Education news from Samastipur:समस्तीपुर : जिले के प्रारंभिक स्कूलों में अब बच्चों को पढ़ाने के तौर-तरीके में बदलाव देखने को मिलेगा. बच्चों को पढ़ाने के लिए पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली पाठ्यपुस्तकों और हस्तपुस्तिकाओं का इस्तेमाल तो जारी रहेगा लेकिन कक्षा शिक्षण सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहेगा. कक्षा एक से तीन तक के बच्चे भाषाई कौशल और गणितीय दक्षता सरलता और रुचिकर गतिविधियों के माध्यम से हासिल कर सकें, अब कक्षा शिक्षण में जोर इस पर होगा. इसके लिए स्कूलों और शिक्षकों को नई शिक्षण सामग्री भी मुहैया करायी जा रही है. डीपीओ एसएसए मानवेंद्र कुमार राय ने बताया कि स्कूल के बच्चों के लिए विषयवार हस्तपुस्तिका तैयार की जा रही है. इसकी प्रक्रिया अंतिम चरण में है. इस सत्र से सरकारी स्कूल के बच्चों को कक्षा 6 से 8 में एनसीईआरटी की किताबें दी गई हैं. अबतक चलने वाली किताबों से यह अलग है. इस सत्र से पाठ्यक्रम में भी बदलाव किया गया है. एनसीईआरटी की इन किताबों के अलावा आसपास की चीजों से बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग से हैंडबुक तैयार किया जा रहा है. मई के पहले हफ्ते तक स्कूलों में इसे पहुंचा दिया जायेगा. बच्चे के लिए हस्त पुस्तिका बहुत उपयोगी होती है, क्योंकि यह उन्हें सिखाने, कौशल विकसित करने और मनोरंजन करने में मदद करती है. ये हस्त पुस्तिकाएं बच्चों को सिखाने के एक प्रभावी और मजेदार तरीका प्रदान करती हैं, जिससे उन्हें विभिन्न विषयों के बारे में जानना और सीखना आसान हो जाता है. प्रत्येक स्कूल में गणित किट, करेंसी नोट के जरिये मुद्रा की जानकारी तथा लकड़ी के बने ठोस आकारों के जरिये बच्चों को वृत्त, वर्ग और आयात का मतलब समझाया जा सकेगा. प्रत्येक स्कूल में रीडिंंग कॉर्नर के साथ एनसीईआरटी की किताबों से सजी लाइब्रेरी भी तैयार की जायेगी.
ऐसी बनी हस्तकला की प्रयोगशाला
अब शिक्षक बच्चों को कचरे से कई वस्तुएं के पुनर्निर्माण और उन्हें दोबारा उपयोग में लाने के तरीके सिखाएंगे. कुछ शिक्षक द्वारा किए गए कुछ प्रयासों का परिणाम है कि ज्यादातर बच्चे हस्तकला में दक्ष तो हो ही रहे हैं, उनमें सौंदर्यबोध भी विकसित हो रहा है और वे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बन रहे हैं. कई सत्रों में इन बच्चों ने अपनी-अपनी कक्षाओं को सजाने के लिए कई सामान तैयार किये हैं. जैसे कि इन्होंने रद्दी कागज और कबाड़ की अन्य बेकार चीजों से सावित्री बाई फुले की फोटो रखने के लिए एक सुंदर मंदिर बनाया है. इन्होंने प्लास्टिक की बोतलों से फूल और फूलदानियां तैयार की हैं. इसके अलावा, इन बच्चों ने बक्से के मौटे कागज से पोस्ट-ऑफिस का मॉडल तैयार किया है. साथ ही, कागज की टोकरियां व कलश तथा प्लास्टिक के मटके और पर्स आदि भी तैयार किए गए हैं. उत्क्रमित मध्य विद्यालय लगुनियां सूर्यकण्ठ के एचएम सौरभ कुमार ने बताया कि शुरुआत में जब उन्होंने कुछ सत्रों में कई चीजें तैयार करके बच्चों को बताईं तो उन्होंने कोई खास रुचि नहीं दिखाई थी. लेकिन, चर्चा के दौरान कुछ बच्चे यह जरुर कहने लगे थे कि यदि बेकार चीजों को फिर से तैयार किया गया तो वे सुंदर लगेंगी. अक्सर प्रधानाध्यापक बच्चों को स्कूल परिसर या उसके आस-पास से प्लास्टिक की बेकार पड़ी बोतलों को लाने के लिए कहते. फिर वे बच्चों के सामने ही बोतलों से फूल आदि बनाते. इससे बच्चों में यह जिज्ञासा पैदा होती कि कोई चीज तैयार कैसे हुई. तब प्रधानाध्यापक उनसे कहते कि ऐसी चीजें बनाना आसान है. फिर जिन बच्चों की इसमें रुचि होती वे प्रधानाध्यापक के साथ ऐसी चीजें बनाना सीखने लगते. धीरे-धीरे इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने वाले बच्चों की संख्या बढ़ती चली गई.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है