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वजूद का संकट झेल रहा है कभी मुल्क भर में मशहूर रहा हजारीबाग नेशनल पार्क हजारीबाग/इचाक : देश स्तर पर हजारीबाग की पहचान बनानेवाला नेशनल पार्क का अस्तित्व दिनोंदिन खत्म होता जा रहा है. आजादी के बाद सन 1972 में सौंदर्य वन के नाम से जाने जानेवाले इस घने जंगल को नेशनल पार्क के रूप […]

वजूद का संकट झेल रहा है कभी मुल्क भर में मशहूर रहा हजारीबाग नेशनल पार्क
हजारीबाग/इचाक : देश स्तर पर हजारीबाग की पहचान बनानेवाला नेशनल पार्क का अस्तित्व दिनोंदिन खत्म होता जा रहा है. आजादी के बाद सन 1972 में सौंदर्य वन के नाम से जाने जानेवाले इस घने जंगल को नेशनल पार्क के रूप में विकसित किया गया था.
वन विभाग की ओर से नेशनल पार्क बनाने की दिशा में कोई कसर नहीं छोड़ी गयीथी. घने जंगल के बीच राजडेरवा में झील का सौंदर्यीकरण कर वहां पर्यटकों के आने- जाने व ठहरने के लिए पूरी व्यवस्था करायी गयी थी.
बिजली की व्यवस्था से लेकर पर्यटकों को ठहरने के लिए कॉटेज, कैंटिन, झील में लुत्फ उठाने के लिए नौका विहार, आने-जाने के लिए पर्यटक बस, सुरक्षा के लिए वनरक्षी व जंगली जानवरों को रात में देखने के लिए लाइट की पूरी व्यवस्था विभाग द्वारा करायी जाती थी. आज स्थिति यह है कि उपरोक्त सुविधाओं में घोर कमी आयी है. यही कारण है कि विदेशी पर्यटकों का आना तो दूर पड़ोसी राज्य के भी पर्यटक नेशनल पार्क आने से कतराते हैं.
कहां हैं नेशनल पार्क : हजारीबाग शहर से 13 किमी दूर रांची-पटना मार्ग पर अवस्थित है हजारीबाग का नेशनल पार्क. एनएच-33 पथ से 10 किमी की दूरी पर है राजडेरवा. जो घने जंगल के बीच बसा है. वहां पहुंचने के लिए कच्ची सड़क से लोगों को गुजरना पड़ता है. नेशनल पार्क 186.6 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है.
नेशनल पार्क तीन बीट में बंटा है. पोखरिया बीट, राजडेरवा बीट एवं बहिमर बीट. राजडेरवा बीट के अंदर ही पर्यटक स्थल बना है. वहीं जंगली जानवरों के लिए केज (इनक्लोजर) बनाया गया है. जिसमें हिरण, चितल, नील गाय, सांभर, बार्किंग डियर, बंदर व तरह-तरह के पक्षी खुलेआम विचरण करते हैं. वहीं पोखरिया बीट के अंदर सालपर्णी है. वहां भी तालाब, कैंटिन व गेस्ट हाउस बने हैं. पर्यटक सालपर्णी में भी यदा-कदा घुमने आते हैं.
नेशनल पार्क का हाल : झारखंड बनने के बाद वन विभाग ने वर्ष 2003 में नेशनल पार्क को वन्य जीव प्राणी आश्रयणी बना दिया. आश्रयणी में जंगली जानवरों को रखने के लिए इनक्लोजर बना है. राजडेरवा झील में नौका विहार का आनंद लेने के लिए नौ वोट है. जिसमें मात्र दो ही वोट सही हालत में है.
बाकी सात खराब पड़े हैं. बिजली वर्षों से कटी हुई है. खंभे टूट कर गिर चुके हैं. झुलते तार व ट्रांसफारमर का खंभा यह साबित कर रहा है कि पूर्व में यहां बिजली थी. झारखंड बनने के बाद भी यहां की सरकार ने पर्यटक स्थल को विकसित करने व नेशनल पार्क की स्थिति को सुधारने की दिशा में कोई पहल नहीं की है.
पार्क में जानवरों की स्थिति : नेशनल पार्क जंगल के बीच 20 हेक्टेयर क्षेत्र में केज बनाया गया है. जिसमें नील गाय, चीतल, सांभर, कोटरा, बंदर व अन्य जानवरों को रखा गया है. केज के अंदर ही जानवरों को चारा खाने के लिए हौदा, पानी पीने के लिए नाद बनाया गया है. रेंजर गोपाल चंद्रा ने बताया कि डेढ़ सौ चीतल, पांच नील गाय, कोटरा 26, सांभर दो एवं तीन ग्रुप में लगभग साढ़े सात सौ बंदर हैं.
पर्यटकों के लिए कोई सुविधा नहीं : नेशनल पार्क के राजडेरवा पहुंचने के लिए पर्यटकों को अपने वाहन से जाना पड़ता है. वहां ठहरने के लिए कॉटेज की व्यवस्था, भोजन के लिए कैंटिन की व्यवस्था है.
डबल बेड का चार कॉटेज, छह बेड का एक डोमेट्री एवं चार टूरिस्ट लॉज है. जिसमें ठहरने के लिए प्रतिदिन ढ़ाई सौ रुपये शुल्क देना पड़ता है. बड़े अधिकारियों को ठहरने के लिए भी रेस्ट हाउस बनाया गया है. पर्यटकों के आने पर रात्रि में जेनेरेटर की व्यवस्था है. जेनेरेटर चलाने पर आनेवाले खर्च का वहन भी पर्यटकों को ही करना पड़ता है. कैंटिन में खानसामा है. लेकिन भोजन के लिए सामग्री पर्यटकों को ही लानी पड़ती है.
बनाने का खर्च भी वहन करना पड़ता है. राजडेरवा में मोबाइल नेटवर्क नहीं रहने से पर्यटकों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है. बिजली व नेटवर्क की गड़बड़ी में सुधार लाने के लिए विभाग द्वारा कोई भी सार्थक कदम नहीं उठाया जा रहा है.
सुरक्षा की स्थिति : राजडेरवा में वन विभाग के एक वनपाल व दो वनरक्षी वर्तमान समय में हैं. चौकीदार दो तथा डेली वेजेज पर काम करनेवाले आठ-10 कर्मचारी हैं.

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