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खतरे में बचपन-1: कोसी-सीमांचल-पूर्वी बिहार में विद्यार्थियों और युवाओं में बढ़ी आत्महत्या की प्रवृत्ति

भागलपुर, पूर्णिया, मुंगेर समेच पूर्वी बिहार, कोसी, सीमांचल के जिलों में विद्यार्थियों और युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है. क्या है कारण. पढ़ें खतरे में बचपन रिपोर्ट शृंखला की पहली कड़ी.

  • 14 जनवरी, 2025 : पूर्णिया जिले के बनमनखी में 14 वर्षीय बच्ची ने रस्सी के सहारे पंखे से लटक कर जान दे दी. वह नौवीं कक्षा की छात्रा थी. छात्रा के माता-पिता, नाना-नानी कुंभ मेला जाने की तैयारी कर रहे थे. छात्रा भी उनके साथ कुंभ जाना चाहती थी. छात्रा की पढ़ाई प्रभावित होती. इस वजह से माता-पिता ने उसे नहीं ले गये. माता-पिता के जाने के बाद लड़की गुस्से में अपने कमरे में चली गयी. फिर अपनी जिंदगी खत्म कर ली.
  • 11 जनवरी 2025 : सुपौल जिले के नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड नंबर 18 स्थित आदर्श मोहल्ला के एक छात्र ने सीटीईटी की परीक्षा में फेल होने के बाद खुदकुशी कर ली. 
  • 06 जनवरी, 2025 : मुंगेर जिले के टेटिया बंबर प्रखंड के गंगटा थाना अंतर्गत दरियापुर गांव में 16 वर्षीय इंटर की छात्रा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. वजह किसी बात को लेकर मां की डांट. 
  • 10 दिसंबर, 2024 : भागलपुर के बरारी इलाके में शीतला स्थान मंदिर के पास एक नाबालिग बच्ची ने फंदे से लटक कर अपनी जान दे दी. वजह सिर्फ इतनी सी थी कि पढ़ाई नहीं करने को लेकर उसकी मां ने डांटा था.
  • 22 दिसंबर, 2024 : प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही 23 वर्ष की छात्रा ने भागलपुर के खंजरपुर स्थित लॉज में फंदे से लटक कर मौत को गले लगा लिया. 
    23 दिसंबर, 2024 : एसएम कॉलेज रोड स्थित एक लॉज में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाली छात्रा ने फंदे से लटक कर जान दे दी. 
  • 20 सितंबर, 2024 : जमुई के बरहट थाना क्षेत्र के बरहट गांव में घरेलू विवाद से नाराज 16 वर्षीय इंटर की छात्रा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.

भी जिंदगी शुरू ही हुई थी कि देखते-देखते खत्म हो गयी. दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की यह सूची लंबी है. यह हालिया घटनाएं बीते एक-दो महीने की है. साल-दो साल का आंकड़ा और भयावह है. देश के बड़े शहरों-महानगरों से निकल कर कोसी-सीमांचल-पूर्वी बिहार के छोटे-छोटे शहरों, कस्बों, गांवों तक किशोरावस्था में आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. हंसने-खेलने की उम्र में आत्महत्या जैसा भयावह कदम स्तब्ध कर देनेवाला है. आत्महत्या की इन दुखद घटनाओं के पीछे जो कारण हैं, वह झकझोर देनेवाले हैं. माता-पिता द्वारा कुंभ में नहीं ले जाना, मां की डांट, पढ़ाई का दबाव, परीक्षा में फेल हो जाना, प्रेम संबंध…आदि. क्यों यह सामान्य सी बातें इतनी असामान्य, इतनी गंभीर हो गयीं कि किशोर मन आत्महत्या जैसे भयावह कदम उठाने को मजबूर हो गया? यह सवाल सिर्फ उन किशोरों-किशोरियों, छात्राओं-छात्रों के परिजनों के सामने नहीं, बल्कि पूरे समाज के सामने खड़ा है. इस उम्र में सहनशीलता, स्थिरता, धैर्य का संकट क्यों? कहां से यह संस्कार, यह विचार आ रहे हैं कि जो मन का नहीं हुआ, तो जिंदगी ही खत्म कर डालो. क्या हम अभिभावक खुद भी छोटी-छोटी बातों, परेशानियों और संघर्ष के डर से हर रोज धैर्य नहीं खो रहे, जो हमारे बच्चे भी सीख रहे हैं.

