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#Jharkhand@18years: पूर्व विधायक का दबाव भी दिव्यांग बुधुवा को झुका नहीं सका, काबिलों को ही दी जगह

झारखंड स्थापना के 18 साल पूरे हो गये. हम युवा झारखंड की कुछ कहानियां लेकर आपके सामने आये हैं. इनके सफर से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे झारखंड के युवा अलग-अलग क्षेत्रों में अपने लिए स्थान बना रहे हैं. झारखंड स्थापना दिवस पर शुरू हुई सीरीज की यह आठवीं कड़ी है. इस कड़ी […]

झारखंड स्थापना के 18 साल पूरे हो गये. हम युवा झारखंड की कुछ कहानियां लेकर आपके सामने आये हैं. इनके सफर से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे झारखंड के युवा अलग-अलग क्षेत्रों में अपने लिए स्थान बना रहे हैं. झारखंड स्थापना दिवस पर शुरू हुई सीरीज की यह आठवीं कड़ी है. इस कड़ी में पढ़ें पंचायतनामा के साथी पवन कुमार के कलम से बुधुवा की कहानी. बुधुवा ने अपनी मेहनत से वह सबकुछ हासिल किया है, जो बगैर हौसले के संभव नहीं. दिव्यांग बुधुवा गांव में अलग पहचान रखते हैं. हर किसी की मदद करते हैं. गांव में बिचौलियों को नहीं आने देते. सीधे मदद पहुंचाने की कोशिश करते हैं. ऐसे युवाओं की कहानियां ही झारखंड को बचाये रखती है. ग्रामीण स्तर पर बुधुवा जैसे लोग चुपचाप काम करते हैं.

रांची जिले के मांडर प्रखंड स्थित ब्रांबे पंचायत का गांव है करंजटोली. गांव का बुधुआ उरांव को हर कोई जानता है. ग्रामीणों के बीच लोकप्रियता भी है और उनके प्रति सम्मान भी. बुधुवा उरांव दिव्यांग हैं. उनका दाहिना पैर ठीक से काम नहीं करता है. बुधुवा उरांव शरीर से भले ही कमजोर हैं, लेकिन उनकी आवाज में दम है. हौसलों में दम हैं. हमेशा सामाजिक कार्यों में आगे रहते हैं. अपनी मेहनत से ही उन्होंने खुद का पक्का मकान बनाया है. घर में चार पहिया वाहन है. आम इंसान की तरह बुधुवा दो बच्चे और पत्नी के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं. बुधुवा उरांव साल 2010-2015 तक मांडर प्रखंड के प्रमुख भी रहे हैं और आदिवासी सरना महासभा के संस्थापक सदस्यों में से भी एक हैं.
जरूरतमंदों को मिला सहारा
बुधुवा उरांव के चुनाव जीतने के बाद उनके गांव के लोगों को प्रखंड कार्यालय नहीं जाना पड़ता था. प्रखंड मुख्यालय से जुड़े कार्य बुधुवा उरांव ही करा देते थे. करंजटोली गांव में सिर्फ जरूरतमंद लोगों को ही प्रधानमंत्री आवास का लाभ मिला, क्योंकि ग्रामसभा में बीडीओ और जनप्रतिनिधि की मौजूदगी में लाभुकों का चयन पारदर्शी तरीके से कराया गया. निगरानी करते हुए कई बार बिचौलियों द्वारा की जा रही अवैध वसूली को रोकने का प्रयास किया गया. ग्राम करगे में पारा शिक्षक की नियुक्ति को लेकर पूर्व विधायक का काफी दबाव था, लेकिन इसके बावजूद पूरी अहर्ता रखनेवाले की ही नियुक्ति हुई. रांची में आयोजित बैठकों में भी सभी मामलों में खुलकर अपनी राय रखने लगे.
घर की चिंता के कारण अस्पताल छोड़ कर भाग आये घर
बुधुवा उरांव का बचपन भी अन्य बच्चों की तरह ही था. वो जन्म से दिव्यांग नहीं थे. आठ वर्ष की उम्र में बुधुवा बीमार पड़े और उस बीमारी के कारण चेहरा और पैर खराब हो गया. पिताजी काम करने के लिए कोलकाता गये हुए थे. घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी, पर किसी तरह इलाज कराने की कोशिश स्थानीय स्तर पर की गयी. धीरे-धीरे दाहिने पैर ने काम करना बंद कर दिया. इसके बाद पड़ोस के ही नंदु टाना भगत ने बुधुवा को इलाज के लिए रिम्स लाया, जहां उन्हें भर्ती किया गया. डॉक्टरों ने ऑपरेशन की बात कही. इलाज में अधिक पैसे खर्च होने और इसे जुटाने में गांव की जमीन बिकने की बात सामने आयी. वह बिना किसी को बताये व बिना इलाज कराये रिम्स से वापस घर आ गये. इसके बाद इसे ही अपनी नियति समझ लिया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी.
शिक्षा को हथियार बनाने की तैयारी की
कुड़ूख में स्नातक बुधुवा की प्रारंभिक शिक्षा भी काफी परेशानी भरी रही. गांव से एक किलोमीटर दूर स्कूल से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की. वहीं, तीन किलोमीटर दूर हाइस्कूल से शिक्षा ली. उन्हें लाठी के सहारे स्कूल की दूरी तय करनी पड़ती थी. इसी लाठी के सहारे बुधुवा ने अपनी शिक्षा पूरी की. सरकारी सुविधा के तौर पर उन्हें 600 रुपये का मासिक पेंशन मिलती है.
बुधुवा को आगे बढ़ाने में मिला राजू का भरपूर सहयोग
बुधुवा के जीवन में कई ऐसे मौके आये, जब उन्हें लगा कि वो आगे बढ़ नहीं पायेंगे. घर में गरीबी थी. पिताजी एक होटल में काम करते थे. उससे किसी तरह गुजारा हो पाता था. ऐसे समय में एक युवक राजू ने उनका हौसला बढ़ाया था. राजू ने समझाया कि हिम्मत नहीं हारना है और शिक्षा को जारी रखना है. शिक्षा एक ऐसा हथियार है, जिसके जरिये जिंदगी में बड़ी से बड़ी जंग लड़ी जा सकती है. उसी का परिणाम है कि बुधुवा आज बड़े मंचों से भी अपनी बात आसानी से रखते हैं.
पैसा खर्च किये बिना चुनाव लड़ा, प्रखंड प्रमुख बने
सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहनेवाले बुधुवा की एक अलग पहचान थी. दोस्तों ने पंचायत चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. सामाजिक कार्यों में हमेशा सक्रिय रहने के कारण पंचायत चुनाव में अधिक पैसे भी खर्च नहीं करने पड़े. बुधुवा चुनाव लड़े और जीत गये. इसके बाद प्रखंड प्रमुख के तौर पर प्रखंड क्षेत्र में कई कार्य किये.
मेहनत जारी, इरादा पक्का, तो सफलता निश्चित : बुधुआ उरांव
प्रखंड प्रमुख रहे बुधुवा उरांव कहते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में भी इंसान को हार नहीं माननी चाहिए. आत्मविश्वास की ताकत सबसे बड़ी ताकत होती है. अगर आप दिव्यांग हैं, तो शारीरिक कमजोरी को कभी हावी नहीं होने दें और अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बनायें. अगर भगवान ने आपको इस रूप में रखा है, तो जरूर उसके पीछे कुछ न कुछ मकसद होगा. हमें एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि किसी के साथ गलत या धोखा नहीं करना चाहिए.

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