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विलुप्त होने के कगार पर पहुंची वैतरणी नदी

उद्गम स्थल का हुआ पक्कीकरण, सूख गये तीनों कुंड कुंड सूखने से 200 परिवारों के सामने जल संकट जीर्णोद्धार के नाम पर प्रशासन ने कंक्रीट से करायी ढलाई जैंतगढ़ : प्रशासन द्वारा वैतरणी के उद्गम स्थल का जीर्णोद्धार के नाम पर पक्कीकरण कराये जाने से नदी का जल श्रोत बंद हो गया है. इससे ब्रह्मेश्वर […]

उद्गम स्थल का हुआ पक्कीकरण, सूख गये तीनों कुंड

कुंड सूखने से 200 परिवारों के सामने जल संकट
जीर्णोद्धार के नाम पर प्रशासन ने कंक्रीट से करायी ढलाई
जैंतगढ़ : प्रशासन द्वारा वैतरणी के उद्गम स्थल का जीर्णोद्धार के नाम पर पक्कीकरण कराये जाने से नदी का जल श्रोत बंद हो गया है. इससे ब्रह्मेश्वर मंदिर के तीनों कुंड सूख गये हैं. इसी कुंड से निकालने वाला पानी वैतरनी नदी का रूप धारण कर भद्रक में जाकर समुद्र से मिल जाता है. क्योंझर जिला अंतर्गत बांसपाल प्रखंड के गोनासिका स्थित ब्रह्मेश्वर मंदिर के तीन देव कुंड का जनवरी में डीएमएफ (डिस्ट्रिक मिनिरल फाउंडेसन) द्वारा 39 लाख 34 हजार की लागत से सामांतरित आदिवासी उत्थान समिति के माध्यम से कंक्रीट ढलाई का कार्य किया गया था. इससे वैतरणी नदी के उद्गम स्थल से निकलने वाला प्रारंभिक जल श्रोत बंद हो गया है, जिससे वैतरणी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया.
क्योंझर से मात्र 30 किमी की दूरी पर स्थित है पौराणिक गोनासिका. यहीं एक पहाड़ी शृंखला पर स्थित पत्थर के दो छिद्रों से जल धारा निकल कर कुछ दूर जाने के बाद अदृश्य हो जाती है. इस स्थान को गुप्त गंगा कहा जाता है. इससे तीन किमी की दूरी पर स्थित ब्रह्मेश्वर मंदिर के प्रांगण में बने सत्व, तम व रज नामक तीन कुंडों में पुनः जल धारा प्रकट हो जाती है. यहीं से जल धारा निकाल कर वैतरणी नदी का रूप धारण कर बहती है.
पक्कीकरण का हुआ था विरोध: 26 जनवरी-17 को प्रशासन द्वारा इन तीनों कुंडों को खोल कर कंक्रीट कर दिया गया था. तब इस कार्य का मंदिर प्रशासन व स्थानीय लोगों ने विरोध भी किया था. मंदिर के पुजारी रमेश चंद्र पंडा, अमूल्य पंडा, सदानंद पंडा, पूर्णचंद्र पंडा समेत स्थानीय लोगों व प्रमुख महेश्वर नायक ने बताया कि पक्कीकरण के लिए कनीय अभियंता को माना किया गया था, लेकिन नहीं सुनी गयी. परिणाम स्वरूप मंदिर के तीनों देव कुंड सूख गये और झरना भी बंद हो गया.
पाठ-पूजा में हो रही परेशानी, अब टैंकर से भरा जाता है पानी: नियम के अनुसार यहां स्थापित शिव लिंग की पूजा एवं जलाभिषेक कुंड के जल से ही करने की परंपरा है. कुंड सूखने से पूजा-पाठ में भी परेशानी हो रही है. कुंड का पानी सूखने पर प्रशासन द्वारा टैंकर से कुंड में पानी डाला जाता है. 16 मार्च को आयोजित बारूनी यात्रा के दौरान भी स्थानीय लोगों ने प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रकट किया था. वर्तमान में जलधारा बिल्कुल पतला हो कर कुंड के बगल से निकल रहा है. देव कुंड से निकले वाली धारा से गांव के 200 परिवार निर्भर थे. अब जलधारा बंद होने से क्षेत्र में पानी के लिए हाहाकार मचा है.
मंदिर के देवकुंड व जलस्त्रोत के बंद होने की जानकारी नहीं है. मॉनसून के आने पर अपने आप झरना बहने लगेगा. अधिक जानकारी आइटीडीए के टेक्निकल पर्सन ही दे सकते हैं. वहीं पूछने पर क्योंझर के जिलापाल एन तिरुमाला नायक ने कहा कि यह गंभीर मामला है. मैं खुद ही स्थल का निरीक्षण करूंगा और समस्या के समाधान का प्रयास करूंगा.
पूर्ण चंद्र मिश्र, उप जिलपाल, क्योंझर

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