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गुमला के घाघरा में 75 साल बाद भी सड़क नहीं, सेरेंगदाग माइंस में ताला जड़कर बोले ग्रामीण- ‘सड़क दो, अधिकार दो’

Villagers Protest in Ghaghra: गुमला जिले में एक इलाका ऐसा भी है, जहां 75 साल बाद भी गांव में पक्की सड़क नहीं बनी. आखिरकार लोगों का आक्रोश फूट पड़ा और उन्होंने बॉक्साइट खनन और परिवहन दोनों रोक दिया. खनन कंपनी में तालाबंदी कर दी. कहा कि जब तक सड़क नहीं बनेगी, तब तक काम नहीं होने देंगे. भारी संख्या में लोग खनन कंपनी के पास धरना दे रहे हैं.

Villagers Protest in Ghaghra| घाघरा (गुमला), दुर्जय पासवान : गुमला जिले के घाघरा प्रखंड स्थित सेरेंगदाग माइंस इलाके में शुक्रवार सुबह ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा. लंबे समय से क्षेत्र की अनदेखी और बदहाली झेल रहे ग्रामीणों, रैयतों और मजदूरों ने एकजुट होकर माइंस ऑफिस में ताला जड़ दिया. वहीं धरना पर बैठ गये. इस तालाबंदी की वजह से पहाड़ पर खड़े सैकड़ों ट्रक फंस गये हैं.

खनन और परिवहन दोनों पूरी तरह से ठप

खनन और परिवहन दोनों पूरी तरह से ठप है. ग्रामीणों ने साफ कहा है कि जब तक इलाके में पक्की सड़क नहीं बन जाती, मूलभूत सुविधाएं उन्हें नहीं मिल जातीं, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा. धरना स्थल पर पूरे दिन गूंजता रहा – ‘सड़क दो, अधिकार दो’, ‘सड़क बने बिना ताला नहीं खुलेगा’ और ‘खनन से पहले विकास दो’.

51 साल से बॉक्साइट का खनन कर रही कंपनी

ग्रामीणों का कहना है कि पिछले 51 साल से कंपनी बॉक्साइट का खनन कर रही है, लेकिन यहां की जनता आज भी बदहाली और उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर है. गर्मियों में धूल से लोग बीमार पड़ते हैं और बरसात में सड़क की हालत तालाब जैसी हो जाती है. स्थिति इतनी गंभीर है कि जीवन की मूलभूत जरूरतें तक पूरी नहीं हो पा रही हैं.

Villagers Protest in Ghaghra: सड़क और सम्मान की जंग

ग्रामीणों ने कहा कि सड़क की जर्जर स्थिति ने जीवन असहनीय बना दिया है. पहाड़ से घाघरा मुख्यालय तक आने के लिए पुरुषों को मजबूरी में हाफ पैंट पहननी पड़ती है. महिलाओं को कपड़ा घुटनों से ऊपर उठाकर चलना पड़ता है. उन्होंने सवाल किया, ‘क्या आदिवासी मान-सम्मान से जीने का अधिकार नहीं रखते?’ ग्रामीणों का कहना है कि घुटनों तक कपड़ा उठाकर चलना अपमानजनक है और अब यह स्थिति बर्दाश्त नहीं होगी. सड़क निर्माण ही उनकी पहली और आखिरी मांग है.

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स्वास्थ्य और शिक्षा का हाल

ग्रामीणों ने बताया कि स्वास्थ्य भवन तो बना है, लेकिन अस्पताल कभी चालू नहीं हुआ. न डॉक्टर हैं और न दवा. बीमार पड़ने की स्थिति में मरीजों को खाट पर लादकर कई किलोमीटर पैदल ले जाना पड़ता है. शिक्षा की स्थिति भी शर्मनाक है. 2 कमरों का स्कूल बना है, लेकिन वहां बच्चों की जगह मवेशी बंधे रहते हैं. पीने का पानी भी बड़ी समस्या है. महिलाएं आज भी पहाड़ी झरनों से सिर पर मटके में पानी ढोने को मजबूर हैं. ग्रामीण बोले, ‘खनन से करोड़ों की कमाई होती है, लेकिन हमें बुनियादी सुविधा तक नहीं मिलती.’

