Happy Valentine”s Day: झारखंड की वादियों में गूंज रहीं हैं ये अमर प्रेम कहानियां…
Happy Valentine’s Day:प्रेम क्या है? समाज प्रेम को क्यों गलत मानता है? प्रेम को लेकर भारतीय समाज क्यों संकीर्ण है? प्रेम आकर्षण है या कुछ और? संन्यासी की नजर में प्रेम क्या है? इन सब पर प्रकाश डाला योगदा सत्संग मठ के संन्यासी स्वामी ईश्वरानंद जी ने. उन्होंने परमहंस योगानंद जी की कही बात साझा […]
Happy Valentine’s Day:प्रेम क्या है? समाज प्रेम को क्यों गलत मानता है? प्रेम को लेकर भारतीय समाज क्यों संकीर्ण है? प्रेम आकर्षण है या कुछ और? संन्यासी की नजर में प्रेम क्या है? इन सब पर प्रकाश डाला योगदा सत्संग मठ के संन्यासी स्वामी ईश्वरानंद जी ने. उन्होंने परमहंस योगानंद जी की कही बात साझा की.
परमहंस योगानंद ने कहा था प्रेम प्रकृति में सबसे शक्तिशाली भावना
योगानंद जी ने कहा था : ओनली लव कैन टेक माइ प्लेस. मैं न भी रहूं और मेरे प्रति प्रेम है, तो समझना कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं. उन्होंने बताया था कि प्रेम प्रकृति में सबसे शक्तिशाली भावना है. संपूर्ण सृष्टि ईश्वर के प्रेम पर आधारित है़ योगानंद जी के शिष्यों ने उन्हें टाइटल दिया था प्रेमावतार का. प्रेम पर उन्हाेंने बहुत कुछ कहा है. लेकिन ये वह प्रेम नहीं, जिसे साधारण रूप में हम समझते हैं. एक बच्चा मां से प्रेम करता है, क्योंकि उसकी सारी जरूरतें मां से पूरी हो रही हैं.
अगर जरूरतें पूरी न हों, तो फिर प्रेम भी नहीं रहेगा. ये स्वार्थ का प्रेम हैं. किशोरावस्था, युवावस्था में प्रेम शारीरिक आकर्षण है. शुद्ध प्रेम का उदाहरण है मां का अपने बच्चे के प्रति प्रेम. मां का अपने बच्चे के प्रति नि:स्वार्थ प्रेम होता है. बच्चे जब छोटे होते हैं, उस समय भी मां को दुख देते हैं. बड़े होते हैं उस समय भी दुख देते हैं. फिर भी मां प्यार करती है. योगानंद जी कहते हैं शुद्ध प्रेम को समझना हो, जानना हो, तो मां का बच्चे के प्रति प्रेम को ही समझना होगा.
झारखंड की फिजाओं में कई अमर प्रेम कहानियां सदियों से गूंज रहीं हैं. इन्हें लोग आज भी नहीं भूले. हीर-रांझा, लैला-मजनू की तरह ही कई अमर प्रेमी जोड़ियों की कहानियां झारखंड में भी हैं. इन प्रेमियों की लोग कसमें खाते हैं. आज वेलेंटाइन डे है, प्रेम दिवस. प्रेम, जीवन की सबसे सुंदर भावना. इसे इंसान ही नहीं पशु-पक्षी भी महसूस करते हैं. वेलेंटाइन डे को सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका से जोड़ कर देखना इसे छोटी सीमा में बांधने जैसा है. यह इससे ऊपर शाश्वत प्रेम का मामला है. एक पवित्र भावना, जो इंसान को इंसान बनाती है. आज हम झारखंड की कुछ अमर कहानियां आपके सामने ला रहे हैं.
दशम फॉल में आज भी बिंदी के प्रेम में भटकता है छैला
तमाड़ के बागुरा पीड़ी गांव का छैला संदू और पाक सकम गांव में रहनेवाली बिंदी की प्रेम कहानी अदभूत है. छैला सिंदू को प्रेमिका से मिलने जाने के लिए दशम फॉल पार करना पड़ता था. वह रोज हाथ में बांसुरी, गले में मांदर और कंधे पर मुर्गा लेकर प्रेमिका से मिलने जाता था. दशम को वहां लटकती लताओं के सहारे पार करता था. गांव के लोगों को जब इसका पता चला, तो दोनों को जुदा करने की योजना बनायी गयी. ग्रामीणों ने उस लता को आधा काट दिया जिसके सहारे छैला दशम फॉल पार करता था. जैसे ही छैला फॉल पार करने लगा, लता टूट गयी और वह फॉल में समा गया.
