पूर्णिया : बढ़ता बिहार और सबका साथ सबका विकास के नारे के बीच शहर के खेल प्रेमी खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं. चुनाव दर चुनाव बीत जाने के बाद भी यहां न तो खेल के संसाधनों का विकास हुआ और न ही खिलाड़ियों का. जिला मुख्यालय में खेल की स्थिति यह है कि यहां के खिलाड़ी एक अच्छे मैदान को तरस रहे हैं.
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न तो संसाधनों का विकास हुआ, न ही खिलाड़ियों का
पूर्णिया : बढ़ता बिहार और सबका साथ सबका विकास के नारे के बीच शहर के खेल प्रेमी खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं. चुनाव दर चुनाव बीत जाने के बाद भी यहां न तो खेल के संसाधनों का विकास हुआ और न ही खिलाड़ियों का. जिला मुख्यालय में खेल की स्थिति यह […]
खेल प्रेमी इस बार अपने प्रत्याशियों से खेल संबंधित योजनाओं पर सवाल कर रहे हैं जिसका जवाब देने से नेता जी कतरा रहे हैं. दरअसल, विकास के दावों के बीच जिले में खेल के विकास का मुद्दा पीछे छूट गया है. यहां न तो अच्छे खेल के मैदान है और न ही उनके विकास की योजना ही बन पाई है.
कहने को तो शहर में तीन खेल के मैदान हैं परंतु उनका उपयोग चुनावी रैलियों और नेताओं के कार्यक्रम स्थल बनाए जाने तक ही सिमट कर रह गया है. इंदिरा गांधी स्टेडियम का हाल हाथी के दांत की तरह है. स्टेडियम आज शोभा की वस्तु बन कर रह गयी है. यहां न तो खेल प्रतियोगिता का आयोजन होता है और न ही इसकी स्थिति प्रतियोगिता करने लायक है.
स्टेडियम का मैदान उबड़-खाबड़ है जिससे यहां न तो क्रिकेट की प्रतियोगिताएं आयोजित कराई जा सकती है और न ही फुटबॉल और हॉकी की. इधर जिला स्कूल और डीएसए मैदान की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. इस संबंध में खेल प्रेमियों ने इस बार अपने प्रत्याशियों से खेल के प्रति उनकी उम्मीद बतायी.
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