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dhanbad news: शरद पूर्णिमा, लक्खी पूजा और कोजागरा कल

16 अक्तूबर को लक्खी पूजा, शरद पूर्णिमा और कोजागरा है. बुधवार को पड़नेवाले शरद पूर्णिमा पर शुभ संयोग बन रहा है. शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं. इस रात मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं.

धनबाद.

16 अक्तूबर को लक्खी पूजा, शरद पूर्णिमा और कोजागरा है. बुधवार को पड़नेवाले शरद पूर्णिमा पर शुभ संयोग बन रहा है. शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं. इस रात मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं. शरद पूर्णिमा पर महालक्ष्मी की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होगी. पंडित गुणानंद झा बताते हैं आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का शास्त्रों में विशेष महत्व है. पूर्णिमा तिथि 16 अक्तूबर को शाम सात बजकर 57 मिनट में भोग करेगी, जो 17 अक्तूबर को शाम पांच बजकर 38 मिनट तक रहेगी. शरद पूर्णिमा में मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जो शाम को होती है. इसलिए 16 अक्तूबर को शरद पूर्णिमा मनायी जायेगी.

होगी अमृत की बारिश :

मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन आकाश से अमृत की बारिश होती है. चांद पृथ्वी के सबसे नजदीक रहता है. चांद की रोशनी में औषधीय गुण पाये जाते हैं. जड़ी-बूटी पर चांद का प्रकाश पड़ने से उसके गुण बढ़ जाते हैं. शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर खुले आकाश के नीचे पूरी रात रखा जाता है. सुबह उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.

बिराजेगी मां लक्खी की प्रतिमा:

कोजागोरि लक्खी पूजा बंगाली समुदाय की ओर से की जाती है. इस अवसर पर बंगाली समुदाय के घरों और दुर्गा पूजा होने वाले स्थान पर मां लक्खी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है. कहीं खीर तो कहीं खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. कोयलांचल के दुर्गा मंदिरों, कोयला नगर दुर्गा मंडप, दुर्गा मंदिर हीरापुर, हरि मंदिर में मां की प्रतिमा स्थापित की जायेगी. पूजा वाले दिन सुबह घर में रंगोली बनायी जाती है. मां लक्ष्मी के शुभ पैरों का चिह्न पूरे घर में बनाया जाता है. घर के मुख्य द्वार पर आम के पल्लव लगाये जाते हैं. पूरा परिवार मिलकर मां लक्खी की आराधना करता है. रात में चांद के नीचे हाथ में नारियल पानी लेकर अर्चना की जाती है. उसके बाद नारियल पानी से चेहरे और आंखों को पोछा जाता है. इसके पीछे यह मान्यता है कि चांद में जैसी शीतलता है वैसी शीतलता जीवन में बनी रहे.

पान-मखान का होता है विशेष महत्व :

वहीं कोजागरा मिथिलांचल का पावन पर्व है. यह अश्विन पूर्णिमा पर मनाया जाता है. कोजागरा पर्व में पान -मखाना का खास महत्व होता है. मां लक्ष्मी की आराधना कर तुलसी के पौधा के पास पान-मखान चढ़ाया जाता है. जिस घर में लड़के की शादी होती है उस घर में उत्सव का माहौल रहता है. घर के सदस्यों के साथ ही मुहल्ले की महिलाएं उत्सव में शामिल होती हैं. खुले आकाश के नीचे विधि विधान से पूजा के बाद परिवार की बुजुर्ग महिलाएं गीत गाती हुईं लड़के का चूमावन करती हैं. पूजा का सारा सामान, कपड़ा लड़की के घर से आता है. पूजा के बाद लड़का चांदी की कौड़ी से भाभी या साला के साथ पच्चीसी खेलता है. नव विवाहित जोड़ी हमेशा खुशहाल रहे, बुजुर्गों से यह आशीर्वाद दिया जाता है.

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