Jagadguru Rambhadracharya सीता प्राकट्य भूमि पुनौरा धाम के सीता प्रेक्षागृह में आयोजित श्री राम-कथा के पांचवें दिन जगद्गुरू रामभद्राचार्य जी महाराज ने कहा कि ज्ञानमार्गी मिथिला वासियों को भक्ति और प्रेम मार्ग पर ले जाने का काम स्वयं मां सीता ने किया है. ज्ञान मार्गी अब भक्ति मार्गी और प्रेमार्गी हो गये. कहा कि जब मन द्रवित हो जाता है, तब भगवान पर भरोसा बढ़ जाता है. मां सीता की प्राकट्य भूमि है, इसलिए भाव आना स्वाभाविक है.
पुण्यारण्य साधारण भूमि नहीं, दिव्य भूमि है, जहां मां सीता प्रकट हुईं. पुष्पवाटिका प्रसंग सुनाते हुए कहा कि मां सीता दोष को भी गुण मान लेती हैं. जबकि राम दोष पर दंड देते हैं. जीव के दोष को गुण मान सीता अपना बना लेती हैं. सीता के चरणों में आकर सारे दोष मिट जाते हैं. मां सती के दोष को भी सीता ने माफ कर दिया था. शिव ने भी राम की माया सीता को प्रणाम किया और पहचान लिया कि सीता ही राम की माया है.
भगवान राम के वाम अंग में विराजतीं हैं मां सीता
वहीं, छठे दिन की कथा सुनाते हुए शनिवार को जगद्गुरू ने स्वयंवर की कथा सुनाते हुए कहा कि मां सीता सदैव भगवान राम के वाम अंग में विराजतीं हैं. सीता शक्ति हैं. महाशक्ति हैं. आद्य शक्ति हैं. समस्त जगत के मूल आधार मां सीता हैं. सबको अधीन करने की शक्ति मां सीता के पास है. सीता ने राजा जनक, मिथिला की प्रजा और राम के मन को जीत चुकी थीं. अब धनुष यज्ञ और धनुष यज्ञ में आये राजाओं पर नियंत्रण करना शेष था.
मां सीता ने छठे शक्ति का उपयोग कर सभी राजाओं की शक्ति खत्म कर दी. शिव धनुष को अहंकार रहित राजा तोड़ सकते थे, इसलिए राजा राम ने शिव धनुष तोड़ा है. शंकर के धनुष के पास आते ही अहंकारी दस हजार राजाओं के बल नष्ट हो जाते थे. सभी जीव की शक्ति माता सीता की शक्ति है. भगवान राम ने अपने तीन गुरु को प्रणाम कर धनुष को उठा लिया.
पहला प्रणाम गुरु वशिष्ठ को, दूसरा प्रणाम गुरु विश्वामित्र को और तीसरा प्रणाम महादेव को करके धनुष तोड़ दिया. रामचरितमानस सभी ग्रंथों का सार तत्व है. धनुष पर चाप खींचते ही सीता का मन भी राम की ओर खींच गया और धनुष टूटते ही परशुराम का अहंकार टूट गया.
श्री हनुमान जी ने इसका वर्णन किया है. पांचों घटना श्री हनुमान जी अपनी आंखों से अदृश्य रूप से देख रहे थे. कथा में संयोजक राम शंकर शास्त्री, संत भूषण दास, यजमान जानकी नंदन पांडेय, राम छबीला चौधरी, वाल्मीकि कुमार, शिव कुमार व धनुषधारी सिंह समेत बड़ी संख्या में श्रोता भक्त शामिल थे.
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