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Bihar Elections 2025: कांग्रेस और लोजपा के ‘फ्रेंडली फाइट’ वाले मैदान में उलझे समीकरण, 28 सीटों पर महागठबंधन का रहा दबदबा

Bihar Elections 2025: दूसरे चरण के मतदान के बाद बिहार का सियासी तापमान और बढ़ गया है. कांग्रेस और लोजपा की लड़ाई ने इस बार न सिर्फ गठबंधन के भीतर की रणनीति को उलझाया है, बल्कि सत्ता की राह को भी पेचीदा बना दिया है.

Bihar Elections 2025: मंगलवार को दूसरे चरण का मतदान पूरा होते ही बिहार चुनाव के नतीजों की उलटी गिनती शुरू हो गई है. 48 घंटे बाद जनादेश साफ होगा, लेकिन उससे पहले राजनीतिक हलकों में चर्चा इस बात की है कि कांग्रेस और लोजपा की सीटें किसके लिए ‘निर्णायक’ साबित होंगी.
कांग्रेस इस बार 61 और लोजपा 28 सीटों पर मैदान में है. दिलचस्प बात यह है कि लोजपा जिन 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, वहां 2020 में महागठबंधन के उम्मीदवारों राजद, कांग्रेस और वामदलों की बड़ी जीत हुई थी. कांग्रेस को मिली 61 सीटों में से 38 पर महागठबंधन का पिछला रिकॉर्ड बेहद कमजोर रहा है. यानी इन दोनों दलों का प्रदर्शन नतीजों की दिशा तय कर सकता है.

लोजपा की सीटें बनीं नई पहेली

लोजपा (रामविलास) इस बार एनडीए के हिस्से में 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. लेकिन इन सीटों का चुनावी इतिहास उसके लिए चुनौती से भरा है. 2020 में इन सीटों में ज्यादातर पर राजद या वाम दलों का दबदबा रहा. उदाहरण के तौर पर सिमरी बख्तियारपुर, गरखा, नाथनगर, डेहरी, मखदुमपुर, ओबरा, बेलसंड, मढ़ौरा, शेरघाटी, बोधगया, रजौली, गोविंदपुर, बख्तियारपुर, फतुहा, मनेर, साहेबपुर कमाल, सुगौली और महुआ. न सभी जगहों पर राजद ने आसानी से जीत दर्ज की थी.

राजद ने ब्रहमपुर में 51,000 से ज्यादा मतों से जीत हासिल की थी, वहीं मनेर और गोविंदपुर जैसी सीटों पर भी 30 हजार से अधिक मतों का अंतर रहा था. डेहरी और बख्तियारपुर को छोड़कर बाकी सीटों पर राजद का दबदबा इतना मजबूत था कि वहां से एनडीए को इस बार नई रणनीति के साथ उतरना पड़ा है.

जहां पहले लेफ्ट-कांग्रेस का किला था, अब लोजपा की चुनौती

लोजपा को इस बार ऐसी कई सीटें मिली हैं जहां पिछली बार वाम दलों या कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. दरौली में भाकपा (माले) ने 12,119 वोटों से जीत हासिल की थी, पालीगंज में माले 30,915 मतों से जीती थी, बलरामपुर में वाम दल की जीत का अंतर 53,597 मतों का था. बोचहां में वीआईपी और बहादुरगंज में ओवैसी की पार्टी AIMIM ने बड़ी जीत दर्ज की थी. कसबा सीट पर कांग्रेस ने 17,278 वोटों से जीत हासिल की थी, जो अब लोजपा के खाते में गई है.

यानी जिन सीटों पर पहले महागठबंधन या उसके घटक दलों का मजबूत आधार था, उन पर अब लोजपा को खुद को स्थापित करना होगा.

एनडीए के लिए भी परीक्षा की घड़ी

एनडीए के भीतर लोजपा को दी गई इन सीटों ने भाजपा और जदयू के समीकरणों को भी प्रभावित किया है. उदाहरण के तौर पर गोविंदगंज सीट, जो पहले भाजपा के पास थी, अब लोजपा के हिस्से में गई है. चेनारी से कांग्रेस के पूर्व विधायक मुरारी गौतम अब लोजपा के प्रत्याशी हैं.
परबत्ता में जहां पहले जदयू का उम्मीदवार था, वहां अब राजद मैदान में है. सुगौली में वीआईपी उम्मीदवार का नामांकन रद्द होने के बाद लोजपा को बढ़त की संभावना दिख रही है. हालांकि, मढ़ौरा में लोजपा प्रत्याशी का नामांकन रद्द हो जाने से वहां स्थिति कमजोर मानी जा रही है.

अगर लोजपा अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाती, तो भाजपा और जदयू को उन सीटों पर नुकसान झेलना पड़ सकता है, जिन पर मुकाबला सीधा नहीं है.

कांग्रेस की स्थिति- फ्रेंडली फाइट से बढ़ी परेशानी

कांग्रेस 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन इनमें से 9 सीटों पर “फ्रेंडली फाइट” की स्थिति है. इन सीटों पर राजद, वीआईपी और वामदलों के उम्मीदवार भी मैदान में हैं. इसका सीधा असर वोट बैंक के बिखराव पर पड़ सकता है.

आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस की 61 सीटों में से 23 पर महागठबंधन पिछले सात चुनावों में एक बार भी नहीं जीत सका है. 15 सीटें ऐसी हैं जहां पिछले सात चुनावों में सिर्फ एक बार जीत मिली है. यानी कुल मिलाकर 38 सीटें ऐसी हैं जिन पर विपक्ष का रिकॉर्ड बेहद कमजोर है.
अगर कांग्रेस इन सीटों पर मजबूत प्रदर्शन नहीं कर पाती, तो महागठबंधन के लिए यह नुकसानदेह साबित होगा क्योंकि तब राजद पर अपनी संख्या बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा.

सियासी नतीजों का नया गणित

इस बार कांग्रेस और लोजपा की सीटें निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं. कांग्रेस की कमजोर सीटें महागठबंधन के समीकरण बिगाड़ सकती हैं, जबकि लोजपा की चुनौतीपूर्ण सीटें एनडीए की राह मुश्किल कर सकती हैं.
दोनों दलों की स्थिति ऐसी है कि उनका प्रदर्शन न केवल गठबंधन की सीटों का औसत तय करेगा, बल्कि मुख्यमंत्री पद की संभावनाओं को भी प्रभावित कर सकता है.

महिलाओं की बढ़ी हुई आठ प्रतिशत वोटिंग ने भी इस समीकरण को और जटिल बना दिया है. महिलाओं का रुझान किसी एक गठबंधन की ओर गया, तो वह निर्णायक साबित हो सकता है.

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Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर. लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया में पीएच.डी. . वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. साहित्य पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं.

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