रांची़ विभिन्न महिला संगठनों के तत्वावधान में शुक्रवार को एसडीसी सभागार में आदिवासी महिला सम्मेलन हुआ. सम्मेलन में आदिवासी महिलाओं के अधिकार, उनकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति, उद्यमिता सहित समस्याओं पर चर्चा हुई. सम्मेलन में चाईबासा, पश्चिमी सिंहभूम, लोहरदगा सहित अन्य जिलों की महिला प्रतिनिधि भी शामिल हुईं. पहले सत्र में महिला उद्यमी संध्या सिंह कुंतिया ने उद्यमिता के क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं को आगे बढ़ने की बात कही. उन्होंने कहा कि व्यवसाय और उद्यमिता में आदिवासी समुदाय के लोग धीरे-धीरे आ रहे हैं, लेकिन इनमें महिलाओं की संख्या काफी कम है. महिलाएं उद्योग विभाग और सरकार की नीतियों को समझकर छोटे पैमाने पर उद्यमिता के क्षेत्र में आ सकती हैं.
एमएसएमई आदिवासी बोर्ड के गठन पर बात रखी
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ वासवी किड़ो ने डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 में संशोधन तथा आदिवासी महिला और व्यापार एमएसएमई आदिवासी बोर्ड के गठन पर बात रखी. उन्होंने कहा कि संताल क्षेत्र में ताबेन जोम प्रथा वहां की महिलाओं को संपत्ति (जमीन) पर अधिकार देती है, लेकिन समाज के ही लोग इस प्रथा के खिलाफ बात कर रहे थे. ज्योत्सना तिर्की ने कहा कि हमारा समाज रूढ़ीवादी प्रथा से संचालित होता है. हमारे समुदाय की संपत्ति में जल, जंगल और जमीन जैसी चीजें आती हैं. हम इन्हें व्यक्तिगत नहीं बल्कि समुदाय की संपत्ति के रूप में मानते हैं. पर बाहरी संस्कृति के प्रभाव से अपनी निजी संपत्ति जैसी सोच आ रही है. इस अवसर पर अगस्तीना सोरेंग, शालिनी साबू, मनोरमा एक्का, संगीता बेक, आलोका कुजूर, दीप्ति मिंज आदि उपस्थित थीं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है