वरीय संवाददाता, रांची. एडवोकेट एसोसिएशन झारखंड हाइकोर्ट की ओर से सोमवार को भी राज्य के बाहर के अधिवक्ता को कॉलेजियम द्वारा हाइकोर्ट का न्यायाधीश बनाने की अनुशंसा का विरोध किया गया. एसोसिएशन के प्रस्ताव के आलोक में अधिवक्ता हाइकोर्ट के तीन कोर्ट की अदालती कार्यवाही में शामिल नहीं हुए. हालांकि महाधिवक्ता राजीव रंजन द्वारा आठ मार्च को जारी निर्देश के आलोक में सोमवार को राज्य सरकार के अधिवक्ता व एपीपी कोर्ट नंबर-एक, तीन व कोर्ट नंबर-चार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पहुंचे. इसका एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा कोर्ट के बाहर विरोध किया गया. इसको लेकर सरकारी अधिवक्ता व दूसरे सदस्य अधिवक्ताओं के बीच तकरार भी हुई. इसी दाैरान कुछ सरकारी अधिवक्ता कोर्ट में भी चले गये. इसको गंभीरता से लेते हुए सोमवार को आयोजित एसोसिएशन की आमसभा में प्रस्ताव पारित किया गया. कहा गया कि प्रस्ताव का अनुपालन नहीं करने पर सदस्यता निलंबित कर दी जायेगी. एसोसिएशन के प्रस्ताव का अनुपालन नहीं करने पर राज्य सरकार के 15 अधिवक्ताओं को शो कॉज नोटिस जारी करने का निर्णय लिया गया. इसमें अधिवक्ता मनोज कुमार मिश्रा, विभूति शंकर सहाय, नीरज मिश्रा, देवेश कृष्णा, वंदना भारती, श्वेता सिंह, रजनीश वर्द्धन, पंकज कुमार, अनुराधा सहाय, विनित कुमार वशिष्ठ, विश्वनाथ राय, सतीश कुमार, अभय तिवारी, ओपी तिवारी व अधिवक्ता चंदन कुमार शामिल हैं. एसोसिएशन की अगली आमसभा 17 मार्च को बुलाने का निर्णय लिया गया, जिसमें आगे की रणनीति तैयार की जायेगी. कोर्ट का बहिष्कार या अदालती कार्यवाही में सरकार के वकीलों को जाने से जबरन रोकना सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है. सभी लॉ ऑफिसर, पीपी, विशेष लोक अभियोजक, एपीपी आदि को कोर्ट नंबर-एक, तीन व चार में सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई में सरकार की ओर से पक्ष रखने का निर्देश दिया गया था. उसी निर्देश के आलोक में अधिवक्ता कोर्ट में गये थे. उन्हें कोर्ट के बाहर जबरन रोकना गलत है. यह अवमानना के दायरे में आता है. -राजीव रंजन, महाधिवक्ता, झारखंड
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