Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार चुनावी जंग का सबसे खास दृश्य जमीन पर नहीं, बल्कि आसमान में दिखा. 24 दिनों तक प्रदेश के आसमान में हेलीकॉप्टरों और चार्टर्ड विमानों की लगातार गूंज सुनाई देती रही. सत्ता की राह अब सिर्फ ‘जमीनी’ नहीं, बल्कि ‘हवाइ’ भी हो गई. नेताओं ने वक्त और दूरी पर जीत हासिल करने के लिए हवाई प्रचार को नया हथियार बना लिया. पटना एयरपोर्ट पर 478 वीवीआईपी का आवागमन दर्ज हुआ, जिनमें प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और कई सांसद शामिल थे. करीब तीन हजार घंटे की उड़ानों में लगभग 75 करोड़ रुपये खर्च हुए.
पटना एयरपोर्ट बना ‘चुनावी हब’
पटना का हवाई अड्डा इस बार चुनावी गतिविधियों का मुख्य केंद्र बन गया. सामान्य दिनों में जहां 200 से 250 उड़ानें होती हैं, वहीं प्रचार के दौरान ये आंकड़ा बढ़कर 600 से अधिक उड़ानें प्रतिदिन तक पहुंच गया.
16 अक्टूबर से लेकर दो नवंबर तक एयरपोर्ट का हर कोना सियासी हेलीकॉप्टरों की आवाजाही से गूंजता रहा. एयरपोर्ट प्रबंधन के मुताबिक, इस अवधि में 80 हेलीकॉप्टर और 40 चार्टर्ड विमानों ने लगातार उड़ानें भरीं.
नेताओं का ‘हवाई गणित’
सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए नेताओं ने आसमान की राह चुनी. एनडीए ने सबसे अधिक हेलीकॉप्टर बुक किए 11 बीजेपी, 3 जदयू और 1 लोजपा के पास था अपना हेलीकॉप्टर बेड़ा.
महागठबंधन की ओर से 4 कांग्रेस, 2 आरजेडी, और 1 पप्पू यादव ने किराये पर हेलीकॉप्टर लिए. कुल मिलाकर 23 हेलीकॉप्टरों का बेड़ा लगातार आसमान में गूंजता रहा हर दिन औसतन 25 हेलीकॉप्टर उड़ान भरते रहे और नेताओं की रैलियों का नक्शा हवा से तय होता रहा.
उड़ानों पर खर्च, 75 करोड़ का हवाई प्रचार
चुनाव प्रचार में खर्च का एक नया रिकॉर्ड इस बार बना. कुल मिलाकर नेताओं की उड़ानें लगभग 3000 घंटे चलीं, यानी केवल हवा में उड़ने पर ही करीब 75 करोड़ रुपये खर्च हुए. यह खर्च सिर्फ सुविधा या समय बचाने के लिए नहीं था, बल्कि यह दिखाता है कि राजनीति अब संसाधनों और शक्ति के प्रदर्शन का खेल बन चुकी है.
भीड़ से बादलों तक
चुनावी प्रचार में हवाई यात्राओं ने बिहार के सुदूर जिलों तक नेताओं की पहुंच आसान कर दी. सीमांचल, मगध, कोसी और चंपारण जैसे इलाकों में जहां सड़क मार्ग से पहुंचने में कई घंटे लगते, वहां हेलीकॉप्टरों ने यह दूरी चंद मिनटों में तय कर दी.
एनडीए और महागठबंधन दोनों ने अपने प्रमुख नेताओं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की रैलियों के लिए दर्जनों उड़ानें संचालित कीं.
शक्ति प्रदर्शन का नया प्रतीक
हेलीकॉप्टर अब सिर्फ प्रचार का साधन नहीं, बल्कि राजनीतिक ताकत का प्रतीक भी बन गया है. जिन उम्मीदवारों के पास अपनी हवाई मशीनें थीं, उनके कार्यक्रमों में भीड़ और मीडिया कवरेज भी उसी अनुपात में बढ़ गया.
हवाई प्रचार से उम्मीदवारों की ‘visibility’ बढ़ी है, लेकिन यह भी साफ हुआ है कि चुनाव लड़ना अब पहले से कहीं अधिक महंगा हो गया है.
जहां एक ओर मतदाता अपने गांव-मोहल्ले में लाइन में खड़े होकर वोट डाल रहे हैं, वहीं नेताओं की रणनीति हवा में तय हो रही थी. यह चुनाव बताता है कि बिहार की राजनीति अब हर मायने में आधुनिक हो चुकी है ,प्रचार में टेक्नोलॉजी और हवाई रफ्तार दोनों शामिल हैं.
लेकिन यह भी सवाल उठता है कि क्या इतनी बड़ी धनराशि का यह चुनावी उड़ान-प्रदर्शन, लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करेगा या केवल उसकी ‘ब्रांडिंग’ भर करेगा? बिहार की सियासत ने इस बार जमीन से आसमान तक अपनी ताकत दिखा दी.
चुनाव के नतीजे जो भी हों, पर इतना तय है कि 2025 का यह विधानसभा चुनाव इतिहास में ‘सबसे हवाई चुनाव’ के रूप में दर्ज होगा. नेताओं की उड़ानें थम चुकी हैं, अब जनता का फैसला उतरने वाला है.

