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कर्ज ले बाहर से खरीदते हैं दवा

सदर अस्पताल. नहीं मिलती है दवा, मरीज व परिजन परेशान कुछ वर्ष पूर्व तक बेहतर सेवा उपलब्ध करवाने के लिए जाना जाने वाला सदर अस्पताल आज खुद बीमार है. इसके कारण मरीज व परिजनों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. सुपौल : महज कुछ वर्ष पूर्व तक राज्य के तमाम सरकारी अस्पतालों में बेहतर […]

सदर अस्पताल. नहीं मिलती है दवा, मरीज व परिजन परेशान

कुछ वर्ष पूर्व तक बेहतर सेवा उपलब्ध करवाने के लिए जाना जाने वाला सदर अस्पताल आज खुद बीमार है. इसके कारण मरीज व परिजनों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.
सुपौल : महज कुछ वर्ष पूर्व तक राज्य के तमाम सरकारी अस्पतालों में बेहतर सेवा व सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए जाना जाने वाला जिला मुख्यालय का सदर अस्पताल आज खुद बीमार है. यहां सुविधाओं की बात कौन कहे स्थिति यह है कि अस्पताल के इमरजेंसी कक्ष में दवाओं के अभाव के कारण मरीजों का प्राथमिक उपचार कराना भी मुश्किल है. गंभीर रूप से बीमार मरीजों के परिजनों को पहले बाजार से दवा खरीद कर लाना पड़ता है तब जाकर मरीज का उपचार प्रारंभ हो पाता है. जानकार बताते हैं कि महज दो साल पहले अस्पताल की यह दुर्दशा नहीं थी.
यहां आने वाले मरीजों को सभी प्रकार की दवाएं सरकारी स्तर पर मुहैया करवायी जाती थी, लेकिन अब जब पहले के अपेक्षा मरीज की संख्या में वृद्धि हुई है तो दूसरी ओर सुविधा का अभाव देखा जा रहा है. मरीज व परिजनों को सबसे अधिक परेशानी दवा नहीं मिलने के कारण हो रही है.
सरकारी स्तर पर दवा मिलने की आस लगाये यहां पहुंचने वाले मरीजों को केवल निराशा ही हाथ लगती है. चिकित्सक व कर्मियों की कमी की समस्या से जूझ रहे इस अस्पताल में अब दवा के अभाव के कारण मरीज व उनके परिजनों को काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. मंगलवार को कुछ इसी प्रकार का दृश्य सदर अस्पताल में सामने आया. जब दवा के अभाव में इमरजेंसी कक्ष में मरीजों को घंटों तक तड़पते देखा गया.
दवा के अभाव में नहीं हुआ इलाज : सदर अस्पताल में दवा का अभाव है. प्रबंधन की लापरवाही व मनमानी के कारण दवा की खरीद नहीं हो पायी है. लिहाजा मामूली दवा के लिए भी मरीज व उनके परिजनों को बाजार की ओर मुखातिब होना पड़ता है. मंगलवार के अपराह्नकाल चैनसिंहपट्टी गांव में पेड़ से गिर कर जख्मी हुए मो आलमगीर को उपचार के लिए सदर अस्पताल लाया गया था.
ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक डॉ अरुण कुमार वर्मा द्वारा मरीज को देखने के बाद उसे डेढ़ सौ रुपये मूल्य का दवा लिख कर भेज दिया, लेकिन मरीज जब कंपाउंडर के पास दवा के लिए पहुंचा तो उसे उसमें से एक दवा दे कर शेष बाजार से लाने का निर्देश दिया गया. आलमगीर की मां गुलेशा खातून व मामी बीबी रोशन के पास दवा लाने के लिए पैसे नहीं थे.
लिहाजा पैसे के अभाव में जख्मी आलमगीर इमरजेंसी कक्ष के सामने घंटों तड़पता रहा. बाद में जख्मी की मामी बीबी रोशन द्वारा बाजार स्थित अपने एक परिचित से कर्ज के रूप में पांच सौ रुपये लाने के बाद दवा उपलब्ध हो पाया और जख्मी का इलाज शुरू हुआ.
33 की जगह दी जाती है 21 प्रकार की दवा : अस्पताल के आउट डोर में सरकार द्वारा निर्धारित 33 प्रकार की दवाओं की जगह मरीजों को मात्र 21 प्रकार की दवा मुहैया करायी जा रही है. दवा के जानकार बताते हैं कि असाध्य रोग से पीड़ित मरीजों के लिए अस्पताल के स्टोर रूम में एक भी दवा उपलब्ध नहीं है.
वहीं सदर अस्पताल के इमरजेंसी कक्ष में सरकार द्वारा जारी आदेश की अवहेलना की जा रही है. इमरजेंसी कक्ष में जेंटामाइसिन एंटीवायोटिक व डायक्लोफेनिक के अलावा एक भी दवा उपलब्ध नहीं हैं. गौरतलब है कि इमरजेंसी में दवा की उपलब्धता का मानक तय नहीं है, जबकि मरीज के आवश्यकतानुसार दवाओं को उपलब्ध कराया जाना है.
दहशत में रहते हैं चिकित्सक व कर्मी
सदर अस्प्ताल के कई कर्मियों ने बताया कि दवा नहीं रहने की वजह से वे लोग दहशत के साये में काम करते हैं. कब किसके साथ अप्रिय घटना घटित हो जाय कहना मुश्किल है. यही वजह है कि यहां काम करने वाले सभी चिकित्सक व कर्मी दहशत के साये में कार्य करने को विवश हैं. कर्मियों ने बताया कि गुरुवार को भी एक मरीज के परिजन द्वारा दवा नहीं मिलने की वजह से कर्मियों के साथ गाली-गलौज की गयी थी. सदर अस्पताल में तैनात सुरक्षा गार्ड के हस्तक्षेप के बाद स्थिति सामान्य हो पायी.

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