हिंदीभाषियों की उपेक्षा, परिवारवाद का आरोप
वर्ष 2014 के संसदीय चुनावी जीत में इनकी रही थी निर्णायक भूमिका
अध्यक्ष, तीन महासचिव पदों में से एक पर भी नहीं मिला प्रतिनिधित्व
पूर्व महासचिव घनश्याम राम को उपाध्यक्ष बनाये जाने को मान रहे अवनति
आसनसोल: वर्ष 2014 के संसदीय चुनावों में आसनसोल संसदीय क्षेत्र से भाजपा की 70 हजार मतों के अंतर से हुई निर्णायक जीत में हिंदीभाषी मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. कोयलांचल में हिंदीभाषी भाजपा के वोट बैंक भी माने जाते रहे है. वर्ष 2019 में फिर से संसदीय चुनाव होने है. इसके लिए पश्चिम बर्दवान भाजपा जिला कमेटी का पुनर्गठन किया गया. लेकिन पार्टी में सक्रिय हिंदीभाषी नेताओ में कमेटी में उपेक्षा से काफी आक्रोश है. उनका कहना है कि अध्यक्ष तथा महासचिव जैसे पदों पर कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. उनका दावा है कि इसका असर आगामी संसदीय चुनाव पर पड़ेगा. हालांकि जिलाध्यक्ष लक्ष्मण घड़ुई ने इसका खंडन किया है. उन्होंने कहा कि पार्टी में क्षमता, प्रतिबद्धता तथा प्रदर्शन के आधार पर पदों का वंटवारा होता है.
ज्ञात हो कि लोक सभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए जिले में सांगठनिक गतिविधियों को गति देने एवं विस्तार को देखते हुए गुरूवार को कोलकाता में आयोजित बैठक में प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष व जिलाध्यक्ष लखन घुरूई ने जिला कमेटी का गठन किया था. शुक्रवार को जिला कमेटी के सदस्यों की आधिकारिक घोषणा जारी की गयी.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि पार्टी के संविधान के अनुसार जिला कमेटी में अध्यक्ष तथा महासचिव के पद ही महत्वपूर्ण हैं. बीते चार सालों में अध्यक्ष पद पर किसी हिंदीभाषी को आसीन नहीं किया गया. लेकिन पिछली कमेटी में पांडेश्वर इलाके के घनश्याम राम महासचिव थे. लेकिन नयी कमेटी में उन्हें महासचिव पद से हटाकर उपाध्यक्ष बना दिया गया है. इसे उनके समर्थक अवनति मान रहे हैं. इस पद पर तीन पदाधिकारियों का मनोनयन किया गया है. अध्यक्ष सहित चार पदों में से एक भी हिंदी भाषी कोटे में नहीं गया है.
उनका यह भी कहना है कि कमेटी में हिंदीभाषियों के नाम पर उनको शामिल किया गया है जिनका न तो कोई जनाधार है और न पार्टी की जमीनी गतिविधियों में उनकी भागीदारी है. बड़े नेताओं के साथ रहनेवालों को प्राथमिकता दी गई है. उन्होंने कहा कि इसी का परिणाम है कि जिला कमेटी में आसनसोल दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से चार को प्रतिनिधित्व मिला है. लेकिन इसकी तुलना में रानीगंज विधानसभा को प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. उनका कहना है कि वर्ष 2014 के चुनाव के बाद तृणमूल ने हिंदीभाषियों को प्रमुखता देनी शुरू की है, उन्हें महत्वपूर्ण पद सौंपे जा रहे हैं. संभावना है कि संसदीय क्षेत्र से वह किसी हिंदीभाषी को प्रत्याशी बनाये, उस स्थिति में भाजपा में हिंदीभाषियों की उपेक्षा घातक हो सकती है. उनका कहना है कि भाजपा में सभापति सिंह, पवन सिंह, मदन मोहन चौबे, शंभूनाथ गुप्ता जैसे कर्मी थे, जिन्हें जिला कमेटी में शामिल किया जाना चाहिए था. लेकिन हमेशा से उनकी उपेक्षा होती रही है. जबकि पार्टी के पुराने दिनों में इन्होंने ही पार्टी की झंड़ा थामे रखा था.
परिवारवाद का भी आरोप
भाजपा के नाराज कर्मियों का कहना है कि पार्टी वंशवाद तथा परिवारवाद का विरोध करती है लेकिन जिला कमेटी के पुनर्गठन में यह भी दिख रहा है. पिता तथा पुत्र दोनों को शामिल किया गया है, जबिक उनके पास अतिरिक्त प्रभार भी है. उन्होंने कहा कि जिला कमेटी को इस पर पुनर्विचार कर हिंदीभाषियों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए.
क्या कहते हैं जिलाध्यक्ष
भाजपा जिलाध्यक्ष लक्ष्मण घुरूई ने कहा कि ये सारी बातें बेबुनियाद हैं. कमेटी का गठन व दायित्व का आवंटन जिले में जरूरत के अनुरूप किया गया है. जिसमें जो काबिलियत है उसे वह पद दिया गया है. वंशवाद को बढ़ावा दिये जाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि पुत्र काबिल और मेहनती हैं. इससे पूर्व वे भाजयूमो के महत्वपूर्ण पद पर रह चुके हैं. जिला कमेटी में कार्यकर्ता की क्षमता और योग्यता के अनुरूप स्थान दिया गया है न कि भाषा और जाति को देखकर. उन्होंने हिंदी भाषियों की अनदेखी के मुददे को सिरे से नकारते हुए कहा कि संगठन में सब एक समान हैं.