Sharda Sinha: शारदा सिन्हा की बेटी वंदना ने कहा कि उनकी मां सरस्वती माता की साधना करती थी. छठी मैया की कृपा उन पर सदा बनी थी. उन्होंने कहा कि, कांच ही बांस के बहंगिया…. पहिले-पहिले हम कइनी छठी मइया बरत तोहार… जैसे गाने इस बार भी छठ में गूंजेंगे पर मेरी मां की बस याद ही रहेगी. पिछले साल छठ के पहले ही उनकी तबियत बिगड़ी और नहाय-खाय के दिन वह छठी मां के घर चली गयीं. हमसब के लिए वह पल काफी भावुक कर देनेवाला था. उन दिनों वह काफी कष्ट में थीं, तब मैंने छठ का गीत गया.”
वंदना ने आगे कहा, “बीमारी व दर्द के बीच भी मां ने मेरे गीत के बोल व लय को सुधारा. मां ने बीमार होने के पहले एक छठ गीत भी रिकॉर्ड किया था, उनकी इच्छा थी कि इसे रिलीज किया जाये, जिसे पिछले साल रिलीज किया गया. इस बार जो गीत रिलीज हुआ, वह बिना किसी म्यूजिक के मां ने रिकॉर्ड किया था. उनकी आदत थी कि पहले वह गीत की रिकॉर्डिंग करती थीं और फिर सुनकर सुधार करती थीं. आखिरी पलों में भी उनका ध्यान उनके गाये छठ के गीतों पर रहा.”
बोल को लेकर वह काफी गंभीर रहती थीं
शारदा सिन्हा की बेटी ने आगे कहा, “मां के लिए उनके गीतों का काफी महत्व था, खास कर बोल को लेकर वह काफी गंभीर रहती थीं. लिखे गीतों को गाने से पहले उस पर काम करती थीं, उसे अपने विचारों से ढालती थीं. अगर वह खुद कोई गीत लिखती थीं, तो सोते, खाते, जागते हर वक्त उस पर काम करती थीं. अगर गीत मन लायक न हो, तो उसमें बदलाव करतीं.”
वंदना ने कहा कि कभी-कभी हम दोनों भाई-बहन को अपने पास बैठाकर अपने गीत गुनगुनाती और फिर हमें गाकर सुनाने को कहतीं. सुनने के बाद कई गीतों के आगे की लाइनें लिखतीं, कुल मिला कर जबतक वह गाने को पूरा नहीं कर लेतीं तब तक पूरा ध्यान उनका उसी पर रहता. अपने काम को लेकर मां हमेशा अनुशासन के साथ समर्पित रहतीं. कई बार ऐसा हुआ कि रिकॉर्डिंग के बाद उन्हें लगा कि कुछ लाइनें सेट नहीं हो रहीं, उन्हें फिर गाती. मां हमेशा कहतीं, वह अपनी गायकी से अर्घ देती हैं.
दादी से उनकी भाषा में समझती थीं छठ की महत्ता
वंदना ने बताया कि गांव में दादी छठ किया करती थीं. मां घर सजाने, अल्पना और ठेकुआ बनाने में व्यस्त रहती थीं. इन सबके बीच दादी के पास बैठकर छठ की महत्ता को उनकी भाषा में समझती थीं और फिर उसे अपने गीतों में शामिल करती थीं. मां के गीतों से उनका जमीनी जुड़ाव इतना गहरा रहता कि जब वह गातीं, तो उसमें सहजता और आत्मीय लगाव साफ दिखता था.
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व्यस्तता के बाद भी घर के दायित्वों को नहीं छोड़ा
वंदना ने उनको याद करते हुए कहा कि मां ने व्यस्तता के बावजूद अपने घर के दायित्वों को नहीं छोड़ा. पटना में रहती थीं तो उनसे मिलने के लिए काफी लोग आते थे, वह किसी को ना नहीं कहतीं, पर अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़तीं. जब किसी गाने की रिकॉर्डिंग के लिए जातीं, हमारे साथ मिलकर खाने की तैयारी करतीं. वह कहती थीं कि लौट कर खाना बनाने में आसानी होगी. रिकॉर्डिंग के दौरान हम दोनों भाई-बहन उनके आसपास ही रहते थे और वापस आकर वह हम सभी के लिए खाना बनाती थीं.
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