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धनबाद में गंभीर होती जा रही टीबी मरीजों की स्थिति, जानें क्या है इसकी बड़ी वजह

Jharkhand News: धनबाद में ट्यूबरक्लोसिस बीमारी के मरीजों का हाल बुरा है. इसकी वजह ये है कि अप्रैल से सितंबर माह के बीच जिले में टीबी की दवा की आपूर्ति बंद कर दी गयी.

Jharkhand News|धनबाद : झारखंड सरकार ने 2025 तक ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) की बीमारी के उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन मरीजों को उपलब्ध होने वाली चिकित्सा व्यवस्था का धनबाद जिले में में बुरा हाल है. इसकी वजह है कि टीबी की दवा की आपूर्ति बंद विगत कई माह से बंद है. स्वास्थ्य चिकित्सा, शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार जहां जिले में मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) के मरीजों की संख्या 100 पहुंच गयी है.

वासेपुर के रहने वाले 50 वर्षीय व्यक्ति टीबी की गंभीर स्टेज एक्सट्रीम ड्रग रेसिस्टेंस (एक्सडीआर) का मरीज हो गया है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार समय पर टीबी की दवा नहीं लेने के कारण मरीज पहले एमडीआर से ग्रसित होते हैं. इसका मतलब यह है कि दवा छूटने के बाद फिर से शुरू करने पर इस बीमारी की रोकथाम में असरदार साबित नहीं हो पाता है. इसी तरह एक्सडीआर टीबी के खतरनाक स्टेज को कहा जाता है. इन मरीजों को भी दी जाने वाली दवा का असर बिल्कुल नहीं होता है. दवा लेने के बावजूद बीमारी बढ़ती जाती है.

छह माह तक दवा की आपूर्ति बंद होने से बढ़े एमडीआर के मरीज

धनबाद में टीबी की दवा स्वास्थ्य मुख्यालय से उपलब्ध करायी जाती है. विगत अप्रैल से सितंबर माह के बीच जिले में टीबी की दवा की आपूर्ति बंद कर दी गयी थी. ऐसे में मरीजों को इन छह माह तक टीबी की दवा नहीं मिली. यही वजह है कि टीबी के एमडीआर मरीजों की संख्या 100 तक पहुंच गयी है. जबकि जिले में टीबी से ग्रसित मरीजों की कुल संख्या 3300 के करीब है.

गरीब मरीज नहीं खरीद पाते हैं टीबी की दवा

टीबी की दवा काफी महंगी होती है. एक माह की दवा की कीमत लगभग 1500 रुपये के आसपास है. सरकारी दवा की आपूर्ति बंद होने से गरीब मरीजों की पहुंच से दवा दूर हो गयी. सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्र में दवा नहीं होने के कारण कई मरीजों की दवा बीच में ही छूट गयी.

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स्टॉक सीमित होने के कारण सात दिनों की दवा का हो रहा वितरण

अक्तूबर माह में स्वास्थ्य मुख्यालय से सप्लाई शुरू होने पर जिले में टीबी की दवा का वितरण शुरू किया गया. इस बीच चुनाव आचार संहिता लग गयी. मुख्यालय ने स्थानीय स्तर पर टीबी की दवा की खरीदारी का निर्देश जिला स्वास्थ्य विभाग को दिया. टेंडर प्रक्रिया के बाद दवा मंगवा कर मरीजों के बीच वितरण शुरू हुआ. नवंबर माह से मुख्यालय से सीमित मात्रा में दवा की आपूर्ति होने लगी. जिले में टीबी के मरीजों की संख्या अधिक होने और मुख्यालय से सीमित मात्रा में दवा की आपूर्ति होने से वर्तमान में मरीजों को सात दिन की ही दवा उपलब्ध करायी जा रही है. इस समस्या को देखते हुए स्थानीय स्तर पर दवा की खरीदारी का निर्देश स्वास्थ्य मुख्यालय की ओर से जारी किया गया है.

एमडीआर व एक्सडीआर जांच के लिए कल्चर एंड डीएसटी लैब बंद

टीबी के एमडीआर व एक्सडीआर मरीजों की जांच के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा एसएनएमएमसीएच में 4.5 करोड़ रुपये की लागत से कल्चर एंड डीएसटी लैब स्थापित किया गया है. इस लैब में मरीजों की रेसिस्टेंस जांच के बाद दवा का डोज सेट किया जाता है. विभिन्न कारणों से विगत कई माह से लैब बंद है. ऐसे में मरीजों की रेसिस्टेंस जांच भी नहीं हो पा रही है.

दवा वितरण केंद्र में तब्दील हुआ डॉट प्लस सेंटर

सिविल सर्जन कार्यालय परिसर में टीबी मरीजों के लिए बने डॉट प्लस सेंटर का हाल भी बुरा है. विभागीय फेंकाफेकी में आज यह डॉट प्लस सेंटर दवा वितरण केंद्र में तब्दील हो चुका है. इसमें मरीजों को भर्ती लेने की व्यवस्था नहीं है. जबकि, टीबी के मरीज के केंद्र पहुंचने पर उनको भर्ती लेकर दवा खिलानी है. यह इसलिए, क्योंकि दवा खाने के बाद इसका साइड इफैक्ट होता है. मरीजों को इन सब से बचाने के लिए डॉट प्लस सेंटर खोला गया है.

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Sameer Oraon
Sameer Oraon
इंटरनेशनल स्कूल ऑफ बिजनेस एंड मीडिया से बीबीए मीडिया में ग्रेजुएट होने के बाद साल 2019 में भारतीय जनसंचार संस्थान दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा किया. 5 साल से अधिक समय से प्रभात खबर में डिजिटल पत्रकार के रूप में कार्यरत हूं. इससे पहले डेली हंट में भी बतौर प्रूफ रीडर एसोसिएट के रूप में भी काम किया. झारखंड के सभी समसमायिक मुद्दे खासकर राजनीति, लाइफ स्टाइल, हेल्थ से जुड़े विषय पर लिखने और पढ़ने में गहरी रूचि है. तीन साल से अधिक समय से झारखंड डेस्क पर काम किया. फिर लंबे समय तक लाइफ स्टाइल डेस्क पर भी काम किया. इसके अलावा स्पोर्ट्स में भी गहरी रूचि है.

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