कोलकाता. कैंसर सह अन्य बीमारियों के कारण हर साल लगभग 32 से 39 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं. जेब से खर्च करने और सीमित बीमा पर अत्यधिक निर्भरता भारतीय परिवारों पर भारी वित्तीय दबाव डालती है. नयी दिल्ली स्थित थिंक टैंक काउंसिल फॉर इंटरनेशनल इकनोमिक अंडरस्टैंडिंग (सीआइइयू) की एक रिपोर्ट ने भारत में बायोसिमिलर को प्रोत्साहित करने के लिए एक सहायक व्यवस्था की आवश्यकता पर जोर दिया है, जो महंगी जैविक चिकित्सा के लिए एक लागत प्रभावी विकल्प हो सकता है. रिपोर्ट में बायोसिमिलर की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है और बताया गया है कि वे लाखों भारतीयों को प्रभावित करने वाली बीमारियों के लिए अधिक किफायती और लागत प्रभावी उन्नत उपचार में कैसे योगदान दे सकते हैं. सीआइइयू के अनुसार, भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट लागत और सीमित बीमा से जूझ रही है, जिससे हर साल 3.2-3.9 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं. इसी तरह, देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली काफी हद तक आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय पर निर्भर करती है, जो 2022 तक कुल स्वास्थ्य व्यय का लगभग 63% था, जो इसे वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक दरों में से एक बनाता है. थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पुरानी और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का बढ़ता बोझ एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता बन गया है, जो देश की बीमारी प्रोफाइल में बदलाव को दर्शाता है. 2022 तक, भारत में लगभग 42% वयस्कों और बुजुर्गों ने कम से कम एक पुरानी बीमारी होने की सूचना दी, जिसमें उच्च रक्तचाप और मधुमेह सबसे अधिक प्रचलित स्थितियां थीं. रिपोर्ट के अनुसार, बायोसिमिलर किफायतीपन, पहुंच और स्वास्थ्य सेवा स्थिरता में सुधार करके महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करते हैं. वे उपचार लागत को कम करते हैं, जिससे जीवन रक्षक जैविक उत्पाद बड़ी आबादी के लिए अधिक सुलभ हो जाते हैं, खासकर कैंसर, मधुमेह और ऑटोइम्यून विकारों जैसी पुरानी बीमारियों के प्रबंधन में.
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