भंडरा़ भंडरा प्रखंड का भंवरो गांव 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को कड़ी चुनौती देने वाले और फांसी के फंदे पर झूलकर देश की आजादी के लिए बलिदान देने वाले शहीद पांडेय गणपत राय की जन्मस्थली है. आजादी के दीवाने का सपना रहा होगा कि गुलामी से मुक्त देश विकास की राह पर अग्रसर होगा, लेकिन उनके गांव की मौजूदा स्थिति उनकी शहादत को ठेस पहुंचाती है. गांव आज भी न सड़क, न नाली और न ही बुनियादी सुविधाओं से लैस है. गंदगी और जलजमाव से लोग नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं. प्रखंड मुख्यालय से महज दो किलोमीटर दूर स्थित यह गांव बरसों से उपेक्षा का शिकार है. नाली के अभाव में बरसात का पानी और घरों का गंदा पानी सड़कों पर बहता है. गुरुचरण साहू के घर से बृजकिशोर मिश्रा, महावीर साहू से उमेश साहू, और धोबी मोहल्ला तक सभी सड़कें गंदगी से बजबजा रही हैं. श्मशान घाट जाने वाली सड़क भी कीचड़ से भरी है, जिसके चलते शवयात्रा को खेतों से होकर ले जाना पड़ता है. मुख्य सड़क अतिक्रमण के कारण लोग परेशान : भवरो गांव का मुख्य सड़क पुराना आंगनबाड़ी से लेकर संतोष साहू के घर तक अतिक्रमण का शिकार हो गयी है. इस सड़क में एक साथ दो गाड़ी नहीं चल सकती है. एक गाड़ी को पास करने के लिए दूसरे छोर पर दूसरे गाड़ी को रुकना पड़ता है. लेकिन इस समस्या पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. मुख्य सड़क पर अतिक्रमण ने आवागमन की समस्या बढ़ा दी है. पंचायत समिति निधि से नाली निर्माण की स्वीकृति भी बिचौलियों के हस्तक्षेप के कारण स्थगित हो गयी. यहां तक कि गांव की गंदगी का असर सामाजिक जीवन पर भी पड़ रहा है. गांव की हालत देख शादी-विवाह भी नहीं हो रहा : भंवरो गांव में गंदगी का आलम यह है कि गांव में शादी विवाह का रिश्ता भी गंदगी के कारण प्रभावित हो रहा है. बृजकिशोर मिश्रा बताते हैं कि उनका बेटा दीपेश कुमार मिश्रा के शादी की बातचीत चल रही थी. लड़की पक्ष वाले जब भंवरो गांव बृजकिशोर मिश्रा के घर आये तो उन्होंने अपनी लड़की का शादी ऐसी गंदगी भरे गांव में करने से इनकार कर दिया. इसी प्रकार दीपेश कुमार मिश्रा की शादी भी गंदगी के कारण ठीक होते-होते रुक गयी. दो वर्षों से निधि का अभाव है : गांव की स्थिति पर पंचायत की मुखिया सुमंती तिग्गा ने कहा कि दो वर्षों से निधि का अभाव है. राशि मिलते ही पानी निकासी और नाली निर्माण को प्राथमिकता दी जायेगी. पूर्व प्रतिनिधियों ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया. ग्रामीणों का कहना है कि नेताओं द्वारा बार-बार मॉडल गांव बनाने की घोषणा केवल कागजों में ही सीमित रही है. शहीद के नाम पर जयंती और पुण्यतिथि तो धूमधाम से मनायी जाती है, लेकिन विकास अब भी दूर की बात है. ऐसे में ग्रामीण सवाल कर रहे हैं कि क्या यही शहीदों के सपनों का भारत है.
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