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बच्चों की किलकारी नहीं, सिसकियों की गूंज है कायम

सहरसा नगर: एक ही परिवार के तीन बच्चों के जिंदा जलने के बाद महिषी प्रखंड क्षेत्र का महिसरहो गांव अपनी बेबसी व गरीबी पर मातम मना रहा है. शनिवार को लोग अपने काम में जुटे थे, लेकिन इन सबके बीच एक खामोशी छायी थी. फागो पंडित के घर तो जैसे आग ही बरस रही है. […]

सहरसा नगर: एक ही परिवार के तीन बच्चों के जिंदा जलने के बाद महिषी प्रखंड क्षेत्र का महिसरहो गांव अपनी बेबसी व गरीबी पर मातम मना रहा है. शनिवार को लोग अपने काम में जुटे थे, लेकिन इन सबके बीच एक खामोशी छायी थी. फागो पंडित के घर तो जैसे आग ही बरस रही है.

फागो व शिरु पंडित के घर की महिलाओं की नि:शब्द वेदना गांव की खामोशी और बढ़ा रही है. गांव की गलियों में गूंजने वाला बच्चों का शोर भी बंद है. बच्चों को शुक्रवार की घटना का एहसास तो नहीं है, लेकिन वह भी खामोशी के साथ बाकी लोगों के साथ कदमताल कर रहे हैं. घर के आंगन में अब बच्चों के खेलने का शोर तो नहीं, बल्कि मां-दादी की सिसकियां आने-जाने वाले लोगों के कलेजे को बेध रही हैं.

राख के ढेर में मिला चश्मा. तीसरी कक्षा में पढ़ने वाला सुमन हादसे की बाबत पूछने पर बताता है, वह उस समय स्कूल गया था. पता चला कि घर में आग लगी है, तो दौड़ कर घर आ गया. आज सुबह से आरती, सूरज व बसंत को ढ़ूंढ़ रहा हूं. आग से जलने के बाद उन्हें लोग अस्पताल ले गये थे, लेकिन उसके बाद से उनका कुछ पता नहीं चल पाया है. अगलगी में जल चुके राख के ढेर के पास सुमन खड़ा है, जैसे लग रहा है कुछ ढूंढ़ रहा है. तभी राख के बीच एक प्लास्टिक का चश्मा दिखता है, जिसे वह उठा लेता है. चश्मे को लेकर वह क्या सोच रहा है, ये तो नहीं पता, लेकिन उसके चेहरे पर छायी खामोशी बहुत कुछ बयां कर रही है. वहीं पंडित परिवार की बड़ी पोती पारो घटना के बाद से बेसुध पड़ी है. लोगों द्वारा झकझोरने पर आंख से आंसू टपक पड़ते है. मासूम बच्ची सुशीला कहती है, कल के बाद से पारो दीदी कुछ नहीं बोल रही है, केवल रोती है. कुछ बोलती भी नहीं.

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