Ghaghra Villagers Locked Serengdag Mines Office
खनन कंपनी के गेट में तालाबंदी करने के बाद वहां धरना-प्रदर्शन के लिए मौजूद ग्रामीण. फोटो : प्रभात खबर

महिलाओं की पीड़ा

महिलाओं ने कहा कि प्रसव के वक्त एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं करायी जाती. कंपनी बहाना बना देती है कि ड्राइवर नहीं है. सड़क खराब बताकर एंबुलेंस वाले घाघरा से आना नहीं चाहते. कई बार प्रसव रास्ते में ही हो गया और महिलाओं की मौत तक हो चुकी है. ऐसी स्थिति में अधिकांश प्रसव घर पर ही पारंपरिक तरीके से करने पड़ते हैं. महिलाओं ने कहा कि यह उनकी मजबूरी है, लेकिन अब वे खामोश नहीं रहेंगी.

कंपनी ने विरोध को दबाने के लिए ली उग्रवादियों की मदद

ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पूर्व में जब भी उन्होंने आंदोलन किया, कंपनी ने उग्रवादी संगठनों के जरिये उन्हें दबाने का काम किया. कई बार आंदोलनकारियों की पिटाई तक हुई और जमीन नहीं देने वाले ग्रामीणों से जबरन जमीन छीन ली गयी. उन्होंने कहा कि इस बार वे डरने वाले नहीं हैं और आंदोलन को हर हाल में जारी रखेंगे.

Ghaghra Villagers Locked Serengdag Mines For Road Gumla News
गुमला के घाघरा में 75 साल बाद भी सड़क नहीं, सेरेंगदाग माइंस में ताला जड़कर बोले ग्रामीण- ‘सड़क दो, अधिकार दो’ 4

सांसद-विधायकों से ग्रामीणों का मोहभंग

ग्रामीणों ने सांसद और विधायकों पर भी आक्रोश जताया. उनका कहना था कि जनप्रतिनिधि केवल चुनाव के समय इलाके में आते हैं, बड़े-बड़े वादे करते हैं और वोट लेकर चले जाते हैं. चुनाव जीतने के बाद वे क्षेत्र को भूल जाते हैं. कई बार ग्रामीणों ने वोट बहिष्कार किया, लेकिन प्रशासन ने हर बार सिर्फ आश्वासन देकर उन्हें टाल दिया. ग्रामीणों का कहना है कि इस बार वे किसी वादे पर भरोसा नहीं करेंगे. सड़क बनेगी और सुविधा मिलेगी, तभी आंदोलन खत्म होगा.

आंदोलन में उपस्थित ग्रामीण

धरना स्थल पर बड़ी संख्या में महिला और पुरुष ग्रामीण मौजूद रहे. प्रमुख रूप से राजेश उरांव, सुखनाथ उरांव, हरिश्चंद्र उरांव, बरती उरांव, लाली उरांव, प्रदीप उरांव, आनंद उरांव, संतोष उरांव, मिंटू उरांव, प्रभु उरांव, संजय उरांव, पवन उरांव, लालदेव उरांव, गंदूर उरांव, संजय उरांव, पवन उरांव, दिले उरांव, अनीता देवी, सुषमा देवी, तेतरी देवी, रजिंता देवी, अंजू देवी, सुनीता देवी, शशि किरण लकड़ा, चांदनी देवी, गुला देवी, धनेश्वर महतो के अलावा सैकड़ों ग्रामीण आंदोलन में शामिल हुए. सभी ने मिलकर कंपनी और प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.

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Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

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