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Jamshedpur News : लिपि के प्रचार-प्रसार में “ओलचिकी चेमेद” पुस्तक बना मील का पत्थर

संताली भाषा की ओलचिकी लिपि सीखाने वाली पुस्तक “ओलचिकी चेमेद” ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है.

-हर वर्ष 12 हजार प्रतियां छपती है, वर्ष 2003 से अब तक 2.76 लाख प्रतियों की हो चुकी है बिक्री

-ओलचिकी सीखने की सबसे लोकप्रिय पुस्तक है “संताली चेमेद”

-“संताली चेमेद” पुस्तक को शिक्षाविद प्रो. श्याम चरण टुडू ने लिखी है

Jamshedpur (Dashmat Soren) :

संताली भाषा की ओलचिकी लिपि सीखाने वाली पुस्तक “ओलचिकी चेमेद” ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है. अब तक इस पुस्तक की 2 लाख 76 हजार प्रतियां बिक चुकी हैं, जो आदिवासी भाषा और लिपि के प्रति बढ़ती जागरुकता का प्रमाण है. वर्ष 2003 से लगातार हर साल लगभग 12 हजार प्रतियां प्रकाशित की जा रही हैं. पुस्तक की निरंतर मांग यह बतलाती है कि ओलचिकी सीखने वालों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है. यह पुस्तक पोटका प्रखंड के धिरोल निवासी शिक्षाविद प्रो. श्याम चरण टुडू द्वारा लिखी गयी है. उन्होंने सरल, सहज और व्यवहारिक शैली में ओलचिकी लिपि को प्रस्तुत किया है, जिससे विद्यार्थी, शिक्षक और आम लोग आसानी से इसे सीख पा रहे हैं. आदिवासी समाज में इस पुस्तक को ओलचिकी सीखने की आधारशिला के रूप में देखा जा रहा है.

भारत ही नहीं, पड़ोसी देशों तक पहुंच

“ओलचिकी चेमेद” की लोकप्रियता केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी बिक्री बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में भी हो रही है. इन देशों में रहने वाले संताली भाषी लोग इस पुस्तक के माध्यम से अपनी मातृभाषा और लिपि से जुड़ पा रहे हैं. पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे बांग्ला, हिंदी, ओडिशा और अंग्रेजी जानने वाले पाठक भी आसानी से समझ सकते हैं. इन्हीं भाषाओं के माध्यम से ओलचिकी को सरल तरीके से समझाया गया है, जिससे गैर-संताली भाषी लोग भी ओलचिकी सीखने में रुचि ले रहे हैं. यह पुस्तक छात्रों, शोधार्थियों और भाषा प्रेमियों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हो रही है.

10 रुपये की कीमत ने बनायी जन-जन की पुस्तक

“ओलचिकी चेमेद” की कीमत मात्र 10 रुपये रखी गयी है. इतनी कम कीमत होने के कारण यह पुस्तक समाज के हर वर्ग तक पहुंच पा रही है. गरीब-अमीर, ग्रामीण-शहरी सभी के लिए यह सुलभ बनी हुई है. लोगों का मानना है कि यदि इस पुस्तक की कीमत अधिक होती, तो संभवत: यह इतनी व्यापक पहुंच नहीं बना पाती. कम मूल्य ने इसे घर-घर तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभायी है. यही कारण है कि स्कूलों, कॉलेजों, सामाजिक संगठनों और भाषा जागरुकता अभियानों में इस पुस्तक का व्यापक उपयोग किया जा रहा है. ओलचिकी लिपि के संरक्षण और प्रचार में “संताली चेमेद” आज एक आंदोलन का रूप ले चुकी है.

मकसद था हर उम्र व वर्ग का व्यक्ति आसानी से पढ़ व समझ सके : श्याम चरण टुडू

प्रो. श्याम चरण टुडू ने कहा कि ओलचिकी केवल एक लिपि नहीं, बल्कि संताली समाज की पहचान और आत्मसम्मान का प्रतीक है. मेरा उद्देश्य “ओलचिकी चेमेद” को ऐसी पुस्तक बनाना था, जिसे हर उम्र और हर वर्ग का व्यक्ति आसानी से पढ़ और समझ सके. भाषा तभी जीवित रहती है, जब वह आम लोगों तक पहुंचे. इसी सोच के साथ पुस्तक की भाषा सरल रखी गयी और मूल्य मात्र 10 रुपये तय किया गया. आज जब यह पुस्तक भारत के साथ-साथ बांग्लादेश और नेपाल तक पहुंच रही है, तो यह संताली भाषा आंदोलन की सामूहिक सफलता है.

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