पाकुड़. संताली लिटरेरी एंड कल्चरल सोसायटी द्वारा जिदातो मिशन परिसर में संथाली भाषा के विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के 50वां वर्ष पूरा होने पर तीन दिवसीय स्वर्ण जयंती समारोह का समापन रविवार को किया गया. इस दौरान मुख्य अतिथि के रूप में आये सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोवीसी डॉ प्रमोदिनी हांसदा, जेसीईआरटी उपनिदेशक मसूदी टुडू, डॉ अमित मुर्मू, रेवरेंट रोशन हांसदा, अपर समाहर्ता जेम्स सुरीन, रमेश चंद्र किस्कू को सोसाइटी की ओर से अंग वस्त्र तथा मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया. पूर्व प्रोवीसी डॉ प्रमोदिनी हांसदा की अध्यक्षता में अंतिम सत्र संचालित किया गया. मौके पर अंतिम दिन की परिचर्चा में संताली भाषा में पढ़ाई-लिखाई के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी. वहीं सोसाइटी की ओर से सरकार के समक्ष एक मांग पत्र समर्पित करने का निर्णय लिया गया. मांग पत्र में मुख्यत: सरकार के सभी प्रशासनिक कार्य अधिसूचना, प्रसारण संताल परगना के मानक संताली भाषा में कराये जाने, झारखंड में संताली को राजभाषा का दर्जा दिये जाने, भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा राज्य प्रशासनिक सेवा के सभी पदाधिकारी के लिए संथाली भाषा सीखने को अनिवार्य बनाते हुए उपराजधानी दुमका में ट्रेनिंग सेंटर खोले जाने, संथाल परगना के सभी 6 जिला मुख्यालय में इंजीनियरिंग एवं मेडिकल कॉलेज की स्थापना करने, असम में रह रहे संताल, मुंडा, उरांव, हो तथा खरिया जनजाति को अनुसूचित जनजाति के रूप में असम के सभी जिलों में मान्यता देने, झारखंड की उप राजधानी दुमका में संताली भाषा के लिए आकाशवाणी तथा दूरदर्शन चैनल की स्थापना करने, संथाली भाषा, साहित्य, लिपि तथा संस्कृति के विकास के लिए राज्य सरकार की ओर से विशेष पैकेज की व्यवस्था करने आदि की मांग की गयी. पूर्व प्रोवीसी डॉ प्रमोदिनी हांसदा ने अपने संबोधन में कहा कि वर्ष 1973 में पहला संताली सेमिनार का आयोजन पाकुड़ में किया गया था. उसकी मेजबानी उनके पिता रेवरेन्ट डीएम हांसदा द्वारा किया गया था. आज यह उनके लिए अति सौभाग्य की बात है कि 50 वर्ष के पश्चात इस ऐतिहासिक स्वर्ण जयंती समारोह का जुबली मनाया जा रहा है. बताया गया कि संताली भाषा एवं इसकी संस्कृति को निरंतर बचाए रखने की जरूरत है. इसके लिए आवश्यक है कि हम संथाली भाषा का इस्तेमाल प्रत्येक परिवार में करें. संताली से पढ़ाई-लिखाई का कार्य जारी रहे, इसके लिए सकारात्मक सोच रखने की जरूरत है. हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि संताली साहित्य साहित्य नहीं है, बल्कि इनका साहित्य काफी समृद्ध है. हमारे युवाओं को इसके लिए शोध कार्य करते हुए इसे और आगे ले जाने की आवश्यकता है. वहीं जेसीईआरटी उपनिदेशक मसूदी टुडू ने नयी शिक्षा नीति 2020 के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि नयी शिक्षा नीति के तहत पहली कक्षा से लेकर पांचवीं कक्षा तक बच्चों को अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है. बताया कि वर्तमान झारखंड सरकार की ओर से झारखंड के पांच जनजाति भाषा संताली, मुंडारी, हो, कुड़ुख तथा खड़िया में पुस्तकों का प्रकाशन करते हुए सभी प्राथमिक विद्यालयों में संथाली भाषा की पढ़ाई प्रारंभ करायी गयी है. पायलट प्रोजेक्ट के तहत संताली भाषा की पढ़ाई वर्तमान में झारखंड के दो जिले साहिबगंज तथा दुमका में प्रारंभ करायी गयी है. प्रोफेसर डॉ अमित मुर्मू द्वारा राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा 2023 के तहत संथाली भाषा की शिक्षा मानक भाषा में कराए जाने से संबंधित विषय पर विस्तार से अपनी बातें रखी. मौके पर मनोरंजन मुर्मू, गेब्रियल सोरेन, भरत टुडू, आलाकजड़ी मुर्मू ,छवि हेंब्रम, सेबेस्टियन हेंब्रम, मथियस बेसरा, नागेंद्र नाथ हेंब्रम, स्टीफन सोरेन, जय सागर मुर्मू, एलियन हांसदा, टीएल मुर्मू, जय राज टुडू समेत अन्य मौजूद थे.
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