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महिला की ललकार पर शिवहर थाने में घुसकर फहराया था झंडा

शिवहर : स्वतंत्रता सेनानियों के वीरता व मातृ भक्ति से अंग्रेजी सता की नींव हिलने लगी थी. दमन के सारे हथकंडे आंदोलनकारियों के वीरता के आगे बिखर कर रह गये थे. स्वतंत्रता सेनानी के आगे अंग्रेजी हुकुमत झुकने को तैयार दिख रही थी. इसी बीच 5 मार्च 1931 को गांधी व वायसराय इरविन के बीच […]

शिवहर : स्वतंत्रता सेनानियों के वीरता व मातृ भक्ति से अंग्रेजी सता की नींव हिलने लगी थी. दमन के सारे हथकंडे आंदोलनकारियों के वीरता के आगे बिखर कर रह गये थे. स्वतंत्रता सेनानी के आगे अंग्रेजी हुकुमत झुकने को तैयार दिख रही थी.

इसी बीच 5 मार्च 1931 को गांधी व वायसराय इरविन के बीच समझौता हुआ.
गांधी जी के 11 सूत्री मांग पर विचार का आश्वासन मिला. उसके बाद आंदोलन स्थगित कर दिया गया, लेकिन अंग्रेजी हुकुमत इसको अमलीजामा पहनाने को तैयार नहीं दिख रही थी. 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में सरदार भगत सिंह, शुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गयी. उसके बाद स्वतंत्रता सेनानी का आक्रोश परवान पर पहुंच गया. इसी बीच 18 अपैल 1930 को वायसराय इरविन इंगलैंड वापस हो गये. उनके जगह लार्ड वेलिंगटन वायसराय बन कर भारत आ गये.
29 दिसंबर 1931 से 1 जनवरी 1932 तक कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक मुंबई में हुई, जिसमें दोबारा सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने का प्रस्ताव पास हुआ. स्वतंत्रता सेनानियों की माने तो गांधी जी ने दोबारा सविनय अवज्ञा आंदोलन की घोषणा कर दी. वहीं 4 जनवरी 1932 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसी दिन जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस भी गिरफ्तार कर लिये गये. सीतामढ़ी में रामनंदन सिंह भूमिगत हो गये, लेकिन 20 जनवरी 1932 को 144 धारा का उल्लंघन कर झंडा लेकर नारा लगाते समय परसैनी के तेजनारायण सिंह, श्यामपुर के नथुनी साह, जहांगीर पुर के असर्फी राम, पहाड़पुर के अमर सिंह समेत 6 को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया.
इसी बीच सरकारी इमारतों पर झंडा फहराने का गुप्त निर्देश जारी किया गया, 28 फरवरी 1932 को शिवहर थाना पर झंडा फहराने का निर्णय लिया गया. उधर देकुली धाम पर बाबा भुनेश्वर नाथ को दर्शन करने अपार भीड़ जुटी थी. इधर आंदोलनकारियों की भीड़ थाना के पास झंडा फहराने को लेकर जुटी थी. जुलूस भी निकाली गयी थी. कार्यक्रम का नेतृत्व जहांगीरपुर निवासी श्यामलाल सिंह, हरनहिया के तृपित सिंह व भोरहां के धरीक्षण मिश्र कर रहे थे. उधर थाना में पुलिस का काफी इंतजाम था.
भीड़ को देख मजिस्ट्रेट ने एक व्यक्ति की झंडा फहराने को आदेश दिया. किंतु आंदोलनकारी इससे संतुष्ट नहीं थे. तब तक देकुली से दर्शन करके लौट रहे लोग भी थाना में पहुंच गये. आंदोलनकारी को संशय में पड़ा देख कररिया गांव निवासी शुभनारयण सिंह की मां राजकुमारी देवी ने लोगों को ललकारते हुए झंडा लेकर आगे बढ़ गयी. फिर क्या था अंदोलनकारियों का हुजुम थाना में घुसकर झंडा फहरा दिया. पुलिस ने लाठीचार्ज किया व फयरिंग की.
इस घटना में पांच लोग वहीं शहीद हो गये, जिसमें गोसाईपुर निवासी भूपनारायण सिंह, वनवीर निवासी मोती रामतिवारी, मोहारी के सुरज पासवान, शिवहर के भगवान राउत, कहतरवा के श्यामबिहारी प्रसाद व एक अन्य शहीद हो गये. वही नयागांव के रामनंदन सिंह व मथुरापुर निवासी करणदत्त पांडेय घायल हो गये. इस दौरान गोरी पुलिस ने चंडिहा के इंद्रदेव दूवे व कररिया के शुभनारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया.
अंग्रेजों द्वारा 4 के घटनास्थल व एक के चिकित्सा के दौरान मारे जाने व 9 के घायल हो जाने का रिपोर्ट भेजा गया. इसमें स्वतंत्रता सेनानी का आक्रोश बढ़ गया. 29 जनवरी को गोलीकांड के विरोध में काला बिल्ला लगाकर मौन जुलूस निकाला गया. इस दौरान शिवहर के जनकधारी राउत, रामलखन राम, धरिक्षण सिंह,पहाड़पुर के रामलोचन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया.
किंतु आंदोलन थमा नहीं दोबारा 26 जनवरी 1933 को सीतामढ़ी कचहरी पर झंडा आंदोलनकारियों ने फहरा दिया. झंडा फहराने के दौरान भोरहां के धरीक्षण मिश्र, नयागांव के रामसागर सिंह, श्यामपुर के नथुनी राम व जहांगीरपुर के असर्फी राम को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन आंदोलन कारी रूके नहीं आंदोलन जारी रहा.

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