रांची. डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान मोरहाबादी में मंगलवार से जेंडर और क्लाइमेट चेंज पर चित्रकला कार्यशाला ”रेनबो” का आगाज हुआ. इसका आयोजन देशज अभिक्रम और असर के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है. कार्यशाला में झारखंड की 19 युवा महिला कलाकार शिरकत कर रही हैं, जिनमें अधिकांश आदिवासी समुदाय से हैं. ये कलाकार जलवायु परिवर्तन से महिलाएं कैसे प्रभावित हो रही हैं, उसे कैनवास पर चित्रित कर रही हैं.
घरों में महिलाएं अकेली रह जाती हैं
इसका उद्घाटन राज्यसभा सांसद महुआ माजी ने किया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ता है. ऐसा आयोजन एक नया विचार है और इस पर आगे भी काम होना चाहिए. उन्होंने झरिया का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां पुरुष बाहर काम करने के लिए चले जाते हैं और घरों में महिलाएं अकेली रह जाती हैं. वह उस क्षेत्र की कठिन परिस्थितियों का सामना करती हैं.
स्त्री और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं
इस मौके पर पर्यावरणविद नीतिश प्रियदर्शी ने कहा कि स्त्री और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं. पर्यावरण को बचाने में भी महिलाएं ही सबसे पहले आती हैं. देशज अभिक्रम के संस्थापक शेखर ने बताया कि पिछले एक दशक में झारखंड ने जलवायु परिवर्तन के तीव्र प्रभावों का सामना किया है. अनियमित वर्षा, जल संकट और वन क्षेत्रों के क्षरण जैसी समस्याएं ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों की महिलाओं को प्रभावित करती हैं. ये प्रभाव महिलाओं के श्रम को बढ़ाते हैं और वनों पर आधारित आजीविका को खतरे में डालते हैं. उन्होंने कहा कि हम एक ऐसा मंच बनाना चाहते थे, जहां राज्य की महिला कलाकार अपने अनुभवों को चित्रकला, स्केचिंग और अन्य कला विधाओं के माध्यम से व्यक्त कर सकें.
कला अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम
असर की जेंडर और क्लाइमेट कार्यक्रम की निदेशक नेहा सैगल ने कहा कि कला अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है. यह कार्यशाला जलवायु परिवर्तन को लोगों के जीवन के अनुभवों से जोड़ने में मदद करेगी. कार्यशाला में माधव और शशि बारला सहित अन्य लोग उपस्थित थे.
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