुड़ा कोई भी कागजात अस्पताल के रिकॉर्ड में नहीं है. सिलीगुड़ी जिला अस्पताल रोगी कल्याण समिति (आरकेएस)के चैयरमैन […]

सिलीगुड़ी. सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में लेप्रोस्कोपिक मशीन का मसला अब तक हल नहीं हुआ है. करीब 10 वर्षों से लाखों रुपये की यह मशीन अस्पताल में पड़ी हुई है. जिसका कोई उपयोग नहीं है. इस मशीन से जुड़ा कोई भी कागजात अस्पताल के रिकॉर्ड में नहीं है. सिलीगुड़ी जिला अस्पताल रोगी कल्याण समिति (आरकेएस)के चैयरमैन डॉ रुद्रनाथ भट्टाचार्य इसकी जांच कर रहे हैं, लेकिन अब तक उनके हाथ कुछ नहीं लगा है.

जिला अस्पताल का दर्जा मिलने के बाद सिलीगुड़ी सदर अस्पताल के रूप-रंग में काफी बदलाव आया है. जबकि भीतर समस्याओं का अंबार है. मंगलवार को सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में रोगी कल्याण समिति की बैठक थी. समिति के चेयरमैन डॉ रुद्रनाथ भट्टाचार्य की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में अस्पताल अधीक्षक अमिताभ मंडल, उप अधीक्षक सागर शीट व अन्य अधिकारीगण उपस्थित थे.

आज की इस बैठक में विभिन्न मुद्दो को लेकर चर्चा हुई, जिसमें वर्षों से पड़े लेप्रोस्कोपिक मशीन को लेकर भी बातचीत की गयी. यहां बता दें कि राज्य की पिछली वाम मोरचा सरकार के समय इस अस्पताल में अत्याधुनिक तरीके से ऑपरेशन कराये जाने के लिए लेप्रोस्कोपिक मशीन लगायी गयी थी. उस समय मशीन के ट्रायल रन के समय मात्र दो रोगियों का इलाज हुआ. उसके बाद से यह मशीन बंद है. इस मशीन को कमरे में बंद पड़े करीब 10 वर्ष गुजर गये हैं. लाखों की यह मशीन किलो के भाव में भी बिकने लायक नहीं है.

अनावश्यक रेफर पर देना होगा जवाब

समस्या गंभीर देखकर सिलीगुड़ी जिला अस्पताल से मरीजों को उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया जाता है. इलाज संभव होने के बाद भी बेवजह मरीजों को रेफर करने की जवाबदेही डॉक्टर की होगी. इस बार बीते अगस्त और सितंबर महीने में सिलीगुड़ी शहर में डेंगू का भारी प्रकोप रहा. उस समय डेंगू का मरीज पाये जाने पर ही उसे मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया जाता था. आमतौर पर मरीज की स्थिति काफी गंभीर होने पर मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाता है. मेडिकल कॉलेज भेजने का नाम सुनते ही मरीज के परिजनों की धड़कने भी तेज हो जाती है. सिलीगुड़ी जिला अस्पताल के अनुसार 16 प्रतिशत के हिसाब से मरीजों को मेडिकल कॉलेज रेफर किया जा रहा था. जो कि इस महीने घट कर 9 प्रतिशत है. जबकि अस्पताल ने रेफर प्रतिशत 6 रखने का निर्णय लिया है. पिछली बार उत्तर बंगाल दौरे पर सिलीगुड़ी आयीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस विषय पर ध्यान देने का निर्देश दिया था. मुख्यमंत्री का साफ निर्देश है कि आवश्यकता होने पर मरीजों को रेफर किया जाए. रोगी कल्याण समिति के चेयरमैन डॉ. रूद्रनाथ भट्टाचार्य ने कहा कि अनावश्यक रेफर करने पर डॉक्टर को सीधे स्वास्थ विभाग को जवाब देना होगा. भर्ती, रेफर और मरीजों को छुट्टी देने की रिपोर्ट प्रतिदिन स्वास्थ विभाग को भेजनी होगी. उसमें यदि किसी मरीज को अनावश्यक रेफर का मामला पाया गया तो जवाबदेही रेफर करने वाले डॉक्टर की होगी.

बड़े घपले का मिल रहा संकेत

सूत्रों की मानें तो तत्कालीन अस्पताल प्रबंधन के घपले की वजह से मशीन की यह हालत है. सरकारी अस्पताल में लेप्रोस्कोपिक मशीन चालू होने की बात निजी चेंबर व निजी अस्पतालों में बैठने वाले सरकारी डॉक्टरों को खटकने लगी. इससे उनकी उपरी कमाई पर खतरा मंडराने लगा था. इस वजह से अस्पताल के तत्कालीन डॉक्टरों ने सरकारी मशीन को शहर के एक निजी अस्पताल के मशीन से बदल दिया. उसके बाद से सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में एक कमरे में मशीन बंद है. मशीन से जुड़े कागजात भी रिकॉर्ड में नहीं है. इस संबंध में सिलीगुड़ी जिला अस्पताल रोगी कल्याण समिति के चेयरमैन डॉ. रूद्रनाथ भट्टाचार्य ने बताया कि मशीन काम के लायक नहीं है. मशीन से जुड़े कागजात भी नहीं मिल रहे हैं. उस समय की सभी फाइलों को टटोला जा रहा है. यदि कुछ मिलता है तो उसके आधार पर आगे की कार्यवायी की जायेगी.

अस्पताल का ओटी होगा अत्याधुनिक

सिलीगुड़ी जिला अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर को अत्याधुनिक तौर पर सजाने का निर्णय प्रबंधन ने लिया है. पुरानी लाइट सिस्टम व अन्य व्यस्थाओं को अत्याधुनिक किया जायेगा. मंगलवार को अस्पताल परिसर में एक नये वाटर पंप का उद्घाटन किया गया. उल्लेखनीय है कि अस्पताल में पेयजल के लिए अपना डीप ट्यूबवेल है. फिर भी अस्पताल में पेयजल की समस्या रहती है. मिली जानकारी के अनुसार प्रतिदिन सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में 60 हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है. जबकि एक पंप इतना प्रेशर लेने में सक्षम नहीं है. एक मशीन होने की वजह से यह समस्या होती थी. इसके लिए करीब 9 लाख 32 हजार रूपए की लागत से दूसरा वाटर पंप लगाया गया है. इस पंप का उद्घाटन करने के बाद डॉ. रूद्रनाथ भट्टाचार्य ने बताया कि पानी की समस्या का स्थायी समाधान कर दिया गया है. पुराना पंप तो काम करेगा ही, समस्या होने पर इस नये पंप को वैकल्पिक तौर पर उपयोग किया जायेगा. उन्होंने आगे कहा कि वामो सरकार के समय इस अस्पताल की अवस्था जर्जर हो चली थी. जबकि ममता बनर्जी की सरकार आने के बाद से यही अस्पताल दमकने लगा है. ओटी की लाइट पुरानी होने की वजह से डॉक्टरों को परेशानी होती है. ओटी में अत्याधुनिक लाइट लगाने का निर्णय लिया गया है.

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