धनबाद : खजाना (बैंकों) में 83 करोड़ रुपये से अधिक राशि पड़ी है. लेकिन, विकास योजनाओं के लिए एक रुपया भी खर्च करने लायक नहीं है, जबकि संस्थान का स्थापना खर्च भी वार्षिक सवा तीन करोड़ रुपये ही है.
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खजाना में 83 करोड़, विकास के लिए अठन्नी नहीं
धनबाद : खजाना (बैंकों) में 83 करोड़ रुपये से अधिक राशि पड़ी है. लेकिन, विकास योजनाओं के लिए एक रुपया भी खर्च करने लायक नहीं है, जबकि संस्थान का स्थापना खर्च भी वार्षिक सवा तीन करोड़ रुपये ही है. क्या है पूरा मामला : जिला परिषद धनबाद को अविभाजित बिहार के समय सुप्रीम कोर्ट के […]
क्या है पूरा मामला : जिला परिषद धनबाद को अविभाजित बिहार के समय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लगभग 43 करोड़ रुपया मिला था. जिला परिषद कर्मचारी संघ की रिट याचिका पर यह राशि मिली थी. इसमें से नौ करोड़ बोकारो जिला परिषद को दिया गया था. शेष राशि से कर्मचारियों के बकाये वेतन का भुगतान किया गया था. धनबाद के तत्कालीन डीसी डॉ बी राजेंद्र ने विभिन्न बैंकों में 25 करोड़ रुपये फिक्स्ड डिपोजिट करा दिया था, ताकि उसके ब्याज से कर्मचारियों को वेतन मिलता रहे. बाद में यह राशि बढ़ती गयी. बीच-बीच में कई बार कुछ एफडी को तोड़ा भी गया. इसके खिलाफ जिला परिषद कर्मचारी संघ द्वारा झारखंड उच्च न्यायालय में रिट दायर की गयी.
उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि कर्मचारियों के वेतन तथा अन्य स्थापना खर्च के लिए कम से कम 50 करोड़ की एफडी बैंकों में रखी जाए, ताकि वेतन का संकट नहीं हो. अभी धनबाद जिला परिषद में कार्यरत कर्मियों के वेतन तथा अन्य मद में सालाना खर्च लगभग सवा तीन करोड़ रुपये है.
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