गोपीकांदर. जिले के गोपीकांदर प्रखंड के ओड़मो पंचायत के खटंगी और सिलंगी गांव में मलेरिया का प्रकोप सामने आने के बाद पूरे इलाके में चिंता का माहौल बन गया है. गोपीकांदर प्रखंड के इन पहाड़ी और दूरस्थ गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच पहले से ही सीमित रही है. ऐसे में अचानक से लोगों के बीमार पड़ने की घटनाएं सामने आते ही ग्रामीणों में घबराहट फैल गयी है. खटंगी गांव के पहाड़िया टोला सहित आसपास के इलाकों में बीते कुछ दिनों से बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द और कमजोरी जैसी लक्षणों की शिकायतें बढ़ने लगी थीं. गांव की सहिया सुरुजमुनी सोरेन को जब शुक्रवार को जानकारी मिली कि कई ग्रामीणों की तबीयत बिगड़ रही है, तो उन्होंने तत्काल गोपीकांदर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को सूचना दी. इसके बाद एमपीडब्ल्यू मस्तान मुर्मू अपनी टीम के साथ गांव पहुंचे और जांच का कार्य शुरू किया.
32 में से 15 मिले मलेरिया के मरीज :
शुक्रवार को ही गांव के 19 लोगों की प्राथमिक स्वास्थ्य जांच की गयी, जिसमें आठ मलेरिया पॉजिटिव मरीज मिले. शनिवार को जांच का दायरा बढ़ाया गया और अब तक कुल 32 लोगों की जांच में 15 मलेरिया पॉजिटिव मरीजों की पुष्टि की गयी है. इनमें एक गर्भवती महिला और दो बच्चे भी शामिल हैं. 20 वर्षीय बाहामय मुर्मू और उनके पांच वर्षीय बेटे चरण बास्की की हालत बिगड़ने पर उन्हें दुमका पीजीएमसीएच रेफर किया गया है. मलेरिया के जिन मरीजों की पुष्टि हुई है उनमें छुतर बास्की, रोशन टुडू, सोम बास्की, बाहामय मुर्मू, चरण बास्की (05 वर्षीय), कृष्णा मरांडी, चरण बास्की (10 वर्षीय), मलोती मुर्मू, मोनिका मुर्मू, बुधिन मुर्मू, डेना बास्की, महेंद्र गृही, रीता कुमारी और बिनोद देहरी शामिल हैं.
मलेरिया के मरीज मिलते ही विभाग हुआ रेस :
इन गांवों में मलेरिया के मामलों के तेजी से सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग की ओर से त्वरित कार्रवाई शुरू की गयी है. इंडोर रेसिडुअल स्प्रे (आईआरएस) के तहत कीटनाशक दवा का छिड़काव खटंगी और सिलंगी गांव के सभी घरों में किया जा रहा है. इस कार्य का नेतृत्व छिड़काव टीम के सुपरवाइजर संतोष मुर्मू कर रहे हैं, जिनके अनुसार खटंगी गांव के 31 घरों में छिड़काव किया जा चुका है और बाकी में काम जारी है.
ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी :
ग्रामीण क्षेत्रों में मलेरिया को लेकर जागरूकता की कमी साफ देखने को मिल रही है. अधिकतर लोग बुखार को सामान्य मानकर घरेलू उपाय करते हैं और जब हालत बिगड़ती है तब स्वास्थ्य केंद्र की ओर रुख करते हैं. स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा ग्रामीणों को लगातार यह जानकारी दी जा रही है कि मलेरिया के लक्षण क्या हैं और इससे कैसे बचा जा सकता है. बुखार के साथ कंपकंपी, सिरदर्द, उल्टी, मांसपेशियों में दर्द और कमजोरी जैसे लक्षणों को नजरअंदाज न करें. गांव-गांव में सहिया और एमपीडब्ल्यू की टीम लोगों को मच्छरदानी के उपयोग, सफाई बनाए रखने, गड्ढों में पानी जमा न होने देने और समय पर जांच कराने की सलाह दे रही है.
ग्रामीणों सकते में, नियमित स्वास्थ्य शिविर लगाने की मांग :
मलेरिया के मरीज मिलने के बाद ग्रामीण भी अब सक्रिय हो गए हैं. स्थानीय लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि गांव में नियमित स्वास्थ्य शिविर लगाए जाएं, ताकि प्रारंभिक अवस्था में ही बीमारियों की पहचान हो सके. साथ ही मलेरिया से निपटने के लिए मच्छरदानी, दवाएं और टेस्ट किट की पर्याप्त आपूर्ति की जाए. पंचायत स्तर पर भी जनप्रतिनिधियों ने मामले को गंभीर मानते हुए विभाग से मांग की है कि त्वरित कार्रवाई जारी रखी जाए और सभी प्रभावित परिवारों को समय पर राहत मिले. बहरहाल, यह स्थिति एक बार फिर यह साबित करती है कि सुदूर और वनवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का सशक्त नेटवर्क कितना जरूरी है. मलेरिया जैसी बीमारियों को समय रहते जांच और इलाज से रोका जा सकता है, लेकिन इसके लिए संसाधनों की उपलब्धता के साथ-साथ लोगों में जागरूकता भी अनिवार्य है. स्वास्थ्य विभाग की त्वरित कार्रवाई से फिलहाल हालात काबू में है.
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