Patna News: खाद्य सुरक्षा प्रशासन की टीम ने पटना के मीठापुर और मीना बाजार मंडी में छापेमारी कर इस गोरखधंधे का पर्दाफाश किया है. जांच में सामने आया कि पुराने आलू को नया दिखाने के लिए हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल किया जा रहा था.
दो ट्रक आलू जब्त कर उन्हें जांच के लिए लैब भेजा गया है. फिलहाल कारोबारी फरार हैं, लेकिन यह खुलासा एक बड़ी लापरवाही की ओर इशारा करता है, जो आम उपभोक्ता की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहा है.
मंडियों में चल रहा था आलू का गोरखधंधा
खाद्य सुरक्षा अधिकारी अजय कुमार के नेतृत्व में हुई छापेमारी ने शहर को हिला कर रख दिया. मीठापुर और मीना बाजार मंडी में टीम को सूचना मिली थी कि यहां पुराने आलू को ‘नया’ बताकर बेचा जा रहा है. जब टीम मौके पर पहुंची तो पाया कि आलू को गेरुआ मिट्टी और रसायनों से चमकदार बनाया जा रहा था. ग्राहक धोखे में इन्हें नया आलू मानकर ऊंचे दामों पर खरीद रहे थे.
छापेमारी के दौरान करीब दो ट्रक आलू जब्त किए गए, जिन्हें जांच के लिए भेज दिया गया है. हालांकि, पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई शुरू होने से पहले ही कई कारोबारी मौके से फरार हो गए.
छत्तीसगढ़ से आते थे आलू, दो दिन में सड़ जाते
जांच में यह भी सामने आया कि ये आलू छत्तीसगढ़ से मंगाए जाते थे. इनमें केमिकल्स का इस्तेमाल इतना अधिक था कि आलू दो दिन के भीतर ही सड़ जाते. यानी ग्राहकों तक पहुंचने से पहले ही यह ‘नया आलू’ अपनी असली पहचान खो देता.
नया आलू बाजार में 75 से 80 रुपये किलो बिक रहा है, जबकि पुराना आलू 20 से 25 रुपये किलो में उपलब्ध है. इसी भारी अंतर का फायदा उठाने के लिए कारोबारियों ने यह खतरनाक खेल शुरू किया.
छापेमारी की कार्रवाई मंडियों तक सीमित नहीं रही. टीम ने बोरिंग रोड स्थित गोरखनाथ कॉम्प्लेक्स में एक कैफे और राजा बाजार में एक बिरयानी हाउस में भी औचक छापा मारा. यहां नकली पनीर बेचने की आशंका पर नमूने लिए गए. दोनों ही जगहों पर पनीर और बिरयानी की बिक्री पर फिलहाल रोक लगा दी गई है. यह साफ संकेत है कि शहर में खाद्य वस्तुओं की गुणवत्ता से बड़े पैमाने पर समझौता किया जा रहा है.
पहचान कैसे करें नकली आलू
विशेषज्ञों का कहना है कि नकली आलू को पहचानना मुश्किल नहीं है. असली आलू की खुशबू प्राकृतिक होती है, जबकि केमिकल मिले आलू से अजीब गंध आती है. असली आलू को काटने पर अंदर और बाहर का रंग मेल खाता है, जबकि नकली आलू में यह असमान्य हो सकता है. एक और तरीका है पानी में डुबोकर देखना. असली आलू पानी में डूब जाता है, जबकि केमिकल से भारी किए गए आलू तैर सकते हैं.
पीएमसीएच के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. जे.के. तिवारी के अनुसार, गेरुआ मिट्टी और रसायनों से रंगे आलू का सेवन लिवर और किडनी पर सीधा असर डालता है. लंबे समय तक ऐसे आलू खाने से किडनी फेल होने का खतरा बढ़ जाता है. डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि उपभोक्ताओं को आलू खरीदते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, खासकर तब जब दाम असामान्य रूप से ज्यादा हों और आलू असामान्य रूप से चमकदार दिखे.
बड़ा सवाल: उपभोक्ता की थाली में क्या सुरक्षित है?
इस खुलासे ने एक बार फिर खाद्य सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं. पटना जैसे बड़े शहर में अगर खुलेआम नकली आलू और नकली पनीर बेचे जा रहे हैं तो छोटे कस्बों और गांवों में स्थिति क्या होगी, यह आसानी से समझा जा सकता है. प्रशासनिक कार्रवाई हुई है, लेकिन असली चुनौती यह है कि आम उपभोक्ता किस पर भरोसा करे.
फिलहाल यह साफ है कि ‘नये आलू’ के नाम पर बाजार में जहर परोसा जा रहा है. उपभोक्ताओं को अपनी सुरक्षा के लिए जागरूक होना पड़ेगा, क्योंकि एक लापरवाही उनकी सेहत पर भारी पड़ सकती है.

