जेठ महीना में सूरज आग उगल रहा है. तापमान में बढ़ोतरी का सीधा प्रभाव जलाशयों पर पड़ा है. सुबह लगभग नौ से ही कड़ी धूप से लोग परेशान लोगों को चिढ़ाने लगती है. दिन के 10-11 बजते ही सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता है. इस प्रचंड गर्मी में नदी-नाले, ताल-तलैया कुएं सूख चुके हैं और इसमें घास फूस भी उग गये हैं. वहीं कुछ सूखने के कगार पर हैं. जलस्तर भी नीचे चला गया है. जलस्तर बनाये रखने के लिए प्रखंड क्षेत्र में कई डोभा तथा तालाब का निर्माण व जीर्णोद्धार किया गया, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है. डोभा के निर्माण में सिर्फ खानापूर्ति की गयी है. नदी-नाले, तालाब आदि सूखने की स्थिति में पशु पक्षियों तथा जंगली जानवरों की समक्ष पेयजल की समस्या उत्पन्न हो गयी है. लोग किसी तरह अपनी प्यास बुझा लेते हैं, लेकिन बेजुबान पशु पक्षियों को प्यास लगने पर उन्हें पानी के लिए तड़पना व भटकना पड़ रहा है. गर्मी के समय में पक्षियों के लिए चारा की कमी होती है. उन्हें भोजन ढूंढ़ने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है. ऐसे में पानी ही उनका एकमात्र सहारा होता है. उनके समक्ष पेयजल की समस्या उत्पन्न हो गयीहै. पशु, पक्षी व जलीय जीवों के जीवन पर संकट मंडराने लगा है. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सामान्य लोगों से अपेक्षा किया है कि पशु-पक्षियों को बचाने की पहल करे. घर की छत और दरवाजे के आसपास पानी भरकर रखें, ताकि पशु-पक्षी अपनी प्यास बुझा सकें.
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