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आदिवासी संस्कृति व शैक्षणिक विकास को मिलेगा साझा मंच

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24.67 करोड़ से तैयार हो रहे 127 धुमकुड़िया हाउस

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साहिबगंज. आदिवासी समाज अपनी समृद्ध कला और संस्कृति के लिए जाना जाता है. समय के साथ अनेक पारंपरिक प्रथाएं विलुप्ति के कगार पर पहुंच गयी हैं. इन्हीं में से एक है धुमकुड़िया, जो आदिवासी समाज की शिक्षा और सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. इस परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए साहिबगंज जिले में धुमकुड़िया हाउस निर्माण योजना के तहत 127 धुमकुड़िया हाउस बनाए जा रहे हैं. इस पहल का उद्देश्य आदिवासी समुदाय के लोगों को उनके सांस्कृतिक और शैक्षणिक विकास के लिए एक साझा मंच प्रदान करना है. धुमकुड़िया हाउस निर्माण की योजना साहिबगंज जिले में आइटीडीए के निदेशक, संजय कुमार दास के अनुसार, कुल 127 धुमकुड़िया हाउस का निर्माण किया जा रहा है. इनमें से बरहरवा में 3, बरहेट में 36, बोरियो में 30, पतना में 31, उधवा में 10 और तालझारी में 17 धुमकुड़िया हाउस बनाये जा रहे हैं. इस परियोजना पर कुल 24 करोड़ 67 लाख 51 हजार रुपये की लागत आयेगी. अब तक 127 में से 116 इकाइयों के लिए 370.13 लाख रुपये आवंटित किये जा चुके हैं, जिनमें से 33.43 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं. शेष 336.70 लाख रुपये की लागत से निर्माण कार्य प्रगति पर है. वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान 58 इकाइयों का निर्माण कार्य शुरू किया गया था, जिनमें से 30 इकाइयां पूर्ण हो चुकी हैं जबकि 28 इकाइयां अभी भी लंबित हैं. इनमें से 15 इकाइयों का कार्य प्रगति पर है और शेष 15 के लिए अब तक राशि आवंटित नहीं हुई है. उम्मीद है कि इस माह के अंत तक इनका निर्माण कार्य पूरा कर लिया जाएगा. वहीं, वर्ष 2023-24 में 18 इकाइयों का निर्माण शुरू किया गया है, जिनमें से 2 पूर्ण हो चुकी हैं. शेष 16 में से 9 इकाइयों के लिए राशि उपलब्ध नहीं है, जबकि सात इकाइयों में निर्माण कार्य जारी है. धुमकुड़िया का महत्व धुमकुड़िया उरांव आदिवासी समाज की एक पारंपरिक सामाजिक पाठशाला है, जो प्राचीन काल से गांव के लोगों द्वारा संचालित की जाती थी. यह न केवल शिक्षा प्रदान करने का माध्यम था, बल्कि समाज के लोग यहां जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे बच्चों के जन्म, शिक्षा, विवाह और सामाजिक संस्कारों के बारे में एक-दूसरे के साथ अनुभव साझा करते थे. समय के साथ आधुनिक शिक्षा प्रणाली के प्रसार के कारण धुमकुड़िया की यह परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त होने लगी. कुछ दशक पहले तक यह व्यवस्था कुछ गांवों में देखने को मिलती थी, लेकिन आज यह इतिहास के पन्नों तक ही सीमित रह गयी है. साहिबगंज जिले में धुमकुड़िया हाउस के निर्माण के माध्यम से न केवल आदिवासी समाज की प्राचीन परंपराओं को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है, बल्कि युवाओं को अपनी संस्कृति और मूल्यों से जोड़ने के लिए एक सशक्त मंच भी प्रदान किया जा रहा है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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