पटना : स्वच्छता को लेकर आज भले ही देश में अभियान चलाया जा रहा हो और इसका श्रेय लेने की होड़ लगी हो, लेकिन इसकी शुरुआत बापू यानी मोहनदास करमचंद गांधी ने चंपारण सत्याग्रह के पहले ही शुरू कर दिया था. अगर इतिहासकारों और बापू पर शोध करने वालों की मानें, तो वैकल्पिक विकास के प्रतिमान महात्मा गांधी ने स्वच्छता को लेकर पत्नी कस्तूरबा गांधी यानी ‘बा’ को भी घर से निकाल-बाहर कर दिया था. स्वच्छता को लेकर उनकी सजगता और प्रतिबद्धता की बात पूरी दुनिया जानती है, मगर इसे लेकर ‘बा’ को घर से निकालने की बात बिरले ही जानते हैं. आइए, चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने की इस कड़ी में जानते हैं, बापू का स्वच्छता के प्रति प्रेम के बारे में…
गांधी जी के सरोकारी प्रयास
18 अप्रैल, 2017 को चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरा होने जा रहा है. बिहार सरकार की ओर से इस मौके पर कई विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी ने कई ऐसे कार्य किये, जो नील की खेती करने वाले किसानों के लिए हुए आंदोलन में दबकर रह गये. आज भी गांधी जी के चंपारण में किये गये उन प्रयासों की निशानियां मौजूद हैं. खासकर हम बात करें प्राथमिक शिक्षा और स्वच्छता की, तो गांधी ने चंपारण में अपने पहले करके तीन विद्यालयों की स्थापना की और स्वच्छता अभियान को घर-घर तक पहुंचाया. आज हम चर्चा करेंगे गांधी जी के चंपारण सत्याग्रह के दौरान किये गये ग्रामीण सरोकार और आम जनों के लिए किये गये सत्कार्यों की.
जब गांधीजी ने कस्तूरबा को घर से निकाला
बिहार की राजधानी पटना के गांधी संग्रहालय के संरक्षक और वरिष्ठ गांधीवादी रजी अहमद ने प्रभात खबर डॉट कॉम को बताया कि गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान अपने से पहले कर तीन विद्यालयों की स्थापना की. इसके तहत उन्होंने तीन विद्यालयों की स्थापना की. पहला विद्यालय उन्होंने पूर्वी चंपारण के ढाका प्रखंड से करीब 12 किलोमीटर दूर बड़हरवा लखनसेन गांव में खोली. दूसरा विद्यालय उन्होंने भितिहरवा में खोला और तीसरे विद्यालय की स्थापना वृंदावन में की. रजी अहमद कहते हैं कि वर्तमान में कई राजनेता स्वच्छता-स्वच्छता चिल्लाते हैं, लेकिन गांधी ने 1904 से स्वच्छता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर दी थी. रजी अहमद ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी के पास जब प्रो. सीएफ एंड्रूज पहुंचे, तो गांधी जी ने कस्तूरबा गांधी को बाथरूम साफ करने का आदेश दिया. कस्तूरबा गांधी ने प्रो सीएफ एंड्रूज के लिए बाथरूम साफ करने से इनकार कर दिया. गांधी जी ने तत्काल कस्तूरबा गांधी को घर से निकल जाने की सलाह दी. इसके बाद कस्तूरबा रोने लगीं और उन्होंने गांधी जी से कहा कि परदेस में लाकर मुझे आप बेघर कर रहे हैं. हालांकि, बाद में ‘बा’ और बापू में समझौता हो गया.
दान के खपरैल मकान में पहला विद्यालय
पूर्वी चंपारण के बड़हरवा लखनसेन गांव में जाने के बाद आपको गांव की सीमा पर बना राजकीय बुनियादी विद्यालय दिखेगा. ग्रामीण इस विद्यालय को गांव का गौरव बताते हैं. गांव का बच्चा-बच्चा जानता है कि इस स्कूल को गांधी जी ने बनवाया था. विद्यालय में गांधी जी की विशाल मूर्ति और शिलालेख मौजूद हैं, जो इस विद्यालय की गौरवशाली महत्ता को बताने के लिए काफी हैं. हालांकि, पहले विद्यालय काफी गंदा रहता था, जिले के एक जिलाधिकारी ने उसकी कायापलट की और एक कमेटी का गठन कर विद्यालय के पुराने गौरव को वापस किया. इतिहासकार कहते हैं कि गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह की सफलता के बाद कुछ दिन गांव में रहकर समाज सुधार और स्वच्छता के अभियान चलाना चाहते थे. गांधी जी गांव में अशिक्षा और गंदगी देखकर काफी परेशान थे. बाद में उन्होंने उन इलाकों में नीलहे ब्रिटिशर्स की जमींदारी में नहीं आने वाले जमीनों पर विद्यालय खोली. बुनियादी विद्यालय का नया प्रयोग गांधी जी ने विद्यालय खोलने के लिए ग्रामीणों के संसाधनों का प्रयोग किया. इस तरह उन्होंने एक सामाजिक समरसता का वातावरण तैयार कर सबसे मदद ली. बड़हरवा में तो बकायदा गांधी जी को गांव के एक व्यक्ति रामगुलाम लाल बख्शी ने अपना खपरैल मकान दान में दिया और 13 नवंबर, 1917 को स्कूल की नींव रखी गयी.
समग्र दृष्टि का नाम है महात्मा गांधी
पटना स्थित एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के वरिष्ठ प्रोफेसर और गांधी के विचारों से प्रभावित प्रो डीएम दिवाकर कहते हैं कि गांधी जी गांवों में रचनात्मक कार्यक्रम स्वच्छता ही होता था. उनके किसी भी आंदोलन और कार्य का प्रमुख हिस्सा स्वच्छता रहा है. उन्होंने जब भी देश और राष्ट्र के लिए सोचा तो उसमें स्वच्छता एक महत्वपूर्ण अंग रहा. दिवाकर ने प्रभात खबर को बताया कि गांधी जी एक विकास के वैकल्पिक समग्र दृष्टिकोण का नाम है. उन्हें स्वच्छता विद्यालय और सत्याग्रह के टुकड़ों में नहीं देखा जा सकता.
ग्रामीणों को जब जागरूक करने लगे गांधी जी
गांधी जी ने चंपारण में संघर्ष और सृजन की धार को एक साथ तेज किया. आम लोगों और ग्रामीणों को स्वच्छता और शिक्षा के प्रति जागरूक कर उन्होंने अपने समग्र विकास की कल्पना को अमली जामा पहनाया. वह आये थे नील की खेती करने वाले किसानों की लड़ाई लड़ने. समस्याओं के अंबार ने उन्हें बिना हिंसा का सहारा लिये बदलाव की बयार की तरफ धकेल दिया. वह स्कूल खुलवाने लगे. लोगों को स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने लगे. साफ-सफाई का प्रशिक्षण देने लगे. स्थिति ऐसी बनी कि बाद में कस्तूरबा गांधी ने भी इन स्कूलों में पढ़ाया. गांधी की प्रेरणा से पूर्वी चंपारण में दर्जनों बुनियादी विद्यालयों की नींव पड़ी. उन विद्यालयों में पढ़ाई के साथ संस्कार और रोजगार के हुनर भी मिलते थे.