नेतरहाट का मैगनोलिया प्वाइंट है इश्क का गवाह
नेतरहाट के एक चरवाहे को अंग्रेज अधिकारी की बेटी मैगनोलिया से प्यार हाे गया था. चरवाहा शाम को नेतरहाट के सनसेट प्वाइंट पर अपने मवेशियों को चराने पहुंचता था. वहां वह बांसुरी बजाता था. एक बार गांव में छुट्टी बिताने अंग्रेज पदाधिकारी अपने परिवार के साथ पहुंचा. उसकी बेटी चरवाहे की बांसुरी सुन उसकी दीवानी हो गयी. रोज की मुलाकात प्यार में बदल गया. इसकी भनक मैगनोलिया के पिता को लग गयी. गुस्साये अंग्रेज ने चरवाहे की हत्या करवा दी. यह सुन मैगनोलिया ने भी सनसेट प्वाइंट से अपने घोड़े के साथ छलांग लगा दी. मैगनोलिया प्वाइंट उनके प्रेम का गवाह है.
आज भी चर्चित है कोयल और कारो की प्रेम कहानी
डालटेनगंज और आस-पास के इलाकों में कोयल और कारो की प्रेम कहानी आज भी सुनी और सुनायी जाती है. कोयल उस समय के मुंडा राजा की बेटी थी. उस समय नाग सांप को लेकर लोग काफी भयभीत रहते थे. कोयल अक्सर पिता से छुप कर नाग की तलाश में जंगल में जाती थी. एक दिन उसे जंगल में नागों के देवता कारो मिलते हैं. दोनों में प्रेम हो जाता है. अक्सर दोनों मिलने लगते हैं. मुंडा राजा को जब इसका पता चला, तो उन्होंने कोयल को जंगल से दूर कर दिया. बाद में ईश्वरीय शक्ति से कोयल नदी में बदल जाती है और यह प्रेम कहानी अमर हो जाती है.
पांच बहनों के प्रेम और धोखे की निशानी है पंचघाघ
पंचघाघ जलप्रपात से जुड़ी प्रेम कहानी कौतूहल का विषय है. लोगों का मानना है कि पंचघाघ जलप्रपात से बहनेवाली पांच धाराएं पांच बहनों के अंतिम निश्चय का प्रतीक है. यह निश्चय साथ जीवन जीने का नहीं, बल्कि एक साथ जान देने का है. माना जाता है कि खूंटी गांव में पांच बहनें रहती थीं, जिन्हें एक ही पुरुष से प्रेम हो गया था. सगी बहनों को जब उनके साथ हो रहे विश्वासघात का पता चला, तब तक देर हो चुकी थी. असफल प्रेम के कारण पांचों बहनों ने नदी में कूद कर अपनी जान दे दी. माना जाता है कि इसके बाद से ही जलप्रपात की धारा पांच हिस्सों में बंट गयी. और आज भी ये अलग-अलग हैं.
बैजल के प्रेम की गूंज इंग्लैंड तक सुनी गयी
गोड्डा जिले के सुंदरपहाड़ी प्रखंड का गांव कल्हाझोर वीर बैजल सोरेन के कारण जाना जाता है. बैजल बाबा सुंदरपहाड़ी में मवेशी चराते हुए बांसुरी बजाते थे. एक बार साहूकार ने गांव के मवेशियों को बंधक बना लिया.
बैजल सोरेन ने साहूकार का सिर काट कर पहाड़ पर टांग दिया. अंग्रेजों ने बैजल को गिरफ्तार कर फांसी की सजा सुनायी. फांसी से पहले उसने बांसुरी बजा कर सुनायी, जिसे सुन समय का पता नहीं चला और फांसी का निर्धारित समय बीत गया. बांसुरी सुन अंग्रेज अफसर की बेटी को उससे प्रेम हो गया. बाद में वह बैजल को अपने साथ इंग्लैंड ले गयी.
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