अतिक्रमण बनी है विकट समस्या
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कस्बा से शहर बनने की कवायद में संघर्ष कर रहा सुपौल
अतिक्रमण बनी है विकट समस्या सुपौल : सन् 1870 में तिरहुत जिला का अनुमंडल सुपौल को 121 वर्ष बाद सन् 1991 में जिले का दर्जा मिला तो स्थानीय निवासियों को तब लगा था कि कोसी प्रक्षेत्र का यह इलाका जल्द ही विकास की एक नयी ऊंचाई प्राप्त करेगा. बड़ी-बड़ी सड़कें होंगी, जिला मुख्यालय में बड़े […]
सुपौल : सन् 1870 में तिरहुत जिला का अनुमंडल सुपौल को 121 वर्ष बाद सन् 1991 में जिले का दर्जा मिला तो स्थानीय निवासियों को तब लगा था कि कोसी प्रक्षेत्र का यह इलाका जल्द ही विकास की एक नयी ऊंचाई प्राप्त करेगा. बड़ी-बड़ी सड़कें होंगी, जिला मुख्यालय में बड़े नगरों की भांति एक सुंदर सा बाजार होगा, जगमग स्ट्रीट लाइटें होंगी. चकाचक सड़कों के दोनों ओर आधुनिक तरीके से सजी धजी चमचमाती दुकानें होंगी. बड़ी-बड़ी सड़कों के बीचोबीच हरे-भरे पेड़ों से भरा डिवाइडर होगा. सड़कों के दोनों ओर बड़ी-बड़ी पार्किंग व फुटपाथ होगी. सड़कों पर यातायात सुचारु रखने हेतु ट्रैफिक पुलिस होंगे.
वहीं शहर में पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था होगी और कानून का राज होगा. लेकिन शहर के बुद्धिजीवियों में इस बात का अफसोस है कि जिला बनने के 27 साल बाद भी उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हो पायी. शहर व जिला के अन्य हिस्सों में सड़कें तो बनी, बिजली व्यवस्था भी दुरुस्त हुई. बड़े-बड़े मकान व कार्यालय भी बने. अब तो बड़े-बड़े मॉल का निर्माण भी शुरू हो गये हैं. लेकिन शहर की व्यवस्था व संस्कृति आज भी सुदृढ़ नहीं हो पायी. नतीजा है कि जिला मुख्यालय का बाजार आज भी एक नजर में फुटपाथ व ठेलों पर लगा कस्बाई बाजार व हाट की याद दिलाता है.
सड़कों का नहीं हुआ चौड़ीकरण
सनद रहे कि किसी भी बाजार को सुंदर आकार देने के लिये सर्वप्रथम चौड़ी सड़कों की दरकार होती है. विकास की प्रक्रिया में सुपौल शहर की सड़कें भी पहले से काफी बेहतर हुई है. लेकिन सड़कों का अब तक अपेक्षित रूप से चौड़ीकरण नहीं हो पाया. महावीर चौक के समीप स्टेशन रोड, थाना रोड, लोहिया नगर आदि स्थानों पर सड़कों की चौड़ाई नहीं बढ़ने से अक्सर यहां जाम की समस्या उत्पन्न होती है. वहीं स्टेशन चौक जहां कुछ दूरी तक सरकारी माप के मुताबिक 100 फीट चौड़ी सड़कें हैं. लेकिन इन सड़कों पर व्याप्त अतिक्रमण की वजह से 100 फीट की चौड़ी यह सड़क वर्तमान में महज 20 से 30 फीट नजर आता है.
फुटपाथ पर पसरा है अतिक्रमण
शहर की सबसे बड़ी समस्या सड़कों पर पसरा अतिक्रमण है. शहर के करीब सभी सड़कों पर फुटपाथी दुकानदारों व ठेला वालों का कब्जा है. आलम यह है कि स्थायी दुकान के आगे पहली पांत फुटपाथी दुकानदार एवं उनके आगे दूसरी व कई जगहों पर तो तीसरी पांत फल व सब्जी के ठेलों की होती है. नतीजा है कि सड़कों पर वाहनों की बात तो दूर, आमलोगों का चलना भी मुश्किल बना हुआ है.
कहते हैं अधिकारी
कार्यपालक पदाधिकारी एसके मिश्रा ने कहा कि शहर में व्याप्त अतिक्रमण को हटाने को लेकर प्रशासन के सहयोग से प्रयास किया जा रहा है. शीघ्र ही समस्या से निजात पा लिया जायेगा.
पार्किंग की व्यवस्था नहीं
शहर में कहीं भी पार्किंग की व्यवस्था प्रशासन की ओर से नहीं की गयी है. नतीजा है कि वाहन चालकों को बाजार क्षेत्र में वाहन की पार्किंग करने के लिये कठिन समस्या से जूझना पड़ता है. मुख्य बाजार में आमतौर पर कहीं भी वाहन खड़ी करने के लिये उपयुक्त स्थान नहीं है. मजबूरन वाहन मालिक जब कहीं सड़क किनारे वाहन खड़ी करते हैं तो इन्हे प्रशासन से ज्यादा फुटपाथी अतिक्रमणकारियों की खड़ी-खोटी सुननी पड़ती है. कई बार तो नौबत मारपीट तक पहुंच जाती है. प्रशासन ने अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में स्थिति और भी भयावह हो सकती है.
जिला बनने के इतने साल गुजर जाने के बाद शहर में ट्रैफिक पुलिस की तैनाती नहीं की गयी है. वहीं सड़कों पर यदा-कदा गश्त लगाते पुलिस के अधिकारी भी समस्या के प्रति उदासीन बने रहते हैं. कभी-कभार इनकी हेकड़ी दिखती भी है तो महज निजी वाहन चालकों पर. जिनके लिये शहर में कहीं पार्किंग की सुविधा उपलब्ध नहीं है. जबकि अतिक्रमणकारियों के प्रति ये मौन बने रहते हैं. नतीजा है कि अतिक्रमणकारियों का मनोबल दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है.
प्रशासनिक पहल की है दरकार : शहर में व्याप्त कुव्यवस्था के लिये प्रशासनिक इच्छा शक्ति की कमी को जिम्मेवार बताया जाता है. दरअसल प्रशासन की ओर से इस दिशा में कभी कोई ठोस पहल नहीं की गयी. नगर परिषद ने कुछ जगहों पर नो वेंडिंग जोन का बोर्ड लगा रखा है. लेकिन प्रशासन के आदेश को धता बताते अतिक्रमणकारियों के विरूद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जाती.
पूर्व के जिलाधिकारी कुमार रवि के सेवाकाल में शहर को व्यवस्थित करने की ठोस पहल शुरू हुई थी. लेकिन इधर लंबे अरसे से इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया जा रहा. जिससे आम शहरियों में असंतोष व्याप्त है. फुटपाथी दुकानदारों व ठेलों के लिये कोई स्थायी ठिकाना तय किये बिना समस्या के दूर होने की उम्मीद नहीं की जा सकती.
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