बरहरवा. साहिबगंज जिले में मानसून की भारी बारिश ने गुमानी नदी को उफान पर ला दिया है, जिससे बरहेट, पतना और बरहरवा प्रखंड के दो दर्जन से अधिक गांवों में बाढ़ का पानी घुस आया है. हजारों लोग अपने घरों में पानी भर जाने से भय और अनिश्चितता के माहौल में जी रहे हैं. इस त्रासदी के बीच विडंबना यह है कि करोड़ों रुपये की लागत से बना गुमानी बराज परियोजना, जो इस बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था, खुद विभागीय लापरवाही और कानूनी दांव-पेच का शिकार होकर लाचार खड़ा है. यह संकट उस समय और गहरा गया जब पता चला कि बराज के फाटकों को नियंत्रित करने वाला सिस्टम पिछले सात महीनों से बंद पड़ा है. झारखंड उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद, सिंचाई विभाग का कार्यालय, जेनरेटर रूम और वेतन भुगतान से जुड़ा डीडीओ कोड 21 दिसंबर 2024 को सील कर दिया गया था, और तब से यह सील बंद है. इस प्रशासनिक खींचतान की जड़ में सिंचाई विभाग और एक ठेकेदार, मेसर्स एमआर सिन्हा, के बीच लंबित भुगतान का विवाद है. ठेकेदार ने अपने बकाया भुगतान के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. न्यायालय ने विभाग को भुगतान का निर्देश दिया, लेकिन जब इसका पालन नहीं हुआ, तो अदालत ने परियोजना के कार्यालय और उपकरणों को ही सील करने का आदेश दे दिया. इसका सीधा असर बराज के संचालन पर पड़ रहा है. बिजली और जेनरेटर के अभाव में, फाटकों को खोलने और बंद करने का काम कर्मचारियों द्वारा मैनुअल तरीके से किया जा रहा है. यह प्रक्रिया अत्यंत कठिन और समय लेने वाली है. गेट खोलने में लग जा रहा चार से पांच घंटे का समय कर्मचारियों के अनुसार, एक फाटक को मात्र एक से दो मीटर तक उठाने या गिराने में चार से पांच घंटे का समय लग जाता है. ऐसे में जब नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा हो, तो तुरंत निर्णय लेकर पानी छोड़ना या रोकना लगभग असंभव हो जाता है. कर्मचारी घंटों पसीना बहाकर अपनी जान जोखिम में डालकर इस काम को अंजाम दे रहे हैं, लेकिन उनकी मेहनत विशाल नदी के प्रवाह के सामने नाकाफी साबित हो रही है. सिंचाई विभाग के कार्यपालक अभियंता ने इस गंभीर स्थिति के बारे में जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता को पत्र लिखकर सूचित भी किया, लेकिन सात महीने बीत जाने के बाद भी विभागीय प्रक्रियाओं और अधिकारियों के ढुलमुल रवैये के कारण ठेकेदार के भुगतान और बराज को मुक्त कराने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई. आज, जब गुमानी नदी का पानी गांव-गांव में तबाही मचा रहा है, तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि एक ठेकेदार के भुगतान से जुड़ा मामला हजारों नागरिकों के जीवन पर भारी कैसे पड़ गया. यह घटना प्रशासनिक उदासीनता का एक दुखद उदाहरण है, जहां फाइलों में अटके एक विवाद की कीमत आम लोगों को अपने घरों और अपनी सुरक्षा से चुकानी पड़ रही है. क्या कहते हैं पदाधिकारी…. हमारे कार्यालय में डीजी सेट और दो कार्यालय लॉक्ड होने के कारण, हमें गेट मैनुअल तरीके से खोलना और बंद करना पड़ रहा है, जिससे काफ़ी परेशानी हो रही है. इस बारे में विभाग को सूचित भी किया गया है. मनुराज चतुर्वेदी, एइ, गुमानी बराज परियोजना
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