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लोकसभा चुनाव के बाद राज्य में परियोजनाओं की बाढ़, विपक्ष ने कहा : ये पब्लिक है, सब जानती है

आनंद कुमार सिंह, कोलकाता : पश्चिम बंगाल में एकाएक आयी परियोजनाओं की बाढ़ और सरकार के सक्रिय होने पर जहां लोग आश्चर्यचकित हैं, वहीं विपक्ष इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा बता रहा है. साथ ही वे इसके पीछे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की छाया देख रहे हैं. उठ रहे सवाल पिछले कुछ महीनों के सरकार […]

आनंद कुमार सिंह, कोलकाता : पश्चिम बंगाल में एकाएक आयी परियोजनाओं की बाढ़ और सरकार के सक्रिय होने पर जहां लोग आश्चर्यचकित हैं, वहीं विपक्ष इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा बता रहा है. साथ ही वे इसके पीछे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की छाया देख रहे हैं.

उठ रहे सवाल
पिछले कुछ महीनों के सरकार के कामकाज पर नजर डालें, तो इसमें आमूल बदलाव नजर आता है. जनता के प्रति जवाबदेही से लेकर कई नयी परियोजनाएं लायी जा रही हैं. इसमें सरकार के सभी विभाग जुटे हैं. इससे आमलोगों में खुशी है, लेकिन यह भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इतने दिनों तक सरकार ने यह सब क्यों नहीं किया. लोकसभा चुनाव के बाद ही आखिर उसमें सक्रियता क्यों आयी है?
इन सबके बावजूद विपक्ष का मानना है कि यह सबकुछ दिखावा है तथा इससे कोई लाभ नहीं होनेवाला.
राज्य सरकार के कार्यों पर एक नजर
शहरी इलाकों में बस्तियों में रहनेवाले बेरोजगारों को सहकारिता विभाग की ओर से आसान शर्तों पर ऋण परियोजना
कृषक बंधु परियोजनाओं में किसानों को जल्द चेक देने की पहल
ग्रामीणों के लिए ढाई लाख से अधिक घर बनाने का फैसला
पंचायत विभाग द्वारा फील्ड इंस्पेक्शन का फैसला
पंचायतों में ऑडिट का फैसला
मोबाइल टूरिस्ट इनफॉर्मेशन कियोस्क की शुरुआत
सरकारी कर्मचारियों के लिए फ्लैट निर्माण
विभिन्न फ्लाइओवरों की हेल्थ ऑडिट
गांवों में महिलाओं के लिए शौचालय का निर्माण
फायर लाइसेंस फीस घटाने का फैसला
हावड़ा में नौ एमएसएमइ पार्क का उद्घाटन
बेरोजगारों की सहायता के लिए वेबसाइट लॉन्च
इनके अलावा मुख्यमंत्री द्वारा कटमनी लौटाने का निर्देश, दीदी के बोलो योजना की शुरुआत, सरकारी योजनाओं में लाभ न मिलने या किसी तरह की दिक्कत आने पर शिकायत करने की सुविधा शुरू करने के अलावा ‘मेयर को फोन’, विभिन्न नेताओं द्वारा जनसंपर्क अभियान शुरू करना, यह सबकुछ सरकार की छवि को उज्जवल करते हैं.
क्या आरोप है विरोधी दलों का
भाजपा के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा ने कहा कि मुख्यमंत्री यह समझ गयी हैं कि उनकी सरकार का समय पूरा हो गया है और उनकी सत्ता जानेवाली है. इसलिए उनके पास जितनी भी ‘दवाएं’ हैं, उन सबका वह एकसाथ इस्तेमाल करना चाहती हैं. लेकिन इससे उन्हें लाभ नहीं होनेवाला. इसकी वजह है कि इन योजनाओं में भी कटमनी का बोलबाला रहेगा.
योजनाएं भी घोषणाएं तक ही सीमित रहेंगी. उनपर काम नहीं होनेवाला. काम अगर हुआ भी, तो सरकार के निचले स्तर तक रिश्वत देखी जायेगी. जनता तो सवाल जरूर पूछेगी कि आखिर तृणमूल अपने बुरे समय में क्यों यह सब कर रही है. जब समय अच्छा, तब उसने ऐसा कुछ क्यों नहीं किया? जनता सब समझती है.
कांग्रेस सांसद प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि जिन परियोजनाओं की घोषणा की गयी हैं, वे सब कागजों पर ही रह जायेंगी. जो भी परियोजनाएं मुख्यमंत्री घोषित कर रही हैं, उसका तीन गुणा करने पर भी उन्हें चुनाव में जीत नहीं मिलनेवाली. चुनाव में सफलता के लिए लोगों का भरोसा और विश्वास जीतना पड़ता है.
दीदी को बोलने से नहीं, बल्कि काम करने से वोट मिलते हैं. सरकार की कोशिशों से तृणमूल को फायदा नहीं, नुकसान ही होगा, क्योंकि जनता मंशा समझ रही है. तृणमूल को चाहिए कि वह सचमुच में लोकतंत्र स्थापित करे. विपक्षी दलों का सम्मान करे और विरोधी शून्य राजनीति की मानसिकता से बाहर आये.

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