Chhath Puja 2025: हिन्दी दिवस के मौके पर ममता बनर्जी ने न सिर्फ हिन्दी भाषी समुदाय को शुभकामनाएँ दीं, बल्कि छठ महापर्व के अवसर पर दो दिनों की छुट्टी देकर यह संदेश भी दिया कि पश्चिम बंगाल की पहचान अब बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक समाज के रूप में मजबूत हो रही है.
बिहार-झारखंड से बड़ी संख्या में लोग रोजगार, शिक्षा और कारोबार की तलाश में बंगाल में बसे हुए हैं. उनके लिए यह निर्णय केवल सरकारी छुट्टी भर नहीं, बल्कि सांस्कृतिक सम्मान का प्रतीक है.
बिहार और बंगाल, साझा संस्कृति की डोर
इतिहास गवाह है कि बिहार और बंगाल की सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराएँ गहराई से जुड़ी रही हैं. गंगा का किनारा हो या मिथिला और मगध से जुड़े लोकगीत—इनकी गूँज कोलकाता और बंगाल के छोटे कस्बों तक सुनाई देती है. छठ पूजा भी इसी सांस्कृतिक सेतु का हिस्सा है. कोलकाता, आसनसोल, दुर्गापुर, सिलीगुड़ी जैसे इलाकों में हर साल हज़ारों की संख्या में प्रवासी बिहारी छठ पर्व को उसी आस्था के साथ मनाते हैं जैसे पटना या आरा में.
ममता बनर्जी का यह फैसला बिहारियों को सीधा जोड़ता है, क्योंकि अब वे अपने त्योहार को न केवल घर-आँगन या नदी-तालाब पर बल्कि पूरे सम्मान और प्रशासनिक सहयोग के साथ मना पाएँगे.
अब तक पश्चिम बंगाल में छठ पूजा पर आधिकारिक छुट्टी की मांग कई बार उठती रही, लेकिन इस वर्ष पहली बार सरकार ने इसे मान लिया. 2025 के छठ पर्व पर दो दिनों की सरकारी छुट्टी का ऐलान ऐतिहासिक माना जा रहा है.
हिन्दी दिवस और छठ—सांस्कृतिक राजनीति का संदेश
ममता बनर्जी ने हिन्दी दिवस के मौके पर यह घोषणा की. यह संयोग ही नहीं, बल्कि एक सोची-समझी राजनीतिक-सांस्कृतिक रणनीति मानी जा रही है. उन्होंने न केवल हिन्दी भाषी भाई-बहनों को शुभकामनाएँ दीं, बल्कि यह भी याद दिलाया कि राज्य में 2011 से ही हिन्दी भाषी समुदाय के लिए कई कदम उठाए गए हैं.
बिहार से हर साल लाखों लोग नौकरी और रोजगार के लिए बंगाल का रुख करते हैं. खासकर उत्तर और दक्षिण बंगाल के औद्योगिक इलाकों में बिहारी मजदूरों की बड़ी आबादी है. छठ महापर्व उनके लिए सिर्फ धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि घर-परिवार और मिट्टी से जुड़ाव का प्रतीक है.
अब तक त्योहार के दिनों में छुट्टी न मिलने की वजह से बहुत से लोग सही ढंग से पर्व नहीं मना पाते थे. दो दिनों की छुट्टी मिलने से वे न केवल अर्घ्य और कृतज्ञता के भाव से जुड़ी रस्में निभा पाएँगे, बल्कि परिवार के साथ त्योहार का आनंद भी ले सकेंगे.
ममता की राजनीति और हिन्दी भाषी समीकरण
पश्चिम बंगाल की राजनीति में हिन्दी भाषियों का वोट बैंक अहम हो चला है. अनुमान है कि राज्य की कुल आबादी का करीब 10-12 प्रतिशत हिस्सा हिन्दी भाषी है, जिसमें बिहार और झारखंड से आए लोग बड़ी संख्या में शामिल हैं.
छठ महापर्व पर छुट्टी का ऐलान करके ममता बनर्जी ने न केवल सांस्कृतिक सम्मान दिया है, बल्कि यह संदेश भी दिया कि उनकी राजनीति समावेशी है. बिहार और बंगाल की साझा संस्कृति और इतिहास को देखते हुए यह फैसला दोनों राज्यों के बीच रिश्तों को और मजबूत करता है.

