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चुनौतियों के अनुरूप देश में बदलाव जरूरी
विज्ञानी डॉ वेदव्रत पाईन ने कहा: तथ्यों की प्रामाणिकता बेहद जरूरी विभिन्न राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी फिल्म ‘चट्टगांव’ का प्रदर्शन आसनसोल : काजी नजरूल यूनिवर्सिटी एवं काजी नजरूल स्टूडेंटस कमेटी ने “ कला, विज्ञान और मानवता के वैश्विक प्रवाह में वर्ष 2020 एक दृष्टिकोण” विषय पर बुधवार को रवींद्र भवन में सेमिनार का आयोजन […]
विज्ञानी डॉ वेदव्रत पाईन ने कहा: तथ्यों की प्रामाणिकता बेहद जरूरी
विभिन्न राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी फिल्म ‘चट्टगांव’ का प्रदर्शन
आसनसोल : काजी नजरूल यूनिवर्सिटी एवं काजी नजरूल स्टूडेंटस कमेटी ने “ कला, विज्ञान और मानवता के वैश्विक प्रवाह में वर्ष 2020 एक दृष्टिकोण” विषय पर बुधवार को रवींद्र भवन में सेमिनार का आयोजन किया. उद्घाटन कुलपति डॉ साधन चक्रवर्ती, रजिस्ट्रार सुबल चंद्र दे तथा वैज्ञानिक, फिल्म निर्माता निर्देशक और पटकथा लेखक डॉ वेदव्रत पाईन ने किया.
वक्ताओं ने 2020 के अनुरूप दूसरे देशों में हो रही तैयारियों के अनुरूप देश को भी तैयार रहने, बिना प्रमाणिकता के सहज ही तथ्यों को स्वीकार करने की परंपरा को बदलने, सरकार को नागरिकों के जरूरतों के अनुरूप विकास का एजेंडा तैयार करने को कहा.
डॉ पाईन निर्देशित व पुरस्कृत हिंदी सिनेमा ‘चट्टगांव’ का प्रदर्शन किया गया.निर्माता, निर्देशक डॉ पाईन ने 2020 में विश्व की भविष्य की परिस्थितियों एवं चुनौतियों को रेखांकित करते हुए उसके अनुरूप देश में विज्ञान के विकास के अपने गरिमा और अस्तित्व को बचाये रखने के लिए फिलोस्फी, राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक परिस्थितियों में भी जरूरी बदलाव किये जाने का समर्थन किया. वैज्ञानिक, सामरिक तैयारियों और शोध कार्यों का उदाहरण देते हुए उस बदलाव के अनुरूप तैयारियां करने को कहा.
भारत को वैज्ञानिकों के मामले में धनी राष्ट्र बताते हुए उन्होंने कहा कि यूरोपियन राष्ट्रों के समानांतर भारत में भी कई महान वैज्ञानिक हुए जिन्होंने अपने शोध कार्यों से पूरे विश्व में भारत का परचम लहराया और अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलायी. डॉ जगदीश चंद्र बोस, डॉ एस रामानूज, डॉ प्रफुल्ल चंद्र राय, प्रो. सीवी रमन, आरएस कृष्णन, सत्येन बोस, डीएन वारिया, बिरबल साहनी आदि ने अपने शोध एवं प्रतिभा के बल पर देश और दुनिया को बहुत कुछ दिया.
उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सिद्धांत को अपनाने का आग्रह करते हुए किसी भी तथ्य को स्वीकार करने से पहले उसे सत्यापित करने को जरूरी बताया. उन्होंने कहा कि विज्ञान द्वारा समर्थित सभी जानकारियां और सूचना तथ्यों और प्रमाणिकता के आधार पर टिकी होती हैँ. उन्होंने भारत में किसी भी चिज को बिना प्रमाणिकता के सहज ही स्वीकार करने वाला देश बताते हुए इसे एक खतरनाक चलन बताया.
प्रमाणिकता एवं तथ्यों के साथ रूढिवादियों के ढोंग की पोल खोलने वाले वैज्ञानिकों पर होने वाले हमलों का हवाला देते हुए कहा कि दकियानुसी गैर जरूरी रीति-रिवाजों के प्रतिवाद करने वाले विज्ञानियों पर प्राचीनकाल से हमले होते आये हैँ. इसके बावजूद वैज्ञानिक जोखिम लेकर शोध व समाज में बदलाव लाने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैँ.
कुलपति डॉ चक्रवर्ती ने कहा कि डॉ पाइन के 150 तकनीकी लेख प्रकाशित हो चुके हैं. उप रजिस्ट्रार चैताली बासू, डॉ स्वाति गुहा, काजी नजरूल स्टूडेंटस कमेटी की चेयरमैन व बांग्ला की विभागाध्यक्ष डॉ मोनालिसा दास, डॉ अनिंदय पुरकायस्थ, सुशांत मित्रा, हिंदी विभाग की प्रमिता प्रसाद, डॉ अभिजीत साधु खां, अरिंदम विश्वास, शान्तनु बनर्जी, शुभब्रत पोद्दार आदि उपस्थित थे.
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