हनवारा थाना क्षेत्र के नारायणपुर स्थित काली मंदिर प्रांगण में आयोजित 7 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में श्रद्धा और भक्ति का माहौल चरम पर है. यज्ञ के दूसरे दिन कथा वाचक बाल योगी आशीष आनंद जी महाराज ने श्रीकृष्ण और राधा के पवित्र, आध्यात्मिक और निस्वार्थ प्रेम की अमृतमयी कथा का रसपान करवाया. कथाव्यास ने कहा कि राधा-कृष्ण का प्रेम शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक और भक्ति से परिपूर्ण था। यह प्रेम धैर्य, त्याग और समर्पण की भावना से ओतप्रोत था. कथा सुनने आये श्रद्धालु भाव-विभोर हो गये और पूरा पंडाल राधे-राधे के जयघोष से गूंज उठा.
रुक्मिणी को श्रीकृष्ण ने बताया राधा का स्थान
कथा के दौरान आशीष आनंद जी ने एक प्रसंग सुनाया कि एक दिन रुक्मिणी जी ने श्रीकृष्ण को गरम खीर चम्मच से खिलायी, जिससे उनके श्रीमुख से हे राधे निकल गया. यह सुनकर रुक्मिणी विचलित हो उठीं और पूछा प्रभु! ऐसा क्या है राधा में, जो आपके हर श्वास में उनका ही नाम बसता है. इस पर श्रीकृष्ण मुस्कराते हुए बोले-देवी! क्या आपने राधा को कभी देखा है. श्रीकृष्ण के साथ अगले दिन रुक्मिणी राधा से मिलने उनके महल पहुंचीं. महल के पहले द्वार पर बैठी अत्यंत तेजस्वी स्त्री को देख रुक्मिणी ने समझा कि यही राधा हैं. लेकिन जब उन्होंने पूछा कि क्या आप राधा हैं? तो उत्तर मिला मैं तो राधा जी की एक दासी हूं.यह सुनते ही रुक्मिणी नतमस्तक हो गयी और उन्हें राधा की महानता का एहसास हुआ. कथा के दौरान श्रोतागण आध्यात्मिक प्रेम के इस अनूठे प्रसंग को सुनकर आनंदित और अभिभूत हो उठे. पूरा वातावरण भक्ति, प्रेम और अध्यात्म से सराबोर हो गया.
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