नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों से कहा है कि जो मामले ऊपरी अदालतों में लंबित हैं, उनमें वह नियमित जमानत देने की परिपाटी को तुरंत बंद कर दें. शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अगर किसी आरोपी को ऊपरी अदालत ने पहले ही अग्रिम जमानत दी हुई है और मामला वहां लंबित है, तो आरोपी निचली अदालत में आत्मसमर्पण नहीं कर सकता. वह निचली अदालत से जमानत भी नहीं मांग सकता.
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न्यायालय ने कहा कि देश में आपराधिक मामलों की सुनवाई करनेवाले सभी न्यायिक अधिकारियों के संज्ञान में यह बात लाने के लिए सभी न्यायिक अकादमियों के निदेशकों को उसके आदेश की प्रतियां भेजी जायें. जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने एक घटना को संज्ञान में लिया, जिसमें झारखंड में एक निचली अदालत ने उस आरोपी को जमानत दे दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट से पहले ही अग्रिम जमानत मिल गयी थी. न्यायालय में उसके मामले की सुनवाई चल रही है और उसे अंतरिम राहत दी गयी.
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पीठ ने कहा, ‘देश में निचली अदालतों में ऐसी परिपाटी चल रही है और हमने कई ऐसे मामले देखे हैं. तो अब वक्त आ गया है कि निचली अदालतों को यह बताया जाये कि ऐसी परिपाटी बंद हो और अगर ऊपरी अदालत में अग्रिम जमानत के लिए अर्जी लंबित है, तो निचली अदालत में जमानत अर्जी पर विचार ना किया जाये.’ सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड की एक याचिका पर यह आदेश दिया, जिसमें सरकारी वकील अतुलेश कुमार ने निचली अदालत द्वारा जमानत दिये जाने को चुनौती दी है.