कोलकाता : पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में रहनेवाले लोगों को बेहतर चिकित्सा व्यवस्था मुहैया करवाने के लिए 24 फरवरी 2006 में निर्देशिका जारी कर राज्य के 200 ग्राम पंचायत के लिए आयुर्वेद व होम्योपैथी चिकित्सकों को नियुक्त किया गया. हालांकि तब पार्ट में सेवा देने के लिए इन चिकित्सकों को नियुक्त किया गया था.
साल 2006 में मात्र दो हजार मानदेय पर नियुक्त किया गया था. लेकिन अब 13 साल बाद इन चिकित्सकों के कार्य करने का पैटर्न बदला है. अब इन्हें फुल टाइम कार्य करना पड़ रहा है. लेकिन इस कार्य के बदले उन्हें जो सेलेरी दी जाती है वह किसी ग्रुपडी क्लास के कर्मी से भी कम है. आप को यह जान कर हैरानी होगी की इन डॉक्टरों को बतौैर मासिक 16 हजार रुपया मिलता है.
वेतन के अलावा डीए, पेंशन ग्रेजुएटी की सुविधा इन चिकित्सकों को नहीं मिलती है. वहीं लगभग 6 वर्षों से इनका वेतन भी नहीं बढ़ाया गया है, जिससे महंगाई के इस दौर में गुजर बसर करना मुश्किल हो गया है. इस विषय में एक चिकित्सक ने बताया कि आयुष विभाग का गठन 2015 में हुआ था.
इससे पहले इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन एंड होम्योपैथी विभाग था, जिसके अंतर्गत आयुर्वेद, होम्योपैथी तथा यूनानी को रखा गया था. उन्होंने कहा कि वेतन वृद्धि के लिए एक फाइल भी तैयार किया गया, जो अब तक स्वास्थ्य विभाग का ही चक्कर लगा रहा है. कहा कि मंहगाई के दौर में आज जो वेतन हमें मिल रहा है, वह काफी कम है.
ऐसे में सरकार को चाहिए कि वेतन की विसंगतियों को दूर करें. वेतन समय पर नहीं मिलता है. तीन महीने के अंतराल पर वेतन का भुगतान जिला परिषद द्वारा किया जाता है.
ज्ञात हो कि राज्य के विभिन्न उपस्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक अपनी सेवा देते हैं. पश्चिम बंगाल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पंचायत विभाग संचालित उपस्वास्थ्य केंद्रों में इन आयुष चिकित्सकों को कार्य करना पड़ रहा है.