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को-ऑपरेटिव कॉलेज में कंप्यूटर लैब निर्माण में करीब 17.50 लाख रुपये की वित्तीय अनियमितता

जमशेदपुर : जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज के कंप्यूटर लैब निर्माण में अनियमितता उजागर हुई है. मंगलवार को संबंधित रिपोर्ट अग्रिम कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के राज्य निदेशक को भेजी जा रही है. विवि सूत्रों की मानें तो संबंधित रिपोर्ट में करीब साढ़े 17 लाख रुपये की वित्तीय अनियमितता की बात कही जा रही […]

जमशेदपुर : जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज के कंप्यूटर लैब निर्माण में अनियमितता उजागर हुई है. मंगलवार को संबंधित रिपोर्ट अग्रिम कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के राज्य निदेशक को भेजी जा रही है. विवि सूत्रों की मानें तो संबंधित रिपोर्ट में करीब साढ़े 17 लाख रुपये की वित्तीय अनियमितता की बात कही जा रही है.
दावा यह भी किया जा रहा है कि लैब के लिए खरीदे गये कंप्यूटर के साइज में विषमता मिली है. जांच टीम ने कंप्यूटर की खरीद के बदले टैक्स के रूप में दी गयी जीएसटी की राशि पर भी आपत्ति की है. जांच में पता चला है कि तय मापदंड से अधिक की राशि जीएसटी भुगतान के रूप में दिखायी गयी है.
दोषियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराएं
मामले के शिकायतकर्ता एवं को-ऑपरेटिव कॉलेज के बर्शर डॉ एमएन तिवारी ने कहा है कि इस मामले में कोल्हान विवि को अपने स्तर से भी कार्रवाई करनी चाहिये. कॉलेज प्रशासन को निर्देश दिया जाना चाहिये कि वह फंड का दुरुपयोग करने वाले लोगों के खिलाफ वित्तीय अनियमितता के मामले में एफआइआर दर्ज कराये. डॉ तिवारी ने कहा कि वह इस मामले में कार्रवाई के लिए एक बार फिर विवि को पत्र लिख रहे हैं.
भवन मरम्मत के नाम पर गड़बड़ी की शिकायत कॉलेज ने 26 लाख रुपये का भुगतान रोका
जमशेदपुर. जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज में भवन मरम्मत के नाम पर बड़े पैमाने पर अनियमितता की शिकायत की गयी है. भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन की जिलाध्यक्ष रोज तिर्की ने कोल्हान विवि प्रशासन को पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि कॉलेज में वित्तीय वर्ष 2014-15 के दौरान अलग-अलग भवनों की मरम्मत के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किये गये हैं.
हकीकत में संबंधित निर्माण एजेंसी की ओर से कॉलेज में मरम्मत का अधिकांश काम अधूरा छोड़ दिया गया है. इसके बावजूद कॉलेज के ए अकाउंट से करोड़ों रुपये की निकासी कर संबंधित निर्माण एजेंसी को भुगतान किया गया है. संबंधित मामले में अब तक कॉलेज प्रशासन ने अपने स्तर से करीब 26 लाख रुपये की राशि रोक कर रखी है. इसके भुगतान के लिए लगातार संबंधित एजेंसी दबाव बना रही है. लिहाजा विवि को इस पूरे मामले की जांच करानी चाहिये.

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