- वर्ष 2011 में राज्य सरकार पर था 1.93 लाख करोड़ का कर्ज
- 2018-19 में बढ़ कर हुआ 3.84 लाख करोड़
- वर्ष 2019-20 में चार लाख करोड़ का आंकड़ा पार करने की संभावना
Advertisement
कोलकाता : पुराने ऋण की वजह से बढ़ रहा है कर्ज का बोझ
वर्ष 2011 में राज्य सरकार पर था 1.93 लाख करोड़ का कर्ज 2018-19 में बढ़ कर हुआ 3.84 लाख करोड़ वर्ष 2019-20 में चार लाख करोड़ का आंकड़ा पार करने की संभावना कोलकाता : पश्चिम बंगाल कर्ज के बोझ के तले लगातार दबते जा रहा है और यह कर्ज का निपटारा कैसे होगा, इसका पता […]
कोलकाता : पश्चिम बंगाल कर्ज के बोझ के तले लगातार दबते जा रहा है और यह कर्ज का निपटारा कैसे होगा, इसका पता किसी को नहीं है. वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल पर 1.93 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो अब बढ़ कर 3.84 लाख करोड़ हो गया है. सबसे आश्चर्य की बात यह है कि यह कर्ज कम होनेवाला नहीं है, बल्कि समय के साथ कर्ज का बोझ और भी बढ़ता जायेगा.
पश्चिम बंगाल पर जो कर्ज का बोझ है, इसे चुकाने की कोई आशा की किरण नहीं दिख रही. बताया जा रहा है कि राज्य की पूर्व सरकार ने जो लोन लिया था, उसे चुकाने में ही राज्य सरकार के कोष का बड़ा हिस्सा खत्म हो रहा है. इसलिए यहां योजनाओं के संचालन के लिए राज्य सरकार को फिर से कर्ज लेना पड़ रहा है. राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से पूर्व लोन की राशि पर तीन वर्षों के लिए ब्याज में छूट देने की मांग की है, लेकिन केंद्र सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही.
हालांकि, राज्य सरकार ने आर्थिक सुधार व ई-गवर्नेंस लागू कर अपनी आमदनी तो बढ़ायी है, लेकिन वह आमदनी ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. इस आमदनी से कर्ज के पहाड़ को पार नहीं किया जा सकता. अगर यहां अधिक से अधिक बड़े उद्योग आयेंगे, तभी राजस्व बढ़ेगी. लेकिन बंगाल में बड़े उद्योगों की स्थापना नहीं के बराबर हो रही है.
साथ ही राज्य सरकार को अपने खर्चों को भी कम करना होगा, लेकिन इसके भी आसार नहीं दिख रहे. पश्चिम बंगाल सरकार सामाजिक विकास जैसी योजनाओं पर अधिक राशि खर्च कर रही है, जहां से आमदनी नहीं होती.
आंकड़ाें के अनुसार, वर्ष 2017-18 में बंगाल को कर अदायगी के रूप में लगभग 55,786 करोड़ रुपये मिले थे, लेकिन इसमें से 52 हजार करोड़ रुपये कर्ज को चुकाने के लिए अदा करने पड़े. इसके साथ-साथ लगभग 50 हजार करोड़ रुपये सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन, पेंशन व विभिन्न सब्सिडियों में प्रदान किये गये. बंगाल सरकार अपनी आमदनी से दोगुना राशि खर्च करती है, इससे साफ जाहिर है कि बंगाल पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है.
तृणमूल कांग्रेस की सरकार सत्ता में आने के बाद से एक के एक सामाजिक विकास की योजनाओं पर राशि खर्च करना शुरू किया. इन योजनाओं से समाज को फायदा तो हुआ, लेकिन बंगाल की आर्थिक स्थिति और भी दयनीय होती गयी. कन्याश्री, युवाश्री, शिक्षाश्री, सबूज साथी, स्वास्थ्य साथी, तांती साथी, समव्याथी और क्लबों को आर्थिक अनुदान, किसानों के लिए कृषि बंधु जैसी योजनाएं शुरू की हैं, जिसके तहत प्रत्येक वर्ष हजारों करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं.
जानकारी के अनुसार, वर्ष 2011-12 में राज्य सरकार ने लोन चुकाने के एवज में 23,199 करोड़ रुपये दिये थे, जो राज्य को मिलनेवाले कुल राजस्व 59144 करोड़ का लगभग 39 प्रतिशत था, जबकि कुल राजस्व में 24,934 करोड़ रुपये राज्य सरकार को कर अदायगी के रूप में मिले थे. यानी कर्ज के रूप में राज्य सरकार जो राशि का भुगतान करती है, सरकार की आमदनी उससे थोड़ा-सी अधिक है. अब ऐसे में कर्ज का भुगतान कैसे होगा, यह चिंता का विषय है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement