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आदिवासियों को नेटिव अमेरिकन जैसा आइडी कार्ड मिले : बबीता

झारखंड के खूंटी, पश्चिम सिंहभूम समेत अन्य इलाके पिछले तीन-चार साल से पत्थलगड़ी को लेकर चर्चा में हैं. पत्थलगड़ी के मुद्दे पर कई ऐसे सवाल सामने आये हैं, जिन्हें लेकर प्रभात खबर के वरीय संवाददाता मनोज लकड़ा ने फरारघो​षित नेत्री बेलोसा बबीता कच्छप से पिछले दिन बात की थी. इस बातचीत में बबीता कच्छप से […]

झारखंड के खूंटी, पश्चिम सिंहभूम समेत अन्य इलाके पिछले तीन-चार साल से पत्थलगड़ी को लेकर चर्चा में हैं. पत्थलगड़ी के मुद्दे पर कई ऐसे सवाल सामने आये हैं, जिन्हें लेकर प्रभात खबर के वरीय संवाददाता मनोज लकड़ा ने फरारघो​षित नेत्री बेलोसा बबीता कच्छप से पिछले दिन बात की थी. इस बातचीत में बबीता कच्छप से कई सवाल किये गये, जिनका उन्होंने बेबाकी से जवाब दिया है. प्रस्तुत है बातचीत के अंश.
Q आप देश की आजादी के पहले के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 व इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 की बात करती हैं, पर संविधान के लागू होने के बाद गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 को भारत में 26 जनवरी 1950 से और इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 395 से निरस्त कर दिया गया है़. आप इसे आदिवासी स्वशासन के लिए आधार कैसे बना सकती हैं?
संविधान का अनुच्छेद 395 जरूर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 और इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 को निरस्त करता है, पर संविधान का अनुच्छेद 372 (1) इन दोनों को संविधान के अनुच्छेद 13 के अधीन सुरक्षित रखता है़.
इसे विस्तार से समझने के लिए फोर्स ऑफ लॉ/प्रवृत्त विधि और विद्यमान विधि को समझना होगा़ यह इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के सेक्शन 8, 9 और 18 द्वारा आदेशित है, आजादी को लेकर शर्त है़ इसको ही संविधान के अनुच्छेद 13 (3)( क) में आर्डर, आदेश, नियम कहा गया है़. संविधान पूर्व (15 अगस्त 1947-26 जनवरी 1950 तक) भारत में दो तरह के अंग्रेजी कानून लागू थे. पहला, ऐसा अंग्रेजी कानून जो भारत या ब्रिटेन की संसद, विधानमंडल ने बनाया, जिस एग्जिस्टिंग लॉ या विद्यमान विधि कहा जाता है़. संविधान के अनुच्छेद 372 (2) द्वारा राष्ट्रपति को शक्ति दी गयी कि वह पुराने एग्जिस्टिंग लॉ को संशोधित कर लागू कर सकते हैं. इसी 372 (2) द्वारा राष्ट्रपति ने एडॉप्शन ऑफ लॉ ऑर्डर द्वारा 3000 से अधिक ब्रिटिश कानूनों को लागू किया है. इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 सेक्शन 18 (3) संविधान के अनुच्छेद 13 द्वारा लागू है़ 13(1) के अनुसार अंग्रेजी कानून के संशोधन करने पर, लोकतंत्र (अनुच्छेद 13 के अनुसार विरोध, प्रदर्शन, ज्ञापन आदि) द्वारा विरोध पर, संशोधन खत्म कर पुराना कानून ज्यों का त्यों लागू हो जाता है.
दूसरा, अनुच्छेद 13 (2) में 1950 के बाद के बनाये संसद, विधानमंडल के नये कानून और नये कानून में संशोधन है़ं, जिनके हमारे अनुरूप नहीं होने पर, लोकतंत्र द्वारा विरोध प्रदर्शन के बाद पूरा संशोधन रद्द होता है, साथ ही नया कानून भी रद्द हो जाता है़. 13(3) में फोर्स ऑफ लॉ/प्रवृत्त विधि को रखा गया है, जिसे अनुच्छेद 372 (1) द्वारा भी देखा जा सकता है़. वैसे कानून जिन्हें ब्रिटिश संसद या ब्रिटिश विधानमंडल में नहीं बनाया गया है, 372(1) द्वारा स्वत: लागू हो गये हैं, जिन्हें अनुच्छेद 13 (3)(क) में ऑर्डर/आदेश, अध्यादेश, उपविधि, नियम, रुढ़ि और प्रथा में लिखा गया है. इससे ही इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 और इंडियन इंडिपेंडेंस के आदेश के तहत गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 प्रभाव में आया और आदिवासियों के कस्टमरी लॉ यानी रुढ़ि और प्रथा स्वतः लागू हो गये.
ऐसे मामलों में सक्षम अधिकारी भारत का संसद और विधानमंडल नहीं है, इसलिए अनुच्छेद 13(3)( क) में लिखित बातों को बदलने का अधिकार भी इन्हें नहीं है़. सक्षम प्राधिकारी होने के कारण आदिवासी ही स्वयं इसका रूप बदल सकते हैं, संशोधन कर सकते हैं, कोई अन्य नही़ं. 13 (3) (क) के तहत रुढ़ि प्रथा को विधि का बल है, कानून की शक्ति है़. यही पत्थलगड़ी आंदोलन था़. जब सब कुछ संविधान से होकर ही जाता है, तो आदिवासी स्वशासन के लिए इसे आधार कैसे नहीं बनायें?
Q ब्रिटिश काल के पार्शियली एक्सक्लूडेड एरिया को संविधान की पांचवीं और एक्सक्लूडेड एरिया को छठी अनुसूची के तहत रखा गया है, क्या आप इसे मानती हैं. संविधान 26 जनवरी 1949 को लागू हुआ और 26 जनवरी 1950 से भारत की भौगोलिक सीमा में रहने वाले सभी भारतीयों को इससे मानना है?
बिल्कुल मानती हूं. यही नहीं बल्कि शिडयूल्ड डिस्ट्रिक्ट 1874, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 का सेक्शन 52ए, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 का सेक्शन 91, 92 से चले आ रहे रेगुलेशन को भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 में राष्ट्रपति को आदिवासी समाज के लिए रेगुलेशन बनाने के लिए दिया गया है.
जिसे देश के सभी राज्यपालों को पांचवी अनुसूची के लिए केंद्रीय रेगुलेशन को ध्यान में रखते हुए अनुसूचित क्षेत्र के साथ ही पूरे भारत के सामान्य क्षेत्रों के आदिवासियों पर लागू करना है़ जिसकी व्याख्या जनरल क्लॉज एक्ट से होती है. संविधान 1950 के लागू होने के बाद भारत की भौगोलिक सीमा के अंदर रहने वाले सभी भारतीयों को इसे मानना है.
Q आरोप है कि पत्थलगड़ी का मकसद पांचवीं अनुसूची के खनिज बहुल क्षेत्र खूंटी व आसपास के इलाकों को अशांत और देशद्रोही घोषित कराना था, ताकि उन क्षेत्रों में खनन कराने के लिए पुलिस-प्रशासन का आसानी से प्रवेश हो सके. इस पूरे प्रकरण में क्षेत्र के हजारों आदिवासियों पर देशद्रोह का आरोप लगा और यह पूरा क्षेत्र आशांत हो गया़ इस पर क्या कहेंगी?
गलत आरोप है. यदि ऐसा होता तो पत्थलगड़ी आंदोलन के प्रमुख नेताओं पर देशद्रोह और अन्य तरह के ​केस नहीं लगते. सुप्रीम कोर्ट का समता जजमेंट 1997 आदिवासी क्षेत्रों, अनुसूचित क्षेत्रों में खनन लीज को अवैध साबित करता है.
उसके अनुसार आदिवासी भूमि पर दबे खनिज को आदिवासी ही निकालेगा या आदिवासी द्वारा बनी समिति के माध्यम से निकाला जायेगा. पर पिछली सरकार के साजिशों से भी इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि विधानसभा चुनाव से पहले एसी भारत सरकार के नाम पर कुछ लोग विधानसभा चुनाव बहिष्कार के नाम पर खूंटी क्षेत्र में गये थे, जबकि एसी कुंवर केशरी के बेटे केशरी रविंद्र सिंह ने इससे साफ मना किया है. फिर वे कौन थे जिन्होंने उन क्षेत्रों में प्रवेश किया?
Q विवादित पत्थलगड़ी नेता जोसेफ पूर्ति ने वोटर आइडी कार्ड, आधार कार्ड आदि के बहिष्कार का आह्वान किया था. क्या सरकारी सुविधाएं नहीं लेने, सरकारी स्कूलों को बंद करने की बातें भोले-भाले आदिवासियों को सरकार के खिलाफ खड़ा करना नहीं था?
जोसेफ पूर्ति ने जितनी बातें कही, वह संविधान सम्मत है. वोटर आइडी कार्ड और आधार कार्ड क्या नागरिकता का सबूत पेश करता है? संविधान के अनुच्छेद पांच के तहत भारत के राज्य क्षेत्र में बसने वाले सभी भारतीय नागरिक हैं, तो फिर 70 सालों से एक समान नागरिक संहिता/ कॉमन सिविल कोड क्यों नहीं लागू हुआ? य​​ह इसलिए क्योंकि पूरे भारत में दो तरह की व्यवस्था है. विवाद यहीं से शुरू है.
ब्रिटेन ने जहां भी शासन किया, वहां पर एक देश दो व्यवस्था चलायी और वर्तमान में भी उसी तरह की व्यवस्था हस्तांतरित डोमिनियन में लागू है. ब्रिटिश नागरिक यानी जिन पर अंग्रेजों ने शासन किया, उसे कॉमनवेल्थ नागरिकता कहा गया़ जिसे भारत का नागरिक कहा गया. वहीं, वैसे क्षेत्र के लोग जिन पर अंग्रेजों ने शासन नहीं किया, वे ब्रिटिश नागरिक नहीं, भारत के नागरिक नहीं, बल्कि नेटिव (मूल मालिक), अबोरिजिन हैं (रेफेरेंस, अडॉप्शन ऑफ लॉ आर्डर 1950). यह क्षेत्र इंपीरियल गजेटियर के अनुसार देश के अंदर देश था. पांचवीं अनुसूची को भी संविधान के अंदर संविधान ​ही कहा जाता है.
आदिवासियों को मुख्यधारा में लाना तो ठीक है, पर वोटर आइडी, आधार कार्ड को नागरिकता का आधार देना असंवैधानिक है. आधार कार्ड और वोटर आइडी कार्ड के माध्यम से आदिवासियों को नागरिक बनाकर कॉमन सिविल कोड लागू करने के बाद भूमि के सारे कानून खत्म कर दिये जायेंगे. जबकि वर्तमान में नागरिक नहीं होकर नेटिव होने के कारण उनके भूमि संरक्षण के बहुत सारे कानून लागू हैं. आधार कार्ड वोटर आइडी कार्ड की जगह आदिवासियों को नेटिव अमेरिकन जैसा अलग आइडी कार्ड देना चाहिए.
आरोप है कि आपने लोकसभा चुनाव के बहिष्कार की बात की थी. खूंटी में 21 हजार लोगों ने नोटा का बटन दबाया और वहां भाजपा लगभग 1500 वोटों से जीत गयी. इस पर आपका क्या कहना है? यदि वोट का बहिष्कार करना ही था, तब नोटा का बटन दबाकर चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा क्यों बने?
लोकसभा चुनाव को रोकने की मेरी प्रक्रिया बिल्कुल संवैधानिक थी. इसके लिए मैंने और हमारे लोगों ने राष्ट्रीय चुनाव आयोग, राष्ट्रपति, राज्यपाल, कलेक्टर को आवेदन दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन डाला. देर से पिटीशन डालने की वजह से चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी, पर माननीय चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार, विधि और न्याय विभाग, राष्ट्रीय जनजातीय मंत्रालय, राष्ट्रीय चुनाव आयोग को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है. अगर खूंटी के लोगों तक मेरी बात पहुंचती तो वे नोटा ही नहीं दबाते, चुनाव में शामिल नहीं होते.

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