क्या आपने कभी गौर किया है

क्या आपने कभी गौर किया है, परखा है, निहारा है कि खुद आपके घर, आपके निजी संबंधों के संसार में क्या बदलाव आये हैं? बचपन कहां है? युवा कैसे और किन हालात में हैं? बच्चों का दिमाग कैसे काम करता है? किशोर किस तरह सोचते हैं? आपके अपने ही बच्चे सोच के स्तर पर कहां खड़े हैं, और हम मां-बाप कहां खड़े हैं? स्कूल, क्या बच्चों के भावनात्मक संसार में उठे तूफान को समझ पा रहे हैं? पिछले 30-35 वर्षाें में अप्रत्याशित क्रांति हो गयी है, बदलाव आ गया है. आपसी संबंधों में, चीजों को देखने की दृष्टि में, परिवार की जीवन शैली में, स्कूलों में, बच्चों और किशोरों के सोचने के तौर-तरीकों में.

क्या हमें एहसास है…

क्या हमें एहसास है कि यह कितना बड़ा, व्यापक और अविश्वसनीय है? चूंकि हम इन्हें रोज देखते हैं, हर सांस में जीते हैं, रोज इस बदलाव के संकेत पाते हैं, पर इन सब को जोड़ कर हम नहीं देख या आंक पाते कि हमारे पांवों के नीचे की धरती कहां से कहां पहुंच चुकी है? जैसे तेज बहती नदी के किनारे खड़े होकर लगता है कि पानी स्थिर है. सब कुछ वही है. पानी वही, नदी वही. पर पानी तो हर पल नया हो जाता है. प्रवाह के कारण. सिर्फ हम देख नहीं पाते. उसी तरह बदलते समाज को समझने का नजरिया है. पल-पल बदलता परिवार, समाज और संबंधों का संसार एक नयी दुनिया और नये फलक पर पहुंच चुका है. जहां, इस समाज में बचपन खो गया है. टेक्नोलॉजी ने बच्चों, किशोरों और समाज के संबंधों को उलट-पुलट दिया है. आज के छात्रों-किशोरों के हाथ में एंड्रॉयड फोन है. पूरी दुनिया मुट्ठी में कैद है. 

इंटरनेट और मोबाइल क्रांति के खतरे

ज के समय में इंटरनेट और मोबाइल हमारी जीवन शैली का एक अभिन्न अंग बन गया है. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आप जिसे अपने बच्चों का दोस्त समझते हैं, वह आपके बच्चों के लिए खतरनाक भी हो सकता है. इंटरनेट जहां अपार ज्ञान का सागर है, वहीं यह एक साथ कई समस्याओं को जन्म देता है. बहुत से स्कूली बच्चे अपने शिक्षक और दोस्तों के साथ अभद्र तरीके से पेश आते हैं या उन्हें चिढ़ाते हैं और फिर उनकी प्रतिक्रिया को मोबाइल से रिकॉर्ड कर इंटरनेट पर अपलोड कर देते हैं. इसे ‘साइबर-बेटिंग’ कहा जाता है.

इंटरनेट पर हमारे बच्चे क्या कर रहे हैं

एक ऑनलाइन कंपनी के सर्वे से पता चलता है कि भारत में बच्चों का इंटरनेट के प्रति अनुभव बहुत सकारात्मक नहीं है. बच्चे इंटरनेट का उपयोग चैटिंग या फिर दोस्तों को अश्लील तस्वीर भेजने या दोस्तों की प्रोफाइल से डाटा चुरा कर दूसरी जगह अपलोड करने में करते हैं. यह साइबर क्राइम में आता है. अगर आपका बच्चा कंप्यूटर और मोबाइल का उपयोग ज्यादा कर रहा है, तो माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों के फोन और कंप्यूटर की समय-समय पर जांच करते रहें. देखते रहें कि आपका बच्चा कहीं किसी गलत चीज का आदी तो नहीं बन रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक 86 प्रतिशत बच्चे जैसे ही इंटरनेट सोशल नेटवर्किंग साइट को लॉग ऑन करते हैं, उनको ऐसी चीजें या तस्वीरें देखने को मिलती हैं, जो उन्हें किसी दोस्त ने फॉरवर्ड की होती हैं.

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