रांची. एकल परिवार ने कई बीमारियों को जन्म दिया है. इसी से निकलकर आयी एक बीमारी ऑटिज्म भी है. यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि संयुक्त परिवार होने से बच्चों का संपर्क व लगाव घर के ज्यादा सदस्यों से था, जिससे उनका मानसिक और बौद्धिक विकास तेजी से होता था, लेकिन, अब एकल परिवार में यह नहीं हो रहा है. चिंता इसलिए है, क्योंकि झारखंड में हर 75 में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार है. विश्व ऑटिज्म दिवस पर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ अपेक्षा पाठक से प्रभात खबर के मुख्य संवाददाता राजीव पांडेय ने विशेष बातचीत की. पेश है बातचीत के मुख्य अंश.
ऑटिज्म आखिर बढ़ क्यों रहा है, झारखंड में इसकी स्थिति कैसी है?
ऑटिज्म बीमारी पहले से ही है, लेकिन इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं थी. इस समस्या और बीमारी के बारे में 19वीं सदी में लोगों को पता चलने लगा, क्योंकि लोगों में जागरूकता बढ़ी. मेडिकल साइंस के भी नये-नये शोध में इस बीमारी के बारे में पता लगने लगा. जहां तक झारखंड की बात की जाये, तो यहां 75 में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार है. यह आंकड़ा देश में 68 बच्चों पर एक है. समाज में एकल परिवार का प्रचलन बढ़ा है, जिससे यह बीमारी बढ़ रही है. संयुक्त परिवार में बच्चों का संपर्क परिवार के कई सदस्यों से हाेता था, लेकिन एकल परिवार में दो से तीन सदस्य ही मिलते हैं. ऐसे में बच्चों का बौद्धिक और मानसिक विकास नहीं हो रहा है. हमारे पास रांची के सेंटर में 40 ऐसे बच्चों का इलाज चल रहा है, जिससे स्थिति का आकलन किया जा सकता है.
मोबाइल और स्क्रीन टाइम कितना प्रभाव डालता है?
आटिज्म में मोबाइल और स्क्रीन टाइम का होना बहुत बड़ा कारण हो गया है. माता-पिता अपनी परेशानी से बचने के लिए छोटे बच्चों को मोबाइल थमा दे रहे है, जिससे बच्चों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है. मानिसक स्थिति पर सबसे ज्यादा मोबाइल प्रभाव डालता है. ऐसे में ढाई साल तक के बच्चों को मोबाइल से बिल्कुल दूर रखें. बच्चों में बोलने की समस्या हो रही है. जब बच्चे एक खास चीज (मोबाइल) पर फोकस करते हैं, तो उनका अन्य लोगों से मेलजोल और भावनात्मक लगाव नहीं हो पाता है. यानी मोबाइल से बच्चों का एकतरफा संचार होता है, जो ऑटिज्म का कारण बन रहा है.
ऑटिज्म को कैसे पहचानें और इलाज के लिए क्या करें?
बच्चों की उम्र के हिसाब से अगर मानसिक और बौद्धिक विकास नहीं दिखे, बच्चा पलटना और चलना नहीं सीखे, समझ में कमी दिखे, बोल नहीं पाये या बोलने में स्पष्टता नहीं दिखे, तो अभिभावक सजग हो जायें. ऐसी समस्या लेकर बच्चे के डॉक्टर से मिलें. डॉक्टर को एक-एक समस्या बतायें. ऑटिज्म के इलाज में एक पूरी टीम काम करती है. इसमें शिशु रोग विशेषज्ञ, इएनटी, हड्डी के डॉक्टर व शिशु न्यूरोलॉजिस्ट इलाज करते हैं. इस स्थिति में बच्चे को समय पर डॉक्टर के पास लाना अहम होता है. जितनी जल्दी बच्चे का इलाज शुरू होगा, समस्या उतनी ही जल्दी समाप्त होगी.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है