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बच्चों की सुरक्षा के प्रति बेपरवाह

समस्तीपुर : स्कूल के टॉयलेट में सात साल के मासूम प्रद्युम्न की गला रेतकर की गयी हत्या भले ही गुरुग्राम के एक निजी स्कूल की हो, लेकिन सवालों के घेरे में लगभग सभी स्कूल हैं. शायद ही किसी अभिभावक को पता होता है कि उनके बच्चे को स्कूल लाने और ले जाने वाली बस या […]

समस्तीपुर : स्कूल के टॉयलेट में सात साल के मासूम प्रद्युम्न की गला रेतकर की गयी हत्या भले ही गुरुग्राम के एक निजी स्कूल की हो, लेकिन सवालों के घेरे में लगभग सभी स्कूल हैं. शायद ही किसी अभिभावक को पता होता है कि उनके बच्चे को स्कूल लाने और ले जाने वाली बस या वैन के चालक व कंडक्टर कौन हैं?

स्कूल में काम करने वाले स्टाफ का क्या कोई रिकॉर्ड प्रबंधन के पास है. गुरु ग्राम की घटना के बाद ऐसे तमाम सवाल सोचने पर मजबूर करते हैं कि बच्चे स्कूल में कितना सुरक्षित हैं. सुबह ज्यादातर स्कूलों के मेनगेट पर माता व पिता अपने बच्चों को इस भरोसे के साथ छोड़कर बेफिक्र लौट जाते हैं कि उस चहारदीवारी में वह पूरी तरह सुरक्षित हैं. लेकिन निजी स्कूल में शुक्रवार को हुई हृदयविदारक घटना ने सभी को हिला कर रख दिया.

डीइओ सत्येंद्र झा ने बताया कि स्कूल संचालकों से अपील की जा रही है कि वे अपने यहां के सभी वाहन चालकों का सत्यापन अनिवार्य रूप से कराएं ताकि गुरु ग्राम जैसी घटना की पुनरावृत्ति न हो.अभिभावकों के लिए भी सलाह है कि अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाएं. बच्चों से भी फीडबैक लेते रहें. शिक्षाविद् डाॅ दशरथ तिवारी का कहना है कि स्कूल बच्चों के लिए वह स्थान होता है, जहां उन्हें अपनेपन का एहसास होता है.

स्कूल में बच्चों के लिए महज पढ़ाई नहीं, उनकी सुरक्षा भी बेहद जरूरी है. स्कूल के शिक्षकों व प्रधानाचार्यों को इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना होगा. डीएम के निर्देश पर जब डीपीओ एसएसए ने निजी स्कूल संचालकों से वाहन से संबंधित जानकारी मांगी, तो करीब आधा दर्जन स्कूलों को छोड़ अधिकांश ने चुप्पी साध ली है. डीपीओ एसएसए देवबिंद कुमार सिंह का कहना है दो बार पत्राचार व अन्य माध्यमों से जानकारी मांगी गयी थी, लेकिन अब तक अप्राप्त है. अब नोटिस जारी कर कार्रवाई की बात कही जा रही है.

वैन में अकेला चालक तो बसों में नहीं रहते हैं शिक्षक : सुप्रीम कोर्ट द्वारा नौनिहालों की सुरक्षा के लिए जारी गाइड लाइन का पालन नहीं किया जाता है.

बसों में सहायक और शिक्षकों की गैरमौजूदगी रहती है. इसके साथ पीले रंग की अनिवार्यता की भी धज्जियां उड़ायी जा रही हैं. लाड़ले की सुरक्षा से चिंतित बहुत से अभिभावकों ने बस की सुविधा छोड़कर स्कूल लाने और ले जाने की जिम्मेदारी खुद के ऊपर ले ली है. पुलिस व शिक्षा अधिकारी भी इन मामलों में कार्रवाई करने के बजाय शिकायतों का इंतजार करते रहते हैं. वहीं स्कूली बस का रंग पीला होना चाहिए.

उस पर स्कूल का नाम और मोबाइल नंबर दर्ज होना चाहिए, लेकिन कुछेक को छोड़ अधिकांश स्कूल प्रबंधकों की मनमानी के कारण प्राइवेट वैन में बच्चे ढोए जाते हैं. शहर से लेकर गांव तक प्राइवेट स्कूलों की भरमार है. इनमें पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को ढोने वाले वाहनों के चालक परिचालकों का सत्यापन न तो परिवहन विभाग कराता है और न ही स्कूल संचालक.

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