खेती के साथ दोस्ती की मिसाल पेश कर रहे हैं युवा
टपक सिंचाई योजना व श्रीविधि से हो रही है खेती
जयनगर : चमगुदोखुर्द मौजा के चरकी पहरी मुख्य द्वार के निकट महादेव सोत के पास छह एकड़ जमीन में शहर के छह युवकों के ग्रुप ने स्वरोजगार के लिए खेती को व्यवसाय के रूप में अपनाया है. पहले यह भूखंड टांड़ था. यहां चारों ओर झाड़ियां उगी हुई थी. युवकों के इस ग्रुप ने बंजर जमीन को अपने अथक परिश्रम से हरा-भरा बगीचा बना दिया है.
फिलहाल यहां ताइवान नस्ल का पपीता, मटर, फरसबीन व टमाटर की खेती लहलहा रही है. शहर के युवा राकेश सोनकर, अविनाश उर्फ गुड्डू, रामाधार सिंह, पंकज सिंह, रितेश कुमार व सुनील सिंह का प्रयास अब रंग लाने लगा है. इनके प्रयासों को देख कर आसपास के किसान भी टपक सिंचाई पद्धति को अपनाने का बना रहे हैं.
टपक सिंचाई पद्धति में स्वीच ऑन करने के बाद पाइप से स्वत: पौधों में पटवन हो जाता है. अविनाश उर्फ गुड्डू ने बताया कि मटर की खेती मनोज यादव की देखरेख में की गयी है. ताइवान नस्ल के पपीते के पौधे में बेहतर फल लगा है. उन्होंने लोगों से अपील किया है कि पपीता के इस नस्ल की खेती करें.
टपक सिंचाई पद्धति में पानी की कमी आड़े नहीं आती : युवा किसान अविनाश ने बताया कि बेरोजगारी के इस दौर में इससे बेहतर स्वरोजगार नहीं हो सकता, इसलिए हम और हमारे साथियों ने खेती की राह पकड़ी है. इधर, उधर से जानकारी इकट्ठा करने के बाद इस भूखंड पर खेती शुरू की है.
हमारी फसल बाजार में जाने को लगभग तैयार, यह एक बेहतर स्वरोजगार है और इसमें पानी संकट आड़े नहीं आता. इस पद्धति से खेती करने पर दस हजार लीटर पानी का काम एक हजार लीटर पानी से हो जाता है. कम पढ़े लिखे लोग भी इस पद्धति को अपना कर खेती कर सकते हैं.
क्या है टपक सिंचाई पद्धति : इस पद्धति के तहत खेतों में पौधों के लिए मेढ़ बनायी जाती है. उसे प्लास्टिक से ढ़का जाता है, जिसमें पौधों को पनपने के लिए छिद्र होता है. हर मेढ़ के साथ पाइपलाइन बिछी होती है. पाइपलाइन में भी पौधों के पास पानी निकासी के लिए छिद्र होता है. सेंटर से स्वीच ऑन करने पर पाइपलाइन के माध्यम से सभी पौधों में एक साथ पटवन होता है.
इससे पानी की अनावश्यक बर्बादी नहीं होती और कम पानी में भी बेहतर फसल का उत्पादन होता है. प्रत्येक पौधों पर पानी टपकने के कारण इस ऑरगेनिक खेती को टपक सिंचाई पद्धति का नाम दिया गया है.