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गंगा में जलीय प्रजातियों के लिए खतरा पैदा कर रहे प्लास्टिक, शोध में हुआ खुलासा

Plastic Pollution in Ganga: गंगा के डूब क्षेत्र में सबसे अधिक प्रदूषण देखा गया, जहां प्रति वर्ग मीटर घनत्व 6.95 था, जो नदी तटरेखाओं की तुलना में लगभग 28 गुना अधिक था, जहां प्रति वर्ग मीटर घनत्व 0.25 था. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट का स्तर समान था. उच्च और निम्न जनसंख्या घनत्व वाले स्थानों के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं देखा गया.

Plastic Pollution in Ganga: गंगा नदी के उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र में प्लास्टिक प्रदूषण में सर्वाधिक मात्रा पैकेजिंग अपशिष्ट (Packaging Waste) की है. एक नये अध्ययन में यह बात सामने आयी है. इसमें कहा गया है कि क्षेत्र में कई संकटग्रस्त प्रजातियों का आवास है.

साहिबगंज के लाल बथानी और राधानगर में हुआ रिसर्च

झारखंड में साहिबगंज जिले के लाल बथानी और राधानगर के बीच के खंड का चयन इसलिए किया गया, क्योंकि इसमें 34 किलोमीटर का उच्च जैव विविधता वाला क्षेत्र शामिल है, जो गंगा डॉल्फिन और ‘स्मूथ कोटेड ओटर्स’ (दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में पाये जाने वाले ऊदबिलाव की एक प्रजाति) जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का आश्रय स्थल है.

76 किमी क्षेत्र में 37739 मलबे के टुकड़ों का हुआ दस्तावेजीकरण

भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के शोधकर्ताओं द्वारा ‘सस्टेनेबिलिटी’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में गंगा के 76 किलोमीटर क्षेत्र में 37,730 मलबे के टुकड़ों का दस्तावेजीकरण किया गया. कुल अपशिष्ट में पैकेजिंग अपशिष्ट का हिस्सा 52.4 प्रतिशत था, जिसमें खाद्य पदार्थों के रैपर, एकल-उपयोग पाउच और प्लास्टिक की थैलियां शामिल थीं.

अपशिष्ट में 23.2 प्रतिशत प्लास्टिक के टुकड़े

प्लास्टिक के टुकड़े 23.3 प्रतिशत के साथ, सर्वाधिक मात्रा में पाया गया दूसरा अपशिष्ट था. इसके बाद तंबाकू से संबंधित कूड़ा 5 प्रतिशत और कप, चम्मच और प्लेट जैसे एकल-उपयोग वाले कटलरी 4.7 प्रतिशत थे. मछली पकड़ने का सामान, कपड़ा और मेडिकल प्लास्टिक भी कम मात्रा में मौजूद थे.

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Plastic Pollution in Ganga: डूब क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रदूषण

डूब क्षेत्र में सबसे अधिक प्रदूषण देखा गया, जहां प्रति वर्ग मीटर घनत्व 6.95 था, जो नदी तटरेखाओं की तुलना में लगभग 28 गुना अधिक था, जहां प्रति वर्ग मीटर घनत्व 0.25 था. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट का स्तर समान था. उच्च और निम्न जनसंख्या घनत्व वाले स्थानों के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं देखा गया.

बाढ़ में बढ़ गये जलीय प्रजातियों के लिए खतरा पैदा करने वाले सामान

मौसमी अंतर नगण्य थे, लेकिन अध्ययन में पाया गया कि मानसून के बाद बाढ़ ने नदी में कचरा लाकर मलबे की भरपाई कर दी. अकेले उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र में, कुल मलबे का 61 प्रतिशत दर्ज किया गया, जिसमें बड़ी मात्रा में फेंके गये मछली पकड़ने के जाल और स्टायरोफोम शामिल थे, जो जलीय प्रजातियों के लिए खतरा पैदा कर रहे थे.

गंगा में मौजूद मलबे में सबसे ज्यादा 87 प्रतिशत घरेलू कचरा

मलबे में घरेलू कचरे का योगदान 87 प्रतिशत था, जबकि मछली पकड़ने के उपकरण का योगदान 4.5 प्रतिशत और धार्मिक चीजों का योगदान 2.6 प्रतिशत था. संगठित अपशिष्ट संग्रहण और निस्तारण प्रणालियों का न होना प्रदूषण स्तरों के बढ़ने के एक प्रमुख कारक के रूप में पहचाना गया.

2022-2024 के बीच किया गया रिसर्च

यह सर्वेक्षण वर्ष 2022 और वर्ष 2024 के बीच किया गया. इस सर्वेक्षण में प्लास्टिक कचरे को मापने और वर्गीकृत करने के लिए ट्रांसेक्ट-आधारित नमूने (नमूना संग्रहण की एक विधि) का उपयोग किया गया.

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Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

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