Bihar News: समस्तीपुर नगर निगम ने 18 लाख रुपये की लागत से एक ऐसी मशीन लगाई है, जो न सिर्फ प्रदूषण पर रोक लगाएगी बल्कि जिले को स्वच्छ और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होगी.
यह मल्टी-लेयर प्लास्टिक रीसाइक्लिंग मशीन प्रतिदिन दो टन कचरे का निस्तारण करने में सक्षम है और प्लास्टिक को उपयोगी टुकड़ों में बदल देती है. इन्हीं टुकड़ों से आगे चलकर फर्नीचर और अन्य सामान बनेगा.
कचरे से संसाधन की ओर कदम
पहले तक समस्तीपुर में प्लास्टिक कचरे के भंडारण भर की व्यवस्था थी. कुछ हिस्सा सड़क निर्माण में जरूर लगाया जाता था, लेकिन बाकी कचरा अनुपयोगी ही रह जाता था. नतीजा यह कि शहर की गलियों और नदी-नालों में प्लास्टिक की भरमार बनी रहती थी. लेकिन अब नई मशीन के लगने से तस्वीर बदलने लगी है. इस मशीन से न सिर्फ कचरे का उपयोग होगा, बल्कि सेंटर की कार्यक्षमता भी दोगुनी हो गई है. प्लास्टिक को गलाकर छोटे-छोटे दाने तैयार किए जाएंगे और इन्हें फैक्ट्रियों में भेजा जाएगा. वहां से कुर्सी और अन्य फर्नीचर बनने की राह आसान होगी.
नगर निगम की इस पहल ने साफ कर दिया है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन केवल सफाई तक सीमित नहीं, बल्कि यह रोजगार का भी जरिया बन सकता है. मशीन से तैयार प्लास्टिक के टुकड़े फैक्ट्रियों के लिए कच्चे माल का काम करेंगे. इस बढ़ती मांग से स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर खुलेंगे.
प्रदूषण पर लगेगी लगाम
समस्तीपुर की सड़कों और मोहल्लों में फैला प्लास्टिक अब प्रदूषण का कारण नहीं बनेगा, बल्कि नए संसाधन में तब्दील होगा. मशीन हर दिन दो टन प्लास्टिक को खपाने की क्षमता रखती है. इसका मतलब है कि अब शहर का बड़ा हिस्सा कचरा मुक्त होगा और पर्यावरण पर बोझ भी घटेगा. जिस प्लास्टिक को जलाने या फेंकने से प्रदूषण फैलता था, वही अब नगर निगम की योजना में ‘संपत्ति’ बनकर उभरेगा.
यह परियोजना सिर्फ एक मशीन लगाने की पहल नहीं है, बल्कि जिले को स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल बनाने का संकल्प है. एमआरएफ सेंटर के प्रबंधक निखिल कुमार के मुताबिक, इस मशीन की मदद से समस्तीपुर को पर्यावरण संरक्षण और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में एक नई पहचान मिलेगी. उनका कहना है कि इसका असली मकसद है—“समस्तीपुर को स्वच्छ, प्रदूषण मुक्त और आत्मनिर्भर बनाना.”
मजबूत इच्छाशक्ति से बदल सकती है सोच
समस्तीपुर नगर निगम की यह पहल इस बात का सबूत है कि यदि इच्छाशक्ति हो तो कचरा भी कमाई और संसाधन का जरिया बन सकता है. यहां से शुरू हुई यह कहानी केवल एक जिले तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि पूरे बिहार और देश के अन्य शहरों के लिए भी एक मॉडल बन सकती है.
जब शहर के लोग देखेंगे कि उनका फेंका हुआ प्लास्टिक कचरा अब फर्नीचर में बदलकर काम आ रहा है, तो उनकी सोच भी बदलेगी.
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