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90 में पांडेय गिरोह का शूटर बन कर पतरातू आया था सुशील
कमलिया की हत्या के बाद बढ़ी दूरी, रंगदारी में हिस्सा चाहता था सुशील. पतरातू : आज जिस सुशील श्रीवास्तव गिरोह के नाम पर भोला पांडेय के परिवार के लोगों को मारा जा रहा है, वह सुशील किसी समय भोला पांडेय का फेवरेट शूटर हुआ करता था. कई बड़े कामों को सफाई से अंजाम देकर सुशील […]
कमलिया की हत्या के बाद बढ़ी दूरी, रंगदारी में हिस्सा चाहता था सुशील.
पतरातू : आज जिस सुशील श्रीवास्तव गिरोह के नाम पर भोला पांडेय के परिवार के लोगों को मारा जा रहा है, वह सुशील किसी समय भोला पांडेय का फेवरेट शूटर हुआ करता था. कई बड़े कामों को सफाई से अंजाम देकर सुशील ने भोला पांडेय का विश्वास जीत लिया था.
सुशील उस वक्त रांची में रह कर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देता था. भोला पांडेय की उस जमाने में कोयलांचल क्षेत्रों में तूती बोलती थी. सुशील के सिर पर भोला पांडेय का हाथ होने के कारण वो अपराध की दुनिया का बेलगाम घोड़ा बन चुका था. लोग उसके बारे में बताते हैं कि उसका निशान अचूक था.
भोला पांडेय के इशारे पर उस वक्त खलारी, जमशेदपुर सहित कई जगहों पर हत्या की घटना को अंजाम देता था. बदले में भोला पांडेय भी सुशील को इनाम के तौर पर अच्छी रकम देता था. करीब उसी आसपास पतरातू में विभूति शर्मा की शह पर कई अवैध कारोबारियों ने पांडेय को रंगदारी देने से मना कर दिया. इससे पांडेय की सल्तनत डगमगाने लगी.
तब पांडेय ने गिरते वर्चस्व को बचाने के लिए सुशील को रांची से यहां बुला लिया. यह बात 1992-93 की है. सुशील के रुकने की व्यवस्था स्टीम कॉलोनी पतरातू में की गयी. सुशील का काम था रंगदारी नहीं देनेवालों को धमकाना व मारना. इस काम के लिए भोला पांडेय व सुशील के बीच रंगदारी के पैसे में हिस्सेदारी की बात भी तय हुई थी. अवैध कारोबारियों के बीच अपनी दहशत कायम करने के लिए इस गुट को बड़ा धमाका करने की जरूरत थी.
इसके लिए विभूति शर्मा के खास स्क्रैप व्यवसायी कमल अग्रवाल उर्फ कमलिया को टारगेट किया गया. कमलिया पूर्व में भोला पांडेय का विश्वासपात्र रहा था. बाद में उसने विभूति शर्मा की शह पर अपना पाला बदल लिया था. सुशील महीनों तक पतरातू के स्टीम कॉलोनी में रह कर कमलिया को मारने की योजना पर काम करता रहा. फिर एक दिन पतरातू स्टेशन रोड पर उसने कमलिया को सरेशाम गोली मार डाली. उस वक्त सुशील का रिश्तेदार ही पतरातू थाने का प्रभारी था.
पुलिस उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गयी. इसके बाद मजबूरन सुशील को अंडरग्राउंड होना पड़ा. अंडरग्राउंड रहने के दौरान सुशील चाहता था कि भोला पांडेय से तय समझौते के अनुसार उसे रंगदारी का हिस्सा मिलता रहे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जिसके बाद दोनों में दूरियां शुरू हो गयी.
अंडरग्राउंड रहते भर में ही सुशील ने धीरे-धीरे अपना अलग गुट खड़ा कर लिया. यह गुट हर उस जगह पर धावा बोलने लगा, जहां पांडेय गुट वसूली करता था. वर्चस्व के लिए धीरे-धीरे दोनों की टकराहट बढ़ती चली गयी. जिसका मुख्य रणक्षेत्र पतरातू प्रखंड ही रहा. अब न तो भोला पांडेय जीवित है, न ही सुशील श्रीवास्तव. फिर भी दोनों गुटों में वर्चस्व की लड़ाई बदस्तूर जारी है